सत्ता की ताकत और प्रशासन का दुरुपयोग कर तृणमूल कांग्रेस राजनीतिक लाभ उठा रही है। पुलिस पर पक्षपात के आरोप हैं। विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि हिंसा के अधिकांश मामलों में पुलिस विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के विरुद्ध कार्रवाई कर रही है, जबकि सत्तारूढ़ दल के गुंडे बेखौफ हिंसक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं।
पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव की घोषणा के साथ शुरू हुआ खून-खराबा कहां जाकर थमेगा, इसका अनुमान राजनीतिक विश्लेषकों को भी नहीं है। राजनीतिक हिंसा में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस अपनी पूर्ववर्ती वाममोर्चा सरकार को भी मात दे रही है। विपक्ष को डरा-धमकाकर खामोश करने की पुरानी प्रवृत्ति आज भी दिख रही है, जो डेढ़-दो दशक पहले तक वामपंथियों की खूनी राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा रही थी। सत्ता की ताकत और प्रशासन का दुरुपयोग कर तृणमूल कांग्रेस राजनीतिक लाभ उठा रही है। पुलिस पर पक्षपात के आरोप हैं। विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि हिंसा के अधिकांश मामलों में पुलिस विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के विरुद्ध कार्रवाई कर रही है, जबकि सत्तारूढ़ दल के गुंडे बेखौफ हिंसक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं।
पुलिस के पक्षपातपूर्ण रवैये के विरुद्ध कलकत्ता उच्च न्यायालय में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं। किसी याचिका में विपक्ष ने हिंसा पर रोक लगाने की मांग की है, तो किसी में उम्मीदवारों की सुरक्षा, केंद्रीय बलों की तैनाती तथा एक से अधिक चरण में पंचायत चुनाव कराने का निर्देश देने की मांग की गई है। इनमें से कई मामलों में अदालत का फैसला भी आ चुका है, जबकि कुछ विचाराधीन हैं। कुछ में राज्य सरकार को राहत मिली है, तो कई मामलों में झटके भी लगे हैं। जिन मामलों में अदालत ने सत्ता पक्ष के विरुद्ध निर्णय दिए हैं, उन्हें चुनौती भी दी जा रही है।
पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा का पुराना इतिहास है। चुनाव चाहे लोकसभा-विधानसभा के हों या स्थानीय निकायों के, हिंसा और मार-काट हमेशा से इसका हिस्सा रह हैं। लेकिन ताजा पंचायत चुनाव में हिंसा का जो भयावह रूप देखने को मिल रहा है, वह अभूतपूर्व है। आलम यह है कि नामांकन दाखिल करने के दौरान ही मौतों का आंकड़ा दहाई में पहुंच गया।
अमूमन राज्य में सबसे हिंसा मतदान के दौरान या उसके बाद होती है, लेकिन इस बार मतदान से पहले ही व्यापक हिंसा हो रही है। विपक्षी दलों के कार्यकर्ता-समर्थक राजनीतिक हिंसा का शिकार हो रहे हैं। बढ़ती हिंसक घटनाओं से चिंतित राज्यपाल डॉ. सीवी आनंद बोस लगातार हिंसाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा कर पीड़ितों से मिल रहे हैं, लेकिन ममता बनर्जी की अगुआई वाली तृणमूल सरकार को उनकी सक्रियता रास नहीं आ रही। सत्ता पक्ष की ओर से उन पर लगातार व्यक्तिगत हमले किए जा रहे हैं।
पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा का पुराना इतिहास है। चुनाव चाहे लोकसभा-विधानसभा के हों या स्थानीय निकायों के, हिंसा और मार-काट हमेशा से इसका हिस्सा रह हैं। लेकिन ताजा पंचायत चुनाव में हिंसा का जो भयावह रूप देखने को मिल रहा है, वह अभूतपूर्व है। आलम यह है कि नामांकन दाखिल करने के दौरान ही मौतों का आंकड़ा दहाई में पहुंच गया।
