ईरान में महसा अमीन की मृत्यु के बाद हुए आंदोलन के बाद अब उन महिलाओं पर अत्याचारों का नया दौर आरम्भ हो गया है। एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा किए गए एक शोध में यह पाया गया कि ईरान की सरकार द्वारा विरोध कुचलने के लिए नए कदम उठाए जा रहे हैं।
जो भी महिलाएं अनिवार्य हिजाब नहीं पहनेंगी अब उन्हें पुलिस द्वारा नोटिस भेजा जाएगा और यहां तक कि नौकरी तक से निकाल दिया जाएगा। रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं पर अब अंतहीन अत्याचार किए जा रहे हैं। iranhumanrights।org के अनुसार जिस प्रकार से महिलाओं पर अब अत्याचार किए जा रहे हैं, उसे देखते हुए अब यूएन तथा अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अपनी आवाज ईरान की सरकार के खिलाफ उठानी चाहिए। ईरान में सेंटर फॉर ह्यूमेन राइट्स का कहना है कि पिछले नौ महीने से ईरानी अधिकारियों ने असंख्य महिलाओं को और लड़कियों को कैद कर लिया है, जो इस्लामिक रिपब्लिक के जबरन हिजाब कानून का शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रही हैं और जब वह इन शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को नहीं रोक पा रहे हैं तो वह आततायी पुलिस इन महिलाओं की अभिव्यक्ति की हर स्वतंत्रता को दबाने का प्रयास कर रही है।
इसी रिपोर्ट के अनुसार 16 जुलाई को तहजीबी और सामाजिक मामला मंत्रालय के लिए डिप्टी पुलिस चीफ ने यह घोषणा की थी कि अब पूरे देश में और वाहन एवं पैदल जांच को और तेज किया जाएगा जिससे कि उन महिलाओं को सबक सिखाया जा सके जो राज्य के जबरन हिजाब कानून का पालन नहीं कर रही हैं। इस घोषणा के बाद ही ईरान के हर शहर में सफेद वैन पैट्रोल की शुरुआत हो गयी थी।
वहीं एमनेस्टी की रिपोर्ट के अनुसार पुलिस ने लगभग 133,100 टेक्स्ट मेसेज भेजे हैं कि यह कारें इतने समय से प्रयोग नहीं की गयी हैं और साथ ही 2000 कारों को जब्त कर लिया गया है।
वहीं बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार कार के मालिकों को यह कहते हुए चेतावनी मेसेज भेजे जा रहे हैं कि कार में बैठी हुई महिलाओं के लिए जो स्कार्फ का नियम है, उसका पालन सुनिश्चित करें, नहीं तो उनके खिलाफ कार्रावई की जाएगी।
वहीं अप्रेल में जब यह कानून लागू किया गया था तब ईरान के वकीलों का यह कहना था कि जबरन हिजाब के नियम निजी कारों में लागू नहीं होते हैं। अप्रेल में न्यायालय ने यह दावा किया था कि इस्लामिक पेनल कोड के अनुसार “सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब हटाना एक अपराध है”। मगर वकील मोहसेन बोर्हानी और होशंग पौरबाबेई के अनुसार कार में हिजाब हटाना अपराध नहीं है।
उनका कहना था कि कार में हिजाब न पहनने से न ही जेल होगी और न ही कारों पर जुर्माना होना चाहिए।
वहीं एमनेस्टी की रिपोर्ट के अनुसार कई ऐसी महिलाओं को विश्वविद्यालयों से निकाल दिया गया है, उन्हें परीक्षा देने से रोक दिया गया है और सार्वजनिक परिवहन एवं बैंकिंग सेवाओं को लेने से रोक दिया है।
अफगानिस्तान में बुर्के के बिना टैक्सी में बैठने पर लगी रोक
जहां ईरान में यह हो रहा है तो वहीं भारत के पड़ोस में अफगानिस्तान में भी मुस्लिम महिलाओं को सार्वजनिक परिदृश्य से बाहर करने की एक होड़ आरम्भ हो गयी है। पहले उन्हें नौकरियों से हटाया गया, फिर धीरे-धीरे उनके लिए कई कानून बनाए गए। उनके लिए बुर्का अनिवार्य किया गया और अब यहां तक नियम बन गया है कि ब्यूटी पार्लर तक बंद कर दिए हैं और अब महिलाओं के लिए यह नियम बना दिया गया है कि वह बुर्के के बिना टैक्सी में नहीं बैठ सकती हैं।
हालांकि यह नियम पहले ही बना दिया गया था कि वह अकेली सफर नहीं कर सकती हैं, परन्तु अब उन्हें पूरी तरह से बुर्के में और घरों में कैद करने की जैसे होड़ लग गयी है। wionews को अफगानी मुस्लिम महिलाओं ने अपने मन की बातें बताते हुए कहा कि वह आजादी चाहती हैं। उन्होंने बताया कि तालिबानी लोगों के अनुसार महिलाओं को केवल बच्चा पैदा करने के लिए अस्पताल जाने की जरूरत होती है। उनके अनुसार उन्हें और कोई बीमारी हो ही नहीं सकती।
अफगानिस्तान में वाद्य यंत्रों में आग लगाई गयी
वर्ष 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता शुरू की थी तो भारत का एक रचनात्मक वर्ग बहुत प्रसन्न हुआ था। मगर वही वर्ग तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में लगातार कला के क्षेत्र में हो रहे आक्रमणों पर कुछ नहीं कह रहा। तमाम कलाकारों की हत्या कर दी गयी थी तो वहीं अब संगीत को गैर कानूनी घोषित करके सारे वाद्य यंत्रों को आग में हवाले कर दिया गया है।
हेरत के उत्तरपश्चिम क्षेत्र में उन सभी वाद्य यंत्रों को आग के हवाले कर दिया गया, जिन्हें शहर से इकट्ठा किया गया था।
यही नया तालिबान है जिसकी प्रशंसा में भारत के कथित प्रगतिशील वर्ग का एक बहुत बड़ा वर्ग यह कहता हुआ समर्थन कर रहा था कि कम से कम वह लोग प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं, उन्होंने अमेरिका जैसे जालिम देश को भगाया है आदि आदि!
मगर अब जब महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं, उनकी मूलभूत आजादी को छीना जा रहा है, तब कोई भी आवाज नहीं आ रही है! ईरान और अफगानिस्तान में मुस्लिम महिलाएं अपनी आजादी के लिए संघर्ष कर रही हैं और सबसे दुखद यही है कि उनकी आवाज और पीड़ा वैश्विक विमर्श का हिस्सा नहीं बन रही है बल्कि हिजाब पहनने के लिए संघर्ष विमर्श का हिस्सा बन रहा है।
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