उनाकोटि : पहाड़ पर उकेरा दिव्य शिल्प

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सुरेश्वर त्रिपाठी

पहाड़ों पर ही एक करोड़ से एक कम देवताओं की मूर्तियां बनायी गयी हैं। उनाकोटि का मतलब होता है एक करोड़ में एक कम। इस संबंध में वहां कई कथाएं प्रसिद्ध हैं। एक है कि भगवान शंकर काशी की यात्रा पर थे। उनके साथ एक करोड़ देवी-देवता भी थे।

त्रिपुरा में स्थित उनाकोटि के बारे में मैंने सुन रखा था कि वहां पहाड़ों पर ही एक करोड़ से एक कम देवताओं की मूर्तियां बनायी गयी हैं। उनाकोटि का मतलब होता है एक करोड़ में एक कम। इस संबंध में वहां कई कथाएं प्रसिद्ध हैं। एक है कि भगवान शंकर काशी की यात्रा पर थे। उनके साथ एक करोड़ देवी-देवता भी थे।

सुरेश्वर त्रिपाठी
(लेखक यायावर, साहित्यकार और फोटोग्राफर हैं)

कैलाशहर के पास ही स्थित पहाड़ों में उन्होंने रात्रि विश्राम का निर्णय लिया। सोने से पहले भगवान शंकर ने सभी देवी-देवताओं से कहा कि भोर में ही उठकर यात्रा को आगे बढ़ाना है। जब शंकर जी भोर में उठे तो उन्होंने देखा कि सभी देवी-देवता सो रहे हैं। अब शंकर जी का क्रोध तो जगजाहिर है। गुस्से में उन्होंने श्राप दे दिया कि ये सभी देवी-देवता हमेशा के लिए वहीं सो जाएंगे। और, वहां वे देवी देवता पत्थर की मूर्तियों में बदल गये। चूंकि एक करोड़ में भगवान शंकर भी शामिल थे और वे अपनी काशी यात्रा के लिए चल पड़े थे, इसलिए कहते हैं, वहां एक करोड़ से एक कम देवी-देवता मूर्तियों में बदलेऔर उस जगह का नाम पड़ा, उनाकोटि।

उनाकोटि अगरतला से लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर है और यहां जाने के लिए अगरतला से सड़क मार्ग ही बेहतर साधन है। एक कोहरे वाली सुबह हम उनाकोटि के लिए निकले। नौ बजते-बजते कोहरा पूरी तरह छंट गया। हमने रास्ते में रुककर कोहरे भरे ठण्डे मौसम में चाय नाश्ते का आनन्द लिया और आगे बढ़ते रहे। मैदानी इलाकों के लिए यह दूरी कुछ नहीं है, तीन घंटे में आराम से पहुंच सकते हैं परन्तु यहां रह-रह कर रास्ते पहाड़ी चक्करदार रास्तों में बदलते जा रहे थे। यहां के पहाड़ मिट्टी के बने हुए हैं। इसीलिए यहां केले के जंगलों की भरमार थी।

उनाकोटि में प्रवेश करते ही एक तीन आंखों वाली लगभग तीस फुट ऊंची मूर्ति पर नजर जाती है। इसे उनाकोटिश्वर काल भैरव की मूर्ति कहा जाता है। पास ही में शिव के नन्दी की मूर्ति सतह पर बनी हुई देखी जा सकती है। वहां, गणेशजी, हनुमानजी, दुर्गाजी आदि की मूर्तियां दिखायी दे रही थीं। मेरा सबसे बड़ा कौतुहल था कि एक ही जगह एक करोड़ मूर्तियां मैं देख सकूं। मैं सैकड़ों सीढ़ियां उतरकर नीचे गया, फिर वहां से लम्बी चढ़ाई करके सामने ऊपर पहुंचा।

बेतरतीब सी ढलानों और ऊंचाइयों पर केले ही केले और उनमें फलों के गुच्छे भी लटक रहे थे। सड़कों के किनारे वनवासी तरह-तरह के सामान बेच रहे थे। फूल झाड़ू यहां खूब सस्ते में मिलते हैं, इसलिए इसे बेचने वालों की संख्या सबसे ज्यादा थी। केले के फल, फूल, तना सब खाने के काम आते हैं और यह यहां का एक प्रमुख भोजन है। रास्ते में वनवासियों से मिलना भी कम रोमांचकारी नहीं था। एक जगह कार चालक ने बताया कि हम बांग्लादेश की सीमा से सटकर गुजर रहे हैं। वहां कंटीले तारों के बाड़ लगी थी और जगह-जगह सीमा सुरक्षा बल की चौकियां भी थीं। कुछ ही दूर आगे बढ़े तो रबर के घने जंगल मिले।

उनाकोटि में प्रवेश करते ही एक तीन आंखों वाली लगभग तीस फुट ऊंची मूर्ति पर नजर जाती है। इसे उनाकोटिश्वर काल भैरव की मूर्ति कहा जाता है। पास ही में शिव के नन्दी की मूर्ति सतह पर बनी हुई देखी जा सकती है। वहां, गणेशजी, हनुमानजी, दुर्गाजी आदि की मूर्तियां दिखायी दे रही थीं। मेरा सबसे बड़ा कौतुहल था कि एक ही जगह एक करोड़ मूर्तियां मैं देख सकूं। मैं सैकड़ों सीढ़ियां उतरकर नीचे गया, फिर वहां से लम्बी चढ़ाई करके सामने ऊपर पहुंचा।

वैसे तो वहां से पहाड़ की सीधी चट्टानों पर बड़ी-बड़ी मूर्तियां बनी दिखीं पर जगह-जगह मूर्तियां बिखरी भी हुई थीं। जिस पत्थर को देखो, उसी में मूर्ति बनायी गयी थी। लेकिन सब घूमने-फिरने के बाद भी मुझे यह नहीं लगा कि यहां एक करोड़ मूर्तियां हैं। मुझे बताया गया कि पहले यहां देखरेख ठीक नहीं थीं, इसलिए बहुत सी मूर्तियां यहां से गायब हो गयीं। उनाकोटि से लगभग 20 किलोमीटर दूर कैलाशहर में रात्रि में रुकने की व्यवस्था तो थी परन्तु हमने वापसी करना ठीक समझा और रात में लगभग दस बजे अगरतला के अपने आवास पर पहुंच गये।

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