लोकतंत्र में शव गणना!
July 24, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम सम्पादकीय

लोकतंत्र में शव गणना!

आमतौर पर माना जाता है कि जिस राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति लचर हो, वहां उजागर होने वाले मामले कुल मामलों का अधिकतम 10 प्रतिशत ही होते हैं।

by WEB DESK and हितेश शंकर
Jul 18, 2023, 12:13 pm IST
in सम्पादकीय, पश्चिम बंगाल
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

वास्तव में हत्याओं का सामान्यीकरण करना इस लोकतंत्र की और भारत की सभ्यता की हत्या का सामान्यीकरण करने के तुल्य है। हाल ही में बिहार और झारखंड में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की चुनिंदा ढंग से हत्याएं की गईं। अतीत में इन्हें यह कहकर सामान्य बात स्थापित करने की कोशिश की जाती थी कि बिहार में तो ‘गनतंत्र’ है या यह तो बाहुबलियों का तरीका है।

पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र से आशय क्या है? पंचायत चुनावों में वहां मतों की गणना होनी थी या शवों की? उतनी ही शर्मनाक बात यह भी है कि इस नरसंहार पर देशभर के कथित मुख्यधारा के मीडिया, कथित मानवाधिकारों को लेकर उछल-कूद करने वाले संगठन और मोहब्बत की दुकानों के सारे दुकानदार ऐसे चुप्पी साध कर बैठे हैं, जैसे कुछ हुआ ही न हो। या जो भी कुछ हुआ हो, वह सामान्य ही हो। उनकी यह चुप्पी और चुनाव के नाम पर हत्याओं के इस खुले खेल को सामान्य बनाने की कोशिश इन हत्याओं में उनकी परोक्ष संलिप्तता का साक्ष्य क्यों न मानी जाए?

कुछ हुआ ही न हो… वास्तव में हत्याओं का सामान्यीकरण करना इस लोकतंत्र की और भारत की सभ्यता की हत्या का सामान्यीकरण करने के तुल्य है। हाल ही में बिहार और झारखंड में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की चुनिंदा ढंग से हत्याएं की गईं। अतीत में इन्हें यह कहकर सामान्य बात स्थापित करने की कोशिश की जाती थी कि बिहार में तो ‘गनतंत्र’ है या यह तो बाहुबलियों का तरीका है। होते-होते इसे खास तौर पर बिहार की राजनीति का एक अनिवार्य और अपरिहार्य पहलू ठहरा दिया गया।

आज भी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन पर तरह-तरह के आक्षेप लगाना वास्तव में इसी हत्यातंत्र की ओर लौटने के लिए अवसर की तलाश की कसमसाहट भर है। इस तरह की हिंसा को किसी भी ढंग से राजनीति के औजार के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। वास्तव में यह मत्स्य न्याय की अवधारणा है, जो कहीं से भी मनुष्यों की बस्ती के साथ मेल नहीं खा सकती। ऐसा प्रतीत होता है जैसे हत्याएं तो पूर्वनिश्चित ही थीं, इन हत्याओं को अंजाम देने के लिए चुनाव या चुनावी माहौल की प्रतीक्षा भर की जा रही थी। यह निराधार नहीं है।

पिछले काफी समय से पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर हथियारों और विस्फोटकों के पकड़े जाने की खबरें आती रही हैं। आमतौर पर माना जाता है कि जिस राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति लचर हो, वहां उजागर होने वाले आपराधिक मामले कुल मामलों का अधिकतम 10 प्रतिशत ही होते हैं। इसका अर्थ तो यही हुआ कि बहुत बड़े पैमाने पर तैयारी के साथ चुनाव का सिर्फ इंतजार किया जा रहा था, ताकि लक्षित ढंग से हत्याएं की जा सकें।

अगर कोई व्यक्ति अपने ही देश में राज्य पुलिस और केंद्रीय बलों की व्यवस्था होने के बावजूद इतना असुरक्षित हो कि उसके प्राणों की भी रक्षा न की जा सके, तो यह एक समाज के लिए कलंक की स्थिति है। इसे लोकतंत्र कहना या इसे सामान्य घटना जताना शर्मनाक ही नहीं आपराधिक भी है।

यही स्थिति राजस्थान में तब देखी गई थी, जब चुनाव में जीत का जश्न मनाने के लिए निकले विजय जुलूस ने हत्यारी भीड़ का रूप ले लिया था। और यह हत्याएं किनकी की जाती हैं? निश्चित रूप से उन लोगों की जो न केवल निशाने पर हैं, बल्कि वे लोग जो एक सहज शिकार साबित होते हैं, जिनके बारे में यह निश्चित होता है कि उनकी रक्षा करने न तो कानून आएगा और न ही कानून का अनुपालन कराने का वेतन लेने वाला तंत्र। जो मारे गए, उनका दोष सिर्फ यह था कि वह ऐसे मनुष्य थे, जिनकी चिंता सत्ता को नहीं थी।

