21 जून के दिन ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ के साथ ‘विश्व संगीत दिवस’ इसलिए मनाया जाता है क्यूंकि सनातन वैदिक मान्यता के अनुसार ‘योग’ की भांति ‘संगीत’ भी उत्तम स्वास्थ्य के वरदान के साथ जीवात्मा को परमात्मा से जोड़ने का सर्वाधिक सशक्त माध्यम है। सनातन हिंदू दर्शन में ‘नाद’ को ब्रह्म की संज्ञा यूं ही नहीं दी गयी है। वैदिक चिंतन के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति ‘नाद’ से हुई है और यह अनहद नाद (ओम् की ध्वनि) समूचे विश्व ब्रह्माण्ड में सतत गूंजता रहता है। परीक्षण के उपरांत यह तथ्य अब ‘नासा’ के वैज्ञानिक भी प्रमाणित कर चुके हैं। मानवी चेतना के मर्मज्ञ हमारे महान वैदिक मनीषियों का प्रतिपादन है कि ‘योग’ और ‘संगीत’ दोनों ही नाद विद्या के अंतर्गत आते हैं। जिस प्रकार योग विज्ञान में सात चक्रों (मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार) का जागरण महत्वपूर्ण होता है; ठीक वैसे ही संगीत के सात स्वरों का सीधा सम्बन्ध मानवीय काया में उपस्थित सात चक्रों से होता है। संगीत के आधारभूत सात स्वरों- सा, रे, ग, म, प, ध, नि का सम्बन्ध इन्हीं सप्त चक्रों से है। मूलाधार का सम्बन्ध ‘सा’ से, स्वाधिष्ठान का ‘रे’, मणिपुर का ‘ग‘, अनाहत का ‘म’, विशुद्ध का ‘प’, आज्ञाचक्र का ‘ध’ एवं सहस्रार का ‘नि’ से माना जाता है। इसी कारण संगीत के स्वर केवल मन को ही झंकृत नहीं करते, बल्कि शरीर के अंग-प्रत्यंगों पर भी अपनी तान की छाप छोड़ते हैं। शास्त्रीय संगीत के जानकारों की मानें तो छठी शताब्दी में मतंग मुनि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित ‘बृहद्देशी’ ग्रंथ में स्वर विज्ञान के विस्तृत विवरण के साथ उसके बहुआयामी लाभों के विविध पहलुओं का उल्लेख किया गया है।
भारतीय संगीत के जाने माने जानकार प्रोफेसर रामकृष्णन कवि के अनुसार संगीत को ‘हृदय की वाणी’ कहा जाता है क्योंकि संगीत का सूक्ष्म प्रभाव मन के बारीक तन्तुओं एवं सुकोमल भावनाओं पर पड़ता है और शरीर की समस्त जैविक क्रिया पद्धति इन्हीं मनोभावों से जुड़ी होती है। उनके अनुसार शोध में साबित हुआ है कि राग ‘भैरवी’ से शरीर में कफजन्य बीमारियाँ दूर होती हैं। राग ‘आसावरी’ रक्त अशुद्धियों का शमन करता है। राग ‘मल्हार’ से क्रोध एवं मानसिक अस्थिरता दूर होते हैं। राग ‘सौरत’ एवं राग ‘जैजैवन्ती’ से मानसिक रोगों से छुटकारा मिलता है। श्वाँस सम्बन्धी बीमारी, तपेदिक, खाँसी, दमा आदि में राग ‘भैरवी’ का प्रयोग लाभकारी देखा गया है। राग ‘हिण्डोल’ से मेधा वृद्धि तथा यकृत व प्लीहा रोगों से आराम मिलता है। ‘इसके अलावा शंख और घण्टा की ध्वनि भी इस क्षेत्र में चमत्कारिक परिणाम उत्पन्न करती देखी गयी है। यही वह मूल आधार है जिसके कारण चिकित्सा क्षेत्र भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक लोकप्रियता हासिल हो रही है और पाश्चात्य जगत में ‘म्यूजिक थेरेपी’ के प्रति गहरा आकर्षण देखा जा रहा है।
सुप्रसिद्ध अमेरिकी मनोचिकित्सक डॉ. एम. जेनी के अनुसार शोधों से साबित हुआ है कि भारतीय रागों से मस्तिष्क की सिकुड़ी हुई मांसपेशियों को नूतन शक्ति मिलती है। इस संगीत की स्वर आकृतियाँ कानों की झिल्लियों को प्रकम्पित करती हैं। परिणामतः स्नायु तंत्र के सेन्सरी एवं मोटर नर्वस सजग व सक्रिय होकर शारीरिक प्राण चेतना के प्रवाह को बढ़ा लेते हैं। इसी तरह वेस्ट वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की प्रोफेसर किम इंस ने अपने शोध अध्ययन में वैज्ञानिक तरीके से तस्दीक की है कि जब बात संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की हो तो मेडिटेशन और म्यूजिक दोनों समान रूप से कारगर हैं। संगीत स्ट्रेस हारमोन कार्टिसोल के स्तर को कम करता है, वहीं योगासन के अंतर्गत ध्यान और प्राणायाम के जरिए तनाव, ब्लड प्रेशर पर नियंत्रण, दिल की बीमारियों का ख़तरा कम होने के साथ ही मांसपेशियों को मज़बूती मिलती