भारतीय समाचार पोर्टल न्यूजक्लिक चीनी प्रचार तंत्र के एक वैश्विक नेटवर्क का हिस्सा है, जिसे अमेरिकी अरबपति नेविल रॉय सिंघम से पैसे मिलते हैं। सिंघम और न्यूजक्लिक चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के खतरनाक हथियार हैं। ये भारत सहित दुनियाभर में चीन के राजनीतिक एजेंडे को फैला रहे हैं
देश के 255 प्रतिष्ठित नागरिकों ने न्यूजक्लिक चीनी फंडिंग घोटाले पर राष्ट्रपति, सीजेआई को पत्र लिखकर मांग की है कि ‘भारत विरोधी साजिश की पूरी सीमा का पता लगाने के लिए जांच शुरू की जाए।’ इन प्रतिष्ठित नागरिकों में न्यायाधीश, नौकरशाह और अनुभवी लोग शामिल हैं। हाल ही में न्यूयॉर्क टाइम्स की एक जांच से पता चला है कि भारतीय मीडिया आउटलेट न्यूजक्लिक को चीन में रह रहे अमेरिकी अरबपति नेविल रॉय सिंघम से फंडिंग मिली थी, जिसके चीनी सरकारी मीडिया मशीनरी से संबंध हैं और उसके पास चीन की बातों का प्रचार करने वाले गैर-लाभकारी संस्थाओं का एक नेटवर्क है।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने जो लिखा, उसे पढ़ने से पहले यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि भारत की कांग्रेस पार्टी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एक समझौता ज्ञापन से बंधी हुई है। स्वयं न्यूयॉर्क टाइम्स चीनी सरकार का एक अनौपचारिक मुखपत्र बना हुआ है, जो ‘संभवत:’ चीन के द्वारा वित्त पोषित भी है।
अब याद कीजिए जब न्यूजक्लिक पोर्टल पर छापा मारा गया था, तो कांग्रेस पार्टी ने कितना हंगामा किया था। न्यूयॉर्क टाइम्स के लेख में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि न्यूजक्लिक को नेविल रॉय सिंघम द्वारा वित्त पोषित किया गया था, जो कम्युनिस्ट झुकाव वाला एक अमेरिकी करोड़पति है। वह चीन में रहता है और कई मोर्चों पर चीनी प्रचार को आगे बढ़ाने का काम करता है। न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है, ‘‘चीनी प्रचार का वैश्विक जाल एक अमेरिकी प्रौद्योगिकी मुगल की ओर बढ़ता है।’’ न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक ऐसे वित्तीय नेटवर्क का खुलासा किया, जो शिकागो से शंघाई तक फैला हुआ है और दुनिया भर में चीनी विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिकी गैर-लाभकारी संस्थाओं का उपयोग करता है।
चीनी अभियान का हिस्सा
एक घटना पर ध्यान दें। लंदन का एक इलाका है- चाइनाटाउन। यहां हमेशा हलचल रहती है। यहां एशियाई विरोधी घृणा अपराधों में वृद्धि के खिलाफ नवंबर 2021 में एक प्रदर्शन का आयोजन हुआ। इसमें विभिन्न प्रकार के कार्यकर्ता समूह एक साथ आए। यह एक सामान्य बात होनी चाहिए। लेकिन वास्तव में यह सामान्य बात नहीं थी। इसमें ज्यादातर चीनी प्रदर्शनकारी थे और उन्होंने बीच सड़क पर आपस में ही झगड़ा शुरू कर दिया था। यह झगड़ा क्या था? विरोध प्रदर्शन का आयोजन करने वालों में ‘नो कोल्ड वॉर’ नामक ग्रुप भी शामिल था। इस ग्रुप सहित कार्यक्रम के आयोजकों से जुड़े लोगों ने हांगकांग में लोकतंत्र आंदोलन का समर्थन करने वाले कार्यकर्ताओं पर हमला कर दिया।
सतही तौर पर यही लगता है कि ‘नो कोल्ड वॉर’ ग्रुप अधिकांशत: अमेरिकी और ब्रिटिश कार्यकर्ताओं द्वारा चलाया जाने वाला एक ढीला-ढाला अभियान है, जिनका मुख्य तर्क यह है कि चीन के खिलाफ पश्चिम की बयानबाजी ने जलवायु परिवर्तन और नस्लीय अन्याय जैसे मुद्दों से ध्यान भटका दिया है। अच्छी बात है, यह होनी चाहिए। लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स की जांच में पाया गया कि इस ‘नो कोल्ड वॉर‘ ग्रुप को चीन से बड़े पैमाने पर पैसा मिलता है।