नवनियुक्त राज्य चुनाव आयुक्त राजीव सिन्हा ने 8 जून को पंचायत चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की और 9 जून से नामांकन की प्रक्रिया के साथ हिंसक घटनाएं शुरू हो गईं। चुनाव की घोषणा के साथ ही भाजपा और कांग्रेस ने चुनाव आयुक्त की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए केंद्रीय बलों की निगरानी में चुनाव कराने की मांग की। भाजपा नेता सुवेंदू अधिकारी ने कहा कि राज्य चुनाव आयोग सत्ता पक्ष के इशारों पर काम कर रहा है। पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने 2018 के पंचायत चुनाव में 60 से अधिक भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या का हवाला देते हुए केंद्रीय बलों की निगरानी में चुनाव कराने की मांग की। इसे लेकर उन्होंने अदालत तक जाने की बात ही। वहीं, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि पुलिस निगरानी में पारदर्शी तरीके से चुनाव संभव नहीं है। इसलिए केंद्रीय बलों की तैनाती की जानी चाहिए।
याचिकाओं की बाढ़
भाजपा और कांग्रेस ने 9 जून को ही कलकत्ता उच्च न्यायालय में अलग-अलग याचिकाएं दाखिल कर आॅनलाइन नामांकन सुविधा प्रदान करने और केंद्रीय बलों की निगरानी में चुनाव कराने की मांग की थी। इस पर अदालत ने चुनाव आयोग को नामांकन की समयसीमा बढ़ाने पर विचार करने का निर्देश दिया और केंद्रीय बलों की तैनाती का फैसला राज्य सरकार पर छोड़ दिया। इसके बाद 12 जून को विपक्ष द्वारा दाखिल जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम और हिरण्मय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने आयोग से पंचायत चुनाव 8 जुलाई के बजाय 14 जुलाई को कराने को कहा।
साथ ही, मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि यदि केंद्रीय बलों की निगरानी में चुनाव कराए जाएं तो अधिक अच्छा होगा। इसी दिन नामांकन के दौरान नादिया, बांकुड़ा, दक्षिण 24 परगना सहित राज्य के कई जिलों में हिंसक घटनाएं हुर्इं। तृणमूल समर्थकों पर विपक्षी पार्टियों के उम्मीदवारों के नामांकन में बाधा डालने और उनसे मारपीट करने के आरोप लगे। बढ़ती हिंसक घटनाओं को देखते हुए राज्य चुनाव आयोग ने नामांकन केंद्र के एक किलोमीटर के दायरे में धारा 144 लगा दी। लेकिन हिंसा की घटनाओं में कमी नहीं आई। 13 जून को उच्च न्यायालय ने नामांकन की समयसीमा बढ़ाने से इनकार करते हुए फैसला आयोग पर छोड़ दिया। साथ ही, संवेदनशील जिलों में केंद्रीय बलों की तैनाती का निर्देश दिया।
13 जून को ही दक्षिण 24 परगना के भांगड़ में बीडीओ कार्यालय के पास तृणमूल कांग्रेस और इंडियन सेकुलर फ्रंट (आईएसएफ) के कार्यकर्ताओं के बीच जमकर पथराव एवं बमबारी हुई। हालात को संभालने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस के गोले दागने पड़े। इससे पहले यहां तृणमूल कांग्रेस के एक नेता के घर तोड़-फोड़ एवं बमबारी हुई थी, जिसके लिए तृणमूल ने आईएसएफ को जिम्मेदार ठहराया था। इस घटना के बाद अगले चार-पांच दिनं तक हिंसा जारी रही।
इसी बीच, 14 जून को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पुलिस को आईएसएफ उम्मीदवारों को नामांकन-पत्र दाखिल करने में मदद करने का आदेश दिया। 15 जून को नामांकन के आखिरी दिन भांगड़ में आईएसएफ के एक कार्यकर्ता की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस दौरान तृणमूल के भी दो कार्यकर्ता घायल हुए।