है। जिसकी वजह से मन प्रसन्न और शरीर निरोगी रहता है। संगीत सुनते हुए ध्यान और योग करने का विचार बेहतरीन है। बर्लिन विश्वविद्यालय में हुए अनुसंधान से पता चलता है कि शंख-ध्वनि की लहरों से बैक्टीरिया और अन्य रोगों के जीवाणु नष्ट होते हैं। प्रति सेकेण्ड 27 घन फुट की शक्ति से यदि शंख को फूँका जाए तो 2200 फीट के क्षेत्र में रहने वाले बैक्टीरिया मर जाते हैं और 2600 फीट क्षेत्र के बैक्टीरिया निष्क्रिय हो जाते हैं। इसके साथ ही मलेरिया के कीटाणुओं का दुष्प्रभाव भी खत्म हो जाता है। शंख ध्वनि का प्रभाव मिर्गी, मूर्च्छा, कण्ठमाला तथा कोढ़ जैसे रोगों में अद्भुत रूप से देखा गया है।
शिकागो के डॉ. डी ब्राइन ने शंख ध्वनि के माध्यम से हजारों बहरे रोगियों को ठीक कर पौराणिक मान्यता को सही बताया है। इस दिशा में मास्को, सेनेटोरियम, जर्मनी, हालैण्ड आस्ट्रेलिया के कई शोध केन्द्रों में जारी अन्वेषण के नतीजे उत्साहवर्धक हैं। इन वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया है कि शंख ध्वनि एवं राग विशेष के स्वरों से मानसिक उपचार सफलता मिलती देखी गयी है। जापान के डॉ. हेकेने की मान्यता है कि पाश्चात्य संगीत की तुलना में भारतीय शास्त्रीय संगीत में रोग निवारण की क्षमता अपेक्षाकृत अत्यधिक होती है। उनके अनुसार भले ही वर्तमान समय में रॉक, जैज, बल्यू, रैप आदि पाश्चात्य संगीत अत्यधिक लोकप्रिय हो रहे हैं। हाइबिट्स के कारण लोग इन्हें पसन्द जरूर करते हैं, परन्तु इसका शारीरिक दुष्प्रभाव भी देखने को मिल रहा है। इस संदर्भ में स्वीडन तथा जर्मनी में अनेक शोध कार्य कर चुके डॉ. बालाजी ताम्बे का कहना है कि रॉक तथा हाईबिट्स संगीत को कम समय जैसे 5-10 मिनट तक सुनने से तो स्फूर्ति आती है, आलस्य दूर होता है पर इसे लगातार सुनने से रीढ़ की हड्डियों में कई प्रकार की समस्या पैदा हो जाती है। कान के अन्दर का द्रव सूख जाता है। इसी कारण चिकित्सा में भारतीय शास्त्रीय संगीत ही अधिक उपयोगी साबित हो रहे हैं। इसके विपरीत भारतीय शास्त्रीय संगीत चिकित्सा संवेदना के तारों से संचालित होती है।
हरिद्वार स्थित देव संस्कृति विश्वविद्यालय के शोध अध्ययनों में गया है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत की स्वर लहरियां तथा तरंगें स्नायु तंत्र को आन्दोलित-उद्वेलित कर रोग निवारण और तनाव मुक्ति में काफी सहायक होती है। इस कारण संगीत की धुनों और ध्वनि तरंगों में मंत्र विद्या की विलुप्त कड़ियों को यदि ढूंढ़ा व जोड़ा जा सके तो मंत्र चिकित्सा की भावी एवं नूतन पद्धति को विकसित किया जा सकता है और यह विधा मानव जीवन के लिए एक वरदान सिद्ध हो सकती है। प्रयोगों ने साबित किया है कि संगीत और योग की युति शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए बेहद लाभकारी है। कोरोना संकट काल में उपजे तनाव से दूरी बनाए रखने में संगीत एक मज़बूत सहारा रहा था। संगीत हो या योग दोनों ही आपमें ऊर्जा का संचार करते हैं। आपके बिगड़े मूड को भी बना देते हैं।
भजन सम्राट अनूप जलोटा कहते हैं कि संगीत को ईश्वर का दर्जा प्राप्त है। इसीलिए इस विधा में शुद्धता और शास्त्रीयता का विशेष महत्व है। सात शुद्ध और पांच कोमल स्वरों के माध्यम से मन को साधने का उपाय है संगीत। एक तरफ जहां ‘योग’ से मनुष्य शरीर, मन और मस्तिष्क को साधता है, वहीं ‘संगीत’ हमारी आत्मा को शुद्ध करता है। उनका कहना है कि भारत में भक्ति संगीत सदा अमर रहेगा। जिस तरह से योग आपके तनाव को दूर करता है उसी तरह इश्वर की भक्ति में लीन होने पर आप अपने सारे तनावों और दुखों को भूल जाते हैं। यह संगीत का चमत्कार होता है। योग और संगीत के खूबसूरत सामंजस्य का उद्देश्य तन के साथ मन की शुद्धता को हासिल करना है। संगीत शास्त्र व आध्यात्म एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं क्योंकि दोनों का ही उद्देश्य आत्म साक्षात्कार है।
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