यह जनमत प्रभावित करने वाले बड़े चीनी अभियान का हिस्सा है, जो चीन का बचाव करता है और उसके प्रचार को बढ़ावा देता है। इसके केंद्र में भी वही अमेरिकी करोड़पति सिंघम है, जिसे धुर-वामपंथी उद्देश्यों के समाजवादी वित्तपोषक के रूप में जाना जाता है। इतना तो प्रत्यक्ष है, लेकिन जो बात सतह से थोड़ी नीचे है, वह यह कि गैर-लाभकारी समूहों, एनजीओ व शेल कंपनियों की आड़ में सिंघम चीन की सरकारी मीडिया मशीनरी के साथ मिलकर काम करता है और दुनिया भर में इसके प्रचार को वित्तपोषित कर रहा है।
‘नो कोल्ड वॉर’ जैसे कुछ ग्रुप तो हाल के वर्षों में सामने आए। अमेरिकी युद्ध-विरोधी समूह ‘कोड पिंक’ जैसे कुछ अन्य समूह समय के साथ चीन के पाले में पैसों की ताकत से घसीट लिए गए। ‘कोड पिंक’ किसी समय चीन के मानवाधिकार रिकॉर्ड की आलोचना किया करता था, लेकिन अब वह मुख्य रूप से उइगर मुसलमानों के चीनी दमन का बचाव करता है।
सिंघम का वैश्विक नेटवर्क
मैसाचुसेट्स में एक थिंक टैंक से लेकर मैनहट्टन के एक कार्यक्रम स्थल तक, दक्षिण अफ्रीका के एक राजनीतिक दल से लेकर भारत और ब्राजील में बहुत सारे समाचार संगठनों तक, द टाइम्स ने नेविल रॉय सिंघम से जुड़े समूहों को सैकड़ों करोड़ डॉलर दिए जाने के पदचिह्न खोज निकाले, जो तमाम तरह की प्रगतिशील बातों के बीच छिपाकर चीनी सरकार के दृष्टिकोण को परोसने का काम करते हैं।
‘नो कोल्ड वॉर’ जैसे कुछ ग्रुप तो हाल के वर्षों में सामने आए। अमेरिकी युद्ध-विरोधी समूह ‘कोड पिंक’ जैसे कुछ अन्य समूह समय के साथ चीन के पाले में पैसों की ताकत से घसीट लिए गए। ‘कोड पिंक’ किसी समय चीन के मानवाधिकार रिकॉर्ड की आलोचना किया करता था, लेकिन अब वह मुख्य रूप से उइगर मुसलमानों के चीनी दमन का बचाव करता है।
इन समूहों को चीन द्वारा अमेरिकी गैर-लाभकारी संस्थाओं के माध्यम से कम से कम 27 करोड़ 50 लाख डॉलर दान के रूप में दिया गया था। 69 वर्षीय नेविल रॉय सिंघम शंघाई में रहता है। वहां उसके नेटवर्क का एक आउटलेट एक यूट्यूब शो का सह-निर्माण करता है, शंघाई शहर का प्रचार विभाग इसका आंशिक वित्तपोषण करता है। दो अन्य लोग हैं, जो ‘चीन की आवाज को दुनिया भर में फैलाने’ के लिए एक चीनी विश्वविद्यालय के साथ काम करते हैं। नेविल रॉय सिंघम पिछले महीने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की एक कार्यशाला में शामिल हुआ था, जिसमें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने के बारे में विचार किया गया था।
यह नेटवर्क अमेरिकी गैर-लाभकारी समूहों के बूते बनाया गया है। अमूमन दानदाता दान के साथ अपना नाम अंकित करता है या करवाना चाहता है, लेकिन सिंघम ऐसी प्रणाली के माध्यम से पैसे भेजता रहा, जिसमें उसका नाम और भेजी जाने वाली रकम को छिपाया गया। इसके केंद्र में थीं ‘यूनाइटेड कम्युनिटी फंड’ और ‘जस्टिस एंड एजुकेशन फंड’ जैसी निरापद नजर आने वाले नामों वाली चार नई गैर-लाभकारी संस्थाएं। वास्तविक दुनिया में इनका कहीं कोई नामोनिशान नहीं था। उनके पते केवल इलिनोइस, विस्कॉन्सिन और न्यूयॉर्क में यूपीएस स्टोर मेलबॉक्स के रूप में सूचीबद्ध हैं।
खतरनाक एजेंडा
नेविल रॉय सिंघम का दावा है कि वह चीन सरकार के निर्देश पर काम नहीं करता है। वैसे भी किसी अपराधी से अपराध की स्वीकारोक्ति की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। लेकिन सबूत उसके झूठ को उजागर करते हैं। जैसे- नेविल रॉय सिंघम और चीनी प्रचार तंत्र का कार्यालय स्थान एक ही है। उसके समूह का स्टाफ और चीनी प्रचार तंत्र की एक कंपनी का स्टाफ भी एक ही है। यह कंपनी विदेशियों को ‘विश्व मंच पर चीन द्वारा निर्मित किए गए चमत्कारों के बारे में शिक्षित’ करती है।
