फ्रांस में उपद्रव थमने का नाम नहीं ले रहा है। हालांकि पांच दिन पहले शुरू हुए पुलिस विरोधी दंगों में कल कई जगह कुछ राहत महसूस की गई है। पेरिस की सड़कों पर 45 हजार पुलिसकर्मी उतारे गए थे, जिन्होंने रात भर मुस्तैदी से मोर्चा संभाले रखा। पुलिस की गोली से एक किशोर की मौत के बाद भड़काए गए उपद्रवों को लेकर राष्ट्रपति मैक्रों अचंभित और चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि इन दंगों के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से तनाव को फैलाया गया। मैक्रों ने इस संबंध में आगे जांच करने का संकेत दिया है।
इधर फ्रांस सरकार ने लोगों अपील की है कि शांति कायम करें। लेकिन दूसरी तरफ पुलिस को भी उपद्रवियों पर सख्ती बरतने को कहा गया है। लेकिन फ्रांस में अब भी कुछ जगहों को छोड़कर तनाव कम होता नहीं दिखा है। स्वार्थी और उन्मादी तत्व दंगे भड़काए रखते हुए अस्थिरता फैलाकर लूटपाट कर रहे हैं। प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस अब तक करीब 3 हजार दंगाइयों को पकड़ चुकी है। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि हालात नियंत्रण में हैं। पता चला है कि उपद्रवियों ने 2,400 से ज्यादा दुकानों को लूटपाट के बाद आग के हवाले कर दिया है। इन दंगों के पीछे कल राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों ने सोशल मीडिया को आड़े हाथों लिया है।
राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा कहा कि दंगे भड़काने में टिकटॉक, स्नैपचैट, ट्विटर तथा अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म ने जबरदस्त लापरवाही बरती है। उनकी इसी गैर जिम्मेदारी की वजह से पूरा फ्रांस जल रहा है। मैक्रों ने स्पष्ट कहा कि फ्रांस सरकार कोशिश कर रही है कि सोशल मीडिया पर प्रसारित की जा रही आपत्तिजनक तथा गैर-जिम्मेदार सामग्री को हटाया जाए। इससे बेवजह तनाव बढ़ा है। सरकार ने यह भी कहा कि इसके पीछे जो भी जिम्मेदार पाया जाएगा उस पर कार्रवाई की जाएगी।
फ्रांस में साइबर नियमों का उल्लंघन करने वालों पर गंभीर कार्रवाई की जाती है, क्योंकि कानूनन यह अपराध माना जाता है। इस पर सख्त कानून बना हुआ है। इसके तहत बलात्कार तथा हत्या जैसे गंभीर अपराधों जैसे ही ऑनलाइन दी जाने वाली धमकियों को लेकर भी मुकदमा चलाना संभव है। यह विधेयक वहां 2020 में पारित किया गया था। इस कानून में है कि सोशल मीडिया तथा सर्च इंजन में से प्रतिबंधित सामग्री को 24 घंटे के अंदर हटाया जाए। ऐसा न करने पर उस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कार्रवाई किए जाने का प्रावधान है।
उल्लेखनीय है कि यूरोप के देश फ्रांस में साइबर नियमों का उल्लंघन करने वालों पर गंभीर कार्रवाई की जाती है, क्योंकि कानूनन यह अपराध माना जाता है। इस पर सख्त कानून बना हुआ है। इसके तहत बलात्कार तथा हत्या जैसे गंभीर अपराधों जैसे ही ऑनलाइन दी जाने वाली धमकियों को लेकर भी मुकदमा चलाना संभव है। यह विधेयक वहां 2020 में पारित किया गया था। इस कानून में है कि सोशल मीडिया तथा सर्च इंजन में से प्रतिबंधित सामग्री को 24 घंटे के अंदर हटाया जाए। ऐसा न करने पर उस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कार्रवाई किए जाने का प्रावधान है।
इधर राष्ट्रपति मैक्रों ने यह बयान दिया उधर सोशल मीडिया प्लेटफार्म स्नैपचैट की तरफ से उसके प्रवक्ता राचेल राक्यूसेन सामने आए। उन्होंने कहा कि उसकी कंपनी सरकार के आदेशों के अनुसार, कड़े कदम उठाएगी। स्नैपचैट का जांच दल पता लगा रहा है कि दंगों से जुड़ी सामग्री कब, कहां, किसने पोस्ट की थी। लेकिन टिकटॉक, फेसबुक तथा इंस्टाग्राम ने अभी कोई बयान जारी नहीं किया है।
यह संतोष की बात है कि फ्रांस में सोशल मीडिया कंपनियां सरकार के नियमों के अनुसार काम करती हैं। उनके लिए ऐसा करना बाध्यता है। टिकटॉक हो, स्नैपचैट या ट्विटर, सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म शिकायत प्राप्त होने पर पुलिस जांच में मदद करते हैं। उन्हें पता है कि हिंसा अथवा किसी अन्य गैर-कानूनी गतिविधि के लिए उसके प्लेटफॉर्म का प्रयेाग फ्रांस सरकार की नीतियों के विरुद्ध है।
दरअसल दंगे फैलने की वजह सात दिन पहले, पेरिस के निकट पुलिस ने 17 साल के अल्जीरिया मूल के एक किशोर नाहेल को यातायात नियम तोड़ने पर रोका था। लेकिन वह रुकने की बजाय भाग खड़ा हुआ। ऐसे में पुलिस ने गोली चलाई, जिसमें वो मारा गया। इसके बाद विरोध प्रदर्शन होने लगे। पुलिस ने उन पर सख्ती की। इस पर ये विरोध प्रदर्शन पूरे देश में किए जाने लगे और दंगों में बदल गए। वाहनों को आग लगाई गई, दुकानें लूटी गईं, जलाई गईं। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, फ्रांस ने जो बड़ा दिल दिखाते हुए, मुस्लिमों को अपने देश में खुलकर पनाह दी हुई है, अब वही उन्मादी तत्व उस देश को तार—तार करने में लगे हैं!
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