कर्नाटक हाईकोर्ट ने बीवी और बच्चों को गुजारा भत्ता देने के आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका मोहम्मद अमजद पाशा नामक व्यक्ति द्वारा दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि उसके पास अपनी बीवी और नाबालिग बच्चों को 25 हजार रुपये का सामूहिक गुजारा भत्ता देने के लिए पर्याप्त साधन नहीं है। इस याचिका को जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की एकल न्यायाधीश पीठ ने खारिज कर दिया।
कोर्ट ने रहा, ‘पवित्र कुरान और हदीस कहते हैं कि यह पति का कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी और बच्चों की देखभाल करे, खासकर जब वे विकलांग हों। यह दिखाने के लिए कोई सामग्री प्रस्तुत नहीं की गई है कि प्रतिवादी-पत्नी लाभकारी रूप से कार्यरत है या उसके पास आय का कोई स्रोत है। अन्यथा भी मुख्य कर्तव्य याचिकाकर्ता के कंधों पर है।’
याचिकाकर्ता की ओर से यह दलील दी गई थी कि राशि बहुत अधिक है। इसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। अदालत ने कहा, ‘इन महंगे दिनों में जब रोटी खून से भी महंगी हो गई है तो इसे स्वीकार करना उचित नहीं है।’ आगे यह देखते हुए कि भरण-पोषण का विवादित आदेश वैधानिक विवेक के प्रयोग का एक प्रोडक्ट है। अदालत ने कहा, ‘अनुच्छेद 227 के तहत रिट उपाय को लागू करते हुए कारण और न्याय के नियमों के उल्लंघन के लिए एक मजबूत मामला बनाया जाना चाहिए। मौजूदा मामले में उक्त विवाद को प्रमाणित करने की कोई चर्चा भी नहीं है।’
पीड़िता महिला की दो बेटियां हैं, जिसमें एक 17 साल की है जो दिव्यांग है और दूसरी 14 साल की है और किडनी की बीमारी से पीड़ित है। इसको ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि अंतरिम/स्थायी गुजारा भत्ता देने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आश्रित पति या पत्नी बेसहारा न हो जाए।
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