इस सारी कसरत का लक्ष्य निशाना बनाए गए देश के राष्ट्रवाद को, राष्ट्रतत्व को समाप्त करना होता है। घरेलू और विदेश-समर्थित दुष्प्रचार का निशाना मुख्यधारा के विमर्श को प्रभावित करना होता है। नेविल रॉय सिंघम का नेटवर्क यह दिखाता है कि यह प्रक्रिया कैसे चलाई जाती है। नेविल रॉय सिंघम और उसकी टीम उस लड़ाई में अग्रिम पंक्ति के मोहरे हैं, जिसे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ‘बिना गोली बारूद का युद्ध’ कहती है। शी जिनपिंग की हुकूमत में चीन ने न केवल अपने सरकारी मीडिया संचालन का विस्तार किया है, बल्कि विदेशी आउटलेट्स तैयार किए हैं और विदेशी प्रभावशाली लोगों को भी तैयार किया है। उनका लक्ष्य इस ढंग से चीनी हितों का प्रचार करना है, जिससे वह कोई स्वतंत्र सामग्री नजर आए।
नेविल रॉय सिंघम का ग्रुप वैसे तो यूट्यूब वीडियो बनाता है और यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें एक साथ लाखों बार देखा जाए। लेकिन इसके अलावा वह अमेरिकी कांग्रेस में अपने सहयोगियों के साथ बैठकें करता है, अफ्रीका में राजनेताओं को चीनपरस्ती के लिए ‘प्रशिक्षित’ करता है, दक्षिण अफ्रीकी चुनावों में उम्मीदवारों को खड़ा करता है और लंदन में हिंसा भड़काने जैसे विरोध प्रदर्शनों का आयोजन करके वास्तविक दुनिया की राजनीति को प्रभावित करता है। इसके परिणामस्वरूप धुर-वामपंथी समूहों का एक वैश्विक ढांचा बन गया है, जो चीन सरकार की बातों को दोहराते हैं, उसके इशारे पर काम करते हैं, एक-दूसरे की हां में हां मिलाते हैं और बदले में चीन का सरकारी मीडिया भी उनकी हां में हां मिलाता है।
यह नेटवर्क अमेरिकी गैर-लाभकारी समूहों के बूते बनाया गया है। अमूमन दानदाता दान के साथ अपना नाम अंकित करता है या करवाना चाहता है, लेकिन सिंघम ऐसी प्रणाली के माध्यम से पैसे भेजता रहा, जिसमें उसका नाम और भेजी जाने वाली रकम को छिपाया गया। इसके केंद्र में थीं ‘यूनाइटेड कम्युनिटी फंड’ और ‘जस्टिस एंड एजुकेशन फंड’ जैसी निरापद नजर आने वाले नामों वाली चार नई गैर-लाभकारी संस्थाएं। वास्तविक दुनिया में इनका कहीं कोई नामोनिशान नहीं था। उनके पते केवल इलिनोइस, विस्कॉन्सिन और न्यूयॉर्क में यूपीएस स्टोर मेलबॉक्स के रूप में सूचीबद्ध हैं।
गैर-लाभकारी समूह ही क्यों?
क्योंकि अमेरिकी गैर-लाभकारी समूहों को व्यक्तिगत दाताओं का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं होती है। लिहाजा, यह चारों गैर-लाभकारी संस्थाएं अदृश्य स्रोत से धन की बौछार करती रहीं। इनकी सार्वजनिक फाइलिंग में किसी ने भी सिंघम को बोर्ड सदस्य या दाता के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया। न्यूयार्क टाइम्स ने गैर-लाभकारी और कॉपोर्रेट फाइलिंग, आंतरिक दस्तावेजों और नेविल रॉय सिंघम से जुड़े समूहों के दो दर्जन से अधिक पूर्व कर्मचारियों का साक्षात्कार करके चैरिटी और शेल कंपनियों की गुत्थी को सुलझाया। ‘नो कोल्ड वॉर’ सहित कुछ ग्रुप कानूनी संस्थाओं के रूप में भी अस्तित्व में नहीं हैं, बल्कि डोमेन पंजीकरण रिकॉर्ड और साझा आयोजकों के माध्यम से नेटवर्क से जुड़े हुए हैं।
नेविल रॉय सिंघम की किसी भी गैर-लाभकारी संस्था ने विदेशी एजेंट पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकरण नहीं कराया है, जैसा कि उन समूहों के लिए आवश्यक है, जो विदेशी शक्तियों की ओर से जनता की राय को प्रभावित करना चाहते हैं। इन चार यूपीएस स्टोर पते वाली गैर-लाभकारी संस्थाओं से दान प्राप्त करने वाले कई समूहों ने नेविल रॉय सिंघम को पैसे के स्रोत के रूप में पहचाना है।
इन यूपीएस स्टोर गैर-लाभकारी संस्थाओं से दुनिया भर में लाखों डॉलर का प्रवाह हुआ। इनमें से एक है मैसाचुसेट्स स्थित थिंक टैंक ट्राइकॉन्टिनेंटल। इसके कार्यकारी निदेशक हैं – विजय प्रसाद। ट्राईकॉन्टिनेंटल समाजवादी मुद्दो पर वीडियो और लेख तैयार करता है।
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