24 परगना के भांगड़ में बीडीओ कार्यालय के पास तृणमूल कांग्रेस और इंडियन सेकुलर फ्रंट (आईएसएफ) के कार्यकर्ताओं के बीच जमकर पथराव एवं बमबारी हुई। हालात को संभालने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस के गोले दागने पड़े। इससे पहले यहां तृणमूल कांग्रेस के एक नेता के घर तोड़-फोड़ एवं बमबारी हुई थी, जिसके लिए तृणमूल ने आईएसएफ को जिम्मेदार ठहराया था। इस घटना के बाद अगले चार-पांच दिनं तक हिंसा जारी रही।
घटना के समय पुलिस मौजूद थी, लेकिन वह कुछ नहीं कर पाई। इसी दिन विपक्षी दलों की ओर से उच्च न्यायालय में दाखिल याचिका में नामांकन के दौरान हुई व्यापक हिंसा का हवाला देकर कहा गया कि किसी भी सूरत में चुनाव को राज्य पुलिस के भरोसे नहीं छोड़ा जाए। तब अदालत ने राज्य के सभी जिलों में केंद्रीय बलों की तैनाती का आदेश दिया और चुनाव आयोग को 24 घंटे के भीतर इस पर अमल करने को कहा। एक अन्य आदेश में उच्च न्यायालय ने कहा कि जहां-जहां से विपक्षी उम्मीदवारों को नामांकन नहीं करने देने की शिकायतें आ रही हैं, वहां पुलिस अपनी सुरक्षा में पर्चा दाखिल कराएगी।
साथ ही, उच्च न्यायालय ने 16 जून को राज्य सरकार द्वारा केंद्रीय बलों की तैनाती के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए सवाल किया कि चुनाव आयोग से जुड़े मामले में राज्य सरकार कैसे याचिका लगा रही है? इसी दिन, उच्च न्यायालय में राज्य पुलिस के विरुद्ध अदालत की अवमानना का मामला आया। दरअसल, उच्च न्यायालय ने उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिला पुलिस को निर्देश दिया था कि विपक्ष के जिन उम्मीदवारों का नामांकन नहीं हुआ है, वह उन्हें सुरक्षा देकर बीडीओ कार्यालय में पहुंचा कर नामांकन करवाए। लेकिन पुलिस ने आदेश का पालन नहीं किया।
हिंसा में अब तक हुई मौतें
- 10 जून – डोमकल (मुर्शिदाबाद) में कांग्रेस कार्यकर्ता फूलचंद शेख की गोली मारकर हत्या। तृणमूल का हाथ होने का आरोप।
- 15 जून – दक्षिण 24 परगना के भांगड़ में आईएसएफ कार्यकर्ता मो. मोहिउद्दीन मोल्ला, उत्तर दिनाजपुर के चोपड़ा व इस्लामपुर में कांग्रेस के दो कार्यकर्ताओं की हत्या।
- 16 जून – मालदा जिले में अज्ञात हमलावरों ने तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार मुस्तफा शेख की पीट-पीटकर हत्या कर दी।
- 16 जून – मुर्शिदाबाद में अज्ञात हमलावरों ने तृणमूल के अंचल अध्यक्ष मुज्जमल हक की गोली मारकर हत्या की।
- 22 जून – रात को पुरुलिया के आद्रा में तृणणूल कांग्रेस के नेता धनंजय चौबे की गोली मारकर हत्या।
- 27 जून – कूचबिहार जिले के दिनहटा में तृणमूल नेता बाबू हक की गोली मारकर हत्या।
- 29 जून – पश्चिम मिदनापुर के सबांग में भाजपा कार्यकर्ता दीपक सामंत का शव घर के पास फंदे से लटका मिला। हत्या का आरोप तृणमूल पर।
- 1 जुलाई – दक्षिण 24 परगना के कैनिंग में तृणमूल के युवा नेता जाहिरुल मोल्ला की हत्या।
- 5 जुलाई – उत्तर 24 परगना के देगंगा में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता के 17 वर्षीय बेटे इमरान हसन की बम धमाके में हत्या।
निशाने पर राज्यपाल
दूसरी ओर, 16 जून को ही राज्यपाल ने दक्षिण 24 परगना जिले के हिंसाग्रस्त भांगड़ का दौरा किया, जहां आईएसएफ कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद वे तृणमूल के निशाने पर आ गए। लेकिन हिंसा और हत्या का दौर नहीं थमा। मुर्शिदाबाद, मालदा, नादिया, दक्षिण 24 परगना सहित विभिन्न जिलों से मारपीट, गोलाबारी, बमबारी और हत्या की खबरें आती रहीं। 17 जून को कूचबिहार जिले के दिनहाटा में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री निशीथ प्रमाणिक के काफिले पर हमला हुआ।
