बरसात में बारिश के साथ उमस के काफी ज्यादा होने से यह जीवाणुओं के पनपने के लिए बहुत अनुकूल मौसम होता है। इस दौरान ज्वर या बुखार एक सामान्य सी तकलीफ है। ज्वर या बुखार अपने-आप में कोई बीमारी नहीं है, परंतु यह किसी बीमारी का लक्षण जरूर हो सकता है।
यदि हमें कोई रोग हो जाता है, तो उसे ठीक करने में जितना महत्व औषधियों का होता है, उतना ही महत्व हमारे खानपान का भी होता है। बरसात में बारिश के साथ उमस के काफी ज्यादा होने से यह जीवाणुओं के पनपने के लिए बहुत अनुकूल मौसम होता है। इस दौरान ज्वर या बुखार एक सामान्य सी तकलीफ है।
ज्वर या बुखार अपने-आप में कोई बीमारी नहीं है, परंतु यह किसी बीमारी का लक्षण जरूर हो सकता है। ज्वर उतरने पर बहुत कमजोरी महसूस होती है। खानपान पर विशेष ध्यान देकर हम ज्वर से बिना कमजोरी के उठ सकते हैं।
ज्वर तीन प्रकार के होते हैं-
- तीव्र ज्वर-इसमें बुखार अल्पावधि के लिए होता है जैसे टॉन्सिल, सर्दी, खांसी, छोटी माता, टाइफाइड इत्यादि। इसमें अवधि जरूर कम होती है, परंतु ज्वर की तीव्रता ज्यादा होती है।
- दीर्घकालीन ज्वर-इसमें तपेदिक जेसे ज्वर आते हैं जो लंबे समय तक तो रहते हैं, परंतु इनकी तीव्रता कम होती है।
- आवर्ती ज्वर-इसके अंतर्गत मलेरिया जैसे बुखार आते हैं जो कुछ अंतराल के बाद बार-बार आते हैं।
बुखार से शरीर में चयापचय (मेटाबॉलिज्म) संबंधी परिवर्तन होते हैं। तापमान बढ़ने पर चयापचय बढ़ जाता है। प्रोटीन का अपचय भी बढ़ जाता है। पाचन तंत्र में गतिशीलता कम हो जाती है, जिससे पोषकतत्वों का अवशोषण भी कम होता है। पसीने के रूप में शरीर से सोडियम, पोटेशियम, क्लोराइड, विटामिन सी तथा बी कॉम्प्लेक्स का ह्रास होता है। इस कारण शरीर को विशेष आहार की आवश्यकता होती है जो पोषक तत्वों की कमी को पूरा करे और साथ ही रोगों से लड़ने की शक्ति दे।
ज्वर में खानपान का ध्यान रखना और भी मुश्किल हो जाता है। क्योंकि इसमें जहां पोषक तत्वों की आवश्यकता बढ़ जाती है, वहीं भूख न लगना तथा खाने को मन न करना एक सामान्य शिकायत है। इसमें यदि उल्टी होने या जी मिचलाने जैसी शिकायतें हैं तो यह समस्या और भी बढ़ जाती है। खानपान का ध्यान रखने के लिए सबसे पहले रोगी का मुंह स्वच्छ रखना जरूरी होता है ताकि स्वाद का अच्छे से पता चले तथा भोजन ग्रहण किया जा सके। ताजे खीरे तथा टमाटर में नमक व नींबू लगाकर देने से भी स्वाद ग्रंथियां अच्छे से काम करती हैं।
अल्पावधि के लिए होने वाले तीव्र ज्वर में शुरुआत में जी मिचलाने जैसी पाचन संबंधी समस्याएं भी होती हैं। अत: इस ज्वर में शुरुआत के एक या दो दिन जब बुखार तेज होता है, हमें तरल पदार्थ ज्यादा लेने चाहिए। इसमें हम हल्दी वाला दूध, नारियल पानी, दाल का तथा चावल का पानी, सत्तू, कोकम शरबत, सब्जियों का सूप, जूस जैसे कई पौष्टिक तरल ले सकते हैं। ज्वर के थोड़ा कम होने तथा पाचन भी सामान्य लगने पर नरम खाना दिया जा सकता है। इसमें दाल, चावल, खिचड़ी, दलिया, इडली, उबली शकरकंदी, पके अंकुरित मूंग को शामिल किया जा सकता है।
दीर्घावधि वाले ज्वर में मुख्यत: प्रोटीन की मात्रा तथा ऊर्जा पर ध्यान देना आवश्यक होता है। दिन भर में हमारे तीन बड़े भोजन होते हैं – सुबह का नाश्ता, दोपहर का खाना तथा रात का खाना। इन सभी भोजन में प्रोटीन को शामिल करना जरूरी होता है, तभी शरीर की टूटफूट को तथा बुखार से हुई क्षति को पूरा किया जा सकता है। प्रोटीन में हम दालें, टोफू, दूध, पनीर, उबला अंडा, अंकुरित इत्यादि खाने में शामिल कर सकते हैं।
बुखार में पसीने के रूप में शरीर से पानी के साथ-साथ विटामिन सी, ए, बी, खनिज पदार्थ निकलते हैं। इसे पूरा करने के लिए भोजन में रसीले फल जैसे मौसम्बी, संतरा, आलूबुखारा, नींबू, टमाटर इत्यादि को शामिल करना चाहिए। हम दिन भर में कितना पानी पी रहे हैं, यह विशेष रूप से देखना चाहिए, क्योंकि पानी की कमी ज्वर में सामान्य है जिससे बचना होता है।
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