एक दौर था जब विज्ञान व तकनीक को पुरुषों का और कला, संस्कृति और अन्य मानविकी विषयों को महिलाओं का क्षेत्र माना जाता था किन्तु विगत कुछ दशकों में भारत की मातृशक्ति ने जीवन के इस चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में सफलता के नये शिखर छूकर इस अवधारणा को तोड़ते हुए उपलब्धियों की एक नयी मिसाल कायम की है। हर्ष का विषय है कि आज देश की महिला वैज्ञानिक मिसाइल कार्यक्रम से लेकर अंतरिक्ष अभियान और दवाओं के विकास से लेकर सुदूर अन्वेषण जैसे मोर्चों पर सफलता की नई गाथा लिखते हुए देश-दुनिया की प्रगति व सुरक्षा में अपना अहम योगदान दे रही हैं। इन महिला वैज्ञानिकों में एक नाम जो इन दिनों समूचे देश व दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। वह है इसरो (भारतीय अंतरिक्ष एवं अनुसंधान संगठन) की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रितु करिधाल का। निःसंदेह ‘चंद्रयान-3’ मिशन की यह उपलब्धि समूचे राष्ट्र को गौरवान्वित करने वाली है और इस उपलब्धि में अंतरिक्ष विज्ञानी डॉ. रितु करिधाल की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
देश की इस चर्चित अंतरिक्ष विज्ञानी की उपलब्धियों की बात करें तो ‘रॉकेट वुमन ऑफ इंडिया’ के नाम से प्रसिद्ध डॉ. रितु करिधाल के नेतृत्व में ‘इसरो’ ने हाल ही में 14 जुलाई 2023 को श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) के ‘सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र’ से ‘चंद्रयान-3’ के सफलतापूर्वक प्रक्षेपण की ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। वर्तमान समय में ‘इसरो’ के ‘चंद्रयान-3’ मिशन की परियोजना निदेशक के रूप में कार्यरत डॉ. रितु करिधाल इससे पहले भी इसरो की ‘चंद्रयान -1’ और ‘चंद्रयान -2’ के साथ-साथ मार्स ऑर्बिटर मिशन (मंगलयान मिशन) जैसी परियोजनाओं में महत्वपूर्ण योगदान कर चुकी हैं। वर्ष 2007 से ‘इसरो’ में कार्यरत रितु करिधाल ने अंतरिक्ष परियोजनाओं के लिए प्रभावी एवं किफायती तकनीकों को विकसित करने में अहम भूमिका निभायी है। इसरो की ‘जीएसएलवी एमके III’ तकनीक विकसित करने में भी उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। ‘इसरो’ के सहकर्मियों के बीच अपने काम के प्रति लगन और जुनून के लिए अपनी जानी जाने वाली रितु करिधाल को मिले पुरस्कारों की सूची भी उनकी उपलब्धियों की तरह ही लंबी है।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम युवा वैज्ञानिक पुरस्कार, मार्स आर्बिट्रेटर मिशन के लिए इसरो टीम पुरस्कार, इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग यंग साइंटिस्ट अवार्ड और इसरो स्पेस साइंस फेलोशिप के साथ, सोसाइटी ऑफ इंडियन एरोस्पेस टेक्नोलॉजी एंड इंडस्ट्रीज द्वारा एरोस्पेस महिला उपलब्धि पुरस्कार हासिल करने वाली रितु करिधाल ‘इसरो’ की वैज्ञानिक सलाहकार समिति की भी सम्मानित सदस्य हैं।काबिलेगौर हो कि 5 नवंबर, 2013 को सफलता पूर्वक लॉन्च किये गये मंगलयान मिशन की सफलता पर की गयी रितु की टिप्पणी ने पहली बार तब उनको चर्चा में ला दिया था जब उन्होंने कहा था कि आमतौर पर ‘मार्स’ से पुरुषों को और ‘वीनस’ से महिलाओं’ को जोड़ा जाता है लेकिन ‘मार्स’ मिशन की सफलता ने इस लोकोक्ति को पूरी तरह बदलकर मार्स पर महिलाओं का राज साबित कर दिया है।
बताते चलें कि ‘मिशन मंगल’ की सफलता में ‘इसरो’ की महिला वैज्ञानिकों का विशेष योगदान माना जाता है। अपनी सफलताओं के बाबत रितु का कहना है कि मैं एक ऐसी सौभाग्यशाली भारतीय महिला हूं जिसे ईश्वर ने चांद व तारों की खूबसूरत दुनिया को और करीब से देखने और समझने का बेहतर मौका दिया है।
लखनऊ से है खास नाता
13 अप्रैल 1975 को लखनऊ के राजाजीपुरम इलाके के एक मध्यमवर्गीय कायस्थ परिवार में जन्मी रितु के परिवारीजनों के मुताबिक उनको चांद-सितारों की दुनिया बचपन से ही बेहद आकर्षित करती थी। पांच- छह साल की छोटी सी उम्र से ही वे रात को छत पर जाकर घंटों आकाश को निहारते हुए मंत्रमुग्ध हो जाती थीं। पढ़ाई में वे बचपन से ही मेधावी थीं और अंतरिक्ष विज्ञान में शुरू से ही उनकी विशेष रुचि थी। अखबारों में छपी अंतरिक्ष अन्वेषण से जुड़ी हर खबर व शोध की हर कतरन उनके पास उपलब्ध रहती थीं जिन्हें पढ़ना उन्हें बहुत रुचता था। उनकी स्कूली शिक्षा लखनऊ के नवयुग कन्या महाविद्यालय से हुई थी। जहां हाईस्कूल में एक वैज्ञानिक मेले में ‘सौर मंडल’ पर बनाये गये उनके प्रोजेक्ट को प्रथम पुरुस्कार मिलने पर अंतरिक्ष विज्ञान में उनकी रुचि और भी बढ़ गयी थी। नवयुग से हाईस्कूल करने के बाद उन्होंने भौतिकी की पढ़ाई के लिए लखनऊ के महिला महाविद्यालय में दाखिला लिया और उसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से भौतिकी में मास्टर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल की। उसके बाद उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से ही भौतिक विज्ञान में पीएचडी शुरू की लेकिन छह महीने के बाद ही वर्ष 1997 में इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) में उनका चयन हो गया, जिसकी वजह से वह पीएचडी नहीं पूरी कर सकीं। लेकिन ईश्वर में गहरी आस्था रखने वाली ऋतु की यह इच्छा भी अधूरी नहीं रही। लखनऊ विश्वविद्यालय के वर्ष 2019 के दीक्षान्त समारोह में उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने अंतरिक्ष क्षेत्र में महत्वपूर्ण कीर्तिमान स्थापित करने वाली विवि की इस पूर्व छात्रा को डॉ. रितु करिधाल की मानद उपाधि से सम्मानित किया था।
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