हमले का आरोप राज्य के मंत्री उदयन गुहा के समर्थकों पर आरोप लगा। उसी दिन मालदा में तृणमूल के एक नेता की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। उधर, राज्यपाल ने दक्षिण 24 परगना जिले के हिंसाग्रस्त कैनिंग इलाके का दौरा किया। दूसरी तरफ, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने नामांकन प्रक्रिया के दौरान व्यापक हिंसा पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की।
19 जून को कांग्रेस और भाजपा की ओर से केंद्रीय बलों की तैनाती संबंधी उच्च न्यायालय के आदेश पर अमल नहीं करने पर चुनाव आयोग पर अवमानना का आरोप लगाते हुए याचिका दायर की गई। उच्च न्यायालय ने आयोग से 48 घंटे के अंदर केंद्रीय बलों की तैनाती के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय से अनुरोध करने का निर्देश दिया था। लेकिन आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर कहा कि उच्च न्यायालय के निर्देश को लागू करना संभव नहीं है, क्योंकि चुनाव में सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य की है। इसलिए अनुरोध करना आयोग का काम नहीं है।
केंद्रीय बलों की निगरानी में चुनाव कम से कम सत्तारूढ़ तृणमूल के लिए तो सुखद नहीं हैं। पंचायत चुनाव की घोषणा के बाद से हुई हिंसा में 15 लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं। केंद्रीय बलों की 822 कंपनियों की तैनाती से हालात में सुधार की गुंजाइश भले दिखती है, लेकिन अतीत को देखते हुए यह दावा नहीं किया सकता कि चुनाव शांतिपूर्ण होंगे।
इस पर 21 जून को उच्च न्यायालय ने राज्य चुनाव आयुक्त को फटकार लगाते हुए कहा कि यदि वे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में सक्षम नहीं हैं, तो पद छोड़ दें। साथ ही, अदालत ने राज्य में जल्द से जल्द केंद्रीय बलों की तैनाती का निर्देश देते हुए स्पष्ट किया कि पिछले पंचायत चुनाव को देखते हुए कम से कम 82,000 जवानों की तैनाती की जाए।
24 जून को यह स्पष्ट हो गया कि राज्य की कुल 73,887 त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव सीटों में से 9,013 पर चुनाव नहीं होंगे। पिछली बार तृणमूल कांग्रेस ने 9,000 से अधिक सीटों पर निर्विरोध जीत दर्ज की थी। यानी सत्तारूढ़ पार्टी को चुनाव में व्यापक हिंसा का सुफल मिला। भले ही डर के कारण विपक्षी दलों ने इन सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारे या नामांकन दाखिल नहीं किए।
आज भी वही हो रहा है। हिंसा को लेकर विपक्षी दलों की आशंकाओं और चिंताओं पर न तो राज्य सरकार और न ही प्रशासन ध्यान दे रहा है। राज्य के पुलिस महानिदेशक दावा कर रहे हैं कि राज्य में अभी तक हिंसा की कोई ‘बड़ी’ घटना हुई ही नहीं है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद नामांकन प्रक्रिया को शांतिपूर्ण करार दे चुकी हैं।
बहरहाल, केंद्रीय बलों की निगरानी में चुनाव कम से कम सत्तारूढ़ तृणमूल के लिए तो सुखद नहीं हैं। पंचायत चुनाव की घोषणा के बाद से हुई हिंसा में 15 लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं। केंद्रीय बलों की 822 कंपनियों की तैनाती से हालात में सुधार की गुंजाइश भले दिखती है, लेकिन अतीत को देखते हुए यह दावा नहीं किया सकता कि चुनाव शांतिपूर्ण होंगे।
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