प्रकारांतर से सरकार के लिए वे सौतेले या पराये नागरिक थे। यह सौतेलापन किसी राजनीतिक विचार के कारण नहीं था, बल्कि दंगाई और बहुत अंश जिहादी मानसिकता की तुष्टि-पुष्टि के लिए था। इसका संकेत इस तरह की अन्यत्र घटी कुछ समानांतर घटनाओं में देखा जा सकता है। जैसे-बांग्लादेश में एक विशेष दल के चुनाव जीतने पर जश्न मनाने के लिए हिंदुओं का नरसंहार किया गया। या जैसे इंग्लैंड के साथ क्रिकेट मैच में पाकिस्तान के एक खिलाड़ी के आउट होने पर श्रीनगर में कश्मीरी हिंदुओं के घर जला दिए गए। अथवा जैसे फुटबॉल के एक मैच का परिणाम आने पर फ्रांस में हिंसा करके जश्न मनाया गया। इन घटनाओं के जितने गहरे सरोकार बाकी बातों से हैं, उतना ही गहरा सरोकार भारत की सभ्यता के बिंदु से भी है।

अगर कोई व्यक्ति अपने ही देश में राज्य पुलिस और केंद्रीय बलों की व्यवस्था होने के बावजूद इतना असुरक्षित हो कि उसके प्राणों की भी रक्षा न की जा सके, तो यह एक समाज के लिए कलंक की स्थिति है। इसे लोकतंत्र कहना या इसे सामान्य घटना जताना शर्मनाक ही नहीं आपराधिक भी है।

संविधान, न्यायालयों और बाकी चीजों की बाध्यताएं चाहे हो भी हों, मानव जीवन की कीमत पर मत्स्य न्याय को जारी नहीं रहने दिया जा सकता है। सभी संबंधित पक्षों को एकमत से पश्चिम बंगाल को, बिहार को उन लोगों से बचाने के लिए निर्णायक कदम उठाने होंगे, जिन्होंने इन राज्यों को मानव जीवन के प्रतिकूल बना दिया है।
@hiteshshankar

Topics: shop of lovemassacre of Hindusdead body count in democracy!पश्चिम बंगालभारत की सभ्यता की हत्याWest Bengalहत्यातंत्रलोकतंत्रDemocracyमोहब्बत की दुकानगनतंत्रहिंदुओं का नरसंहारrepublic
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Irana Shirin Ebadi

शिरीन एबादी ने मूसवी के जनमत संग्रह प्रस्ताव को बताया अव्यवहारिक, ईरान के संविधान पर उठाए सवाल

केरल की वामपंथी सरकार ने कक्षा 10 की सामाजिक विज्ञान पुस्तक में ‘लोकतंत्र : एक भारतीय अनुभव’ 'Democracy: An Indian Experience' शीर्षक से नया अध्याय जोड़ा है, जिसका विरोध हो रहा है। (बाएं से) शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी और मुख्यमंत्री पिनराई विजयन

केरल सरकार ने स्कूली पाठ्यक्रम में किया बदलाव, लाल एजेंडे और काली सोच का सबक है 

मतदाता सूची पुनरीक्षण :  पारदर्शी पहचान का विधान

इस्लाम ने हिन्दू छात्रा को बेरहमी से पीटा : गला दबाया और जमीन पर कई बार पटका, फिर वीडियो बनवाकर किया वायरल

आपातकाल के  दाैरान इंदिरा गांधी के साथ संजय गांधी। संजय ही आपातकाल को नियंत्रित किया करते थे।

आपातकाल@50-हिटलर-गांधी : थाने बन गए थे यातना शिविर

Emergency Indira Gandhi Democracy

आपातकाल: लोकतन्त्र की हत्या का वीभत्स दौर

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Iran Suppressing voices

राष्ट्रीय सुरक्षा या असहमति की आवाज का दमन? ईरान में युद्ध के बाद 2000 गिरफ्तारियां

पूर्व डीआईजी इंद्रजीत सिंह सिद्धू चंडीगढ़ की सड़कों पर सफाई करते हुए

पागल या सनकी नहीं हैं, पूर्व DIG हैं कूड़ा बीनने वाले बाबा : अपराध मिटाकर स्वच्छता की अलख जगा रहे इंद्रजीत सिंह सिद्धू

जसवंत सिंह, जिन्होंने नहर में गिरी कार से 11 लोगों की जान बचाई

पंजाब पुलिस जवान जसवंत सिंह की बहादुरी : तैरना नहीं आता फिर भी बचे 11 लोगों के प्राण

उत्तराखंड कैबिनेट बैठक में लिए गए फैसलों से जुड़ा दृश्य

उत्तराखंड : कैबिनेट बैठक में कुंभ, शिक्षा और ई-स्टैंपिंग पर बड़े फैसले

मोदी सरकार की रणनीति से समाप्त होता नक्सलवाद

महात्मा गांधी के हिंद सुराज की कल्पना को नेहरू ने म्यूजियम में डाला : दत्तात्रेय होसबाले जी

BKI आतंकी आकाश दीप इंदौर से गिरफ्तार, दिल्ली और पंजाब में हमले की साजिश का खुलासा

CFCFRMS : केंद्र सरकार ने रोकी ₹5,489 करोड़ की साइबर ठगी, 17.82 लाख शिकायतों पर हुई कार्रवाई

फर्जी पासपोर्ट केस में अब्दुल्ला आज़म को बड़ा झटका, हाईकोर्ट ने याचिकाएं खारिज कीं

अवैध रूप से इस्लामिक कन्वर्जन करने वाले आरोपी अब पुलिस की गिरफ्त में हैं।

आगरा में इस्लामिक कन्वर्जन: मुख्य आरोपी रहमान के दो बेटे भी गिरफ्तार, राजस्थान के काजी की तलाश कर रही पुलिस

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • जीवनशैली
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies