1950- 2019 : न्यायिक प्रक्रिया : जब पूरी हुई रामभक्तों की साधना
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1950- 2019 : न्यायिक प्रक्रिया : जब पूरी हुई रामभक्तों की साधना

सर्वोच्च न्यायालय ने लगातार 40 दिन की सुनवाई करने के बाद 9 नवंबर, 2019 को अपना निर्णय दिया

by WEB DESK
Aug 13, 2023, 06:30 am IST
in भारत, विश्लेषण, उत्तर प्रदेश, धर्म-संस्कृति
5 अगस्त, 2020 को श्रीराम मंदिर के शिलान्यास के अवसर पर पूजन करते श्री नरेन्द्र मोदी और सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत

5 अगस्त, 2020 को श्रीराम मंदिर के शिलान्यास के अवसर पर पूजन करते श्री नरेन्द्र मोदी और सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत

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1950 के दशक में यह मामला न्यायालय पहुंचा। इसका पटाक्षेप 9 नवंबर, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के साथ हुआ।

श्रीराम मंदिर के लिए लगभग 70 वर्ष तक कानूनी लड़ाई चली। 1950 के दशक में यह मामला न्यायालय पहुंचा। इसका पटाक्षेप 9 नवंबर, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के साथ हुआ। सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने कहा, ‘‘विवादित ढांचे का निर्माण किसी खाली स्थान पर नहीं हुआ था। उसके नीचे एक ढांचा था और वह इस्लामी नहीं था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के शोध की अनदेखी नहीं की जा सकती।’’ इसके साथ ही विवादित जमीन पर रामलला का अधिकार बताते हुए केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वह एक न्यास बनाकर उसे वह जमीन सौंप दे। इसके बाद भारत सरकार ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास का गठन किया। आजकल वही न्यास मंदिर का निर्माण करा रहा है।

पहली बार 17 दिसंबर, 1959 को निर्मोही अखाड़े ने न्यायालय से जमीन पर कब्जे और संरक्षण का अधिकार मांगा। फिर 18 दिसंबर, 1961 को सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस स्थान पर मालिकाना हक के लिए दावा दायर किया। यह मामला दशकों तक अदालतों में चलता रहा। अप्रैल, 2002 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने सुनवाई शुरू की और जमीन के मालिकाना हक के बारे में सच जानना चाहा।

न्यायालय के आदेश पर 2003 में कनाडा की तोजो विकस इंटरनेशनल कंपनी ने 1,650 फीट की गहराई तक की तस्वीरें लीं। कंपनी ने उच्च न्यायालय को बताया, ‘‘जहां ‘मस्जिद’ थी, उसके नीचे एक विशाल भवन का ढांचा नजर आता है।’’ इस तथ्य की पुष्टि के लिए अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को इस स्थान पर खुदाई का आदेश दिया। कड़ी शर्तों और पाबंदियों के बीच डॉ. बी.आर. मणि की देखरेख में यहां खुदाई की गई। अदालत में दो खंड में जमा की गई रपट में कहा गया कि विवादित स्थल पर खुदाई में उत्तर भारतीय मंदिर मिला।

अयोध्या में श्रीरामलला के विहंगम दर्शन

अंतत: 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने निर्णय देते हुए कहा कि विवादित ढांचा एक बड़े भग्नावशेष पर खड़ा था। न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा ने कहा, ‘‘वह 12वीं शताब्दी के राम मंदिर को तोड़कर बनाया गया था।’’ न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा, ‘‘वह किसी बड़े हिंदू धर्मस्थान को तोड़कर बनाया गया।’’ न्यायमूर्ति खान ने कहा, ‘‘वह किसी पुराने ढांचे पर बना था।’’ पर किसी भी न्यायमूर्ति ने उस ढांचे को मस्जिद नहीं माना। इसके साथ ही न्यायालय ने विवादित स्थल को तीन पक्षों यानी रामलला विराजमान, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े के बीच बांटने का आदेश दिया। इस फैसले से नाखुश सभी पक्ष दिसंबर, 2010 में सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे।

मई, 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने यथास्थिति का आदेश दिया। 21 सितंबर, 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मामला संवेदनशील है, इसलिए अदालत के बाहर हल निकालने के प्रयास किए जाने चाहिए, लेकिन यह प्रयास सिरे नहीं चढ़ा। 5 दिसंबर, 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस मामले में मालिकाना हक से जुड़ी सभी 13 अपीलें 8 फरवरी, 2018 को सुनी जाएंगी।

अक्तूबर, 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि यह विवाद मालिकाना हक के तौर पर सुना जाएगा और यह जनवरी, 2019 में समुचित पीठ के सामने सूचीबद्ध होगा। यही पीठ सुनवाई का कार्यक्रम तय करेगी। अंतत: 8 जनवरी 2019 को पांच सदस्यीय पीठ का गठन किया गया और पहली सुनवाई 10 जनवरी, 2019 को हुई। लगभग 10 महीने तक इस पर सुनवाई हुई। अंत में सर्वोच्च न्यायालय ने लगातार 40 दिन की सुनवाई करने के बाद 9 नवंबर, 2019 को अपना निर्णय दिया। उस निर्णय के आते ही भारत ही नहीं, पूरे विश्व के हिंदुओं में खुशी की लहर दौड़ गई।

Topics: Nirmohi AkharaArchaeological Survey of Indiaसर्वोच्च न्यायालयनिर्मोही अखाड़ेरामलला विराजमानश्री नरेन्द्र मोदीSupreme CourtRamlala Virajmanभारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभागShri Narendra Modiराम मंदिरSarsanghchalak Shri Mohanrao BhagwatRam Mandirसुन्नी वक्फ बोर्डSunni Waqf Boardसरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत
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