जम्मू-कश्मीर में जो समस्याएं थीं, उसके लिए स्वतंत्रता के पश्चात् शासन करने वाले लोग जिम्मेदार थे। उस दौरान की सरकारों ने जम्मू-कश्मीर को पहाड़ी क्षेत्र बताकर वहां का विकास करने में रुचि नहीं दिखाई।
गत दिनों जून को गाजियाबाद में ‘सीमा क्षेत्र का एकीकृत विकास : एनजीओ की भूमिका’ विषय पर एक गोष्ठी आयोजित की गई। सीमा जागरण मंच द्वारा आयोजित इस गोष्ठी में 150 से अधिक एनजीओ के प्रतिनिधियों समेत 300 से अधिक लोगों ने भाग लिया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि और केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि सीमावर्ती क्षेत्रों को मजबूत करने के लिए वहां ढांचागत सुविधाएं बढ़ाना आवश्यक है और केंद्र सरकार इस दिशा में काम कर रही है।
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में जो समस्याएं थीं, उसके लिए स्वतंत्रता के पश्चात् शासन करने वाले लोग जिम्मेदार थे। उस दौरान की सरकारों ने जम्मू-कश्मीर को पहाड़ी क्षेत्र बताकर वहां का विकास करने में रुचि नहीं दिखाई।
सीमावर्ती क्षेत्रों से पलायन, सीमावर्ती क्षेत्रों में पर्यटन, जनसांख्यिकीय बदलाव पर शोध, खतरे और उपाय, बुनियादी ढांचे का विकास, कृषि विकास और पर्यावरणीय चुनौतियों जैसे बिंदुओं पर गहनता से चर्चा की गई और इस पर समग्र रूप से कार्य करने की योजना बनी।
सीमावर्ती क्षेत्रों को मजबूत करने के लिए वहां ढांचागत सुविधाएं बढ़ाना आवश्यक है और केंद्र सरकार इस दिशा में काम कर रही है।
-अर्जुन राम मेघवाल, केंद्रीय कानून मंत्री
जब जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू था, उस दौरान वहां के लोग आतंकियों के चलते खुद को असुरक्षित महसूस करते थे, लेकिन अब वहां के लोग खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। उन्होंने कहा कि हमें सीमावर्ती राज्यों में पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिए। इससे पूर्व सीमा जागरण मंच, दिल्ली प्रांत के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल (सेनि) नितिन कोहली ने कहा कि आज सीमावर्ती क्षेत्रों में सबसे बड़ी चुनौती घुसपैठ, मादक पदार्थों की तस्करी और कन्वर्जन है।
कार्यक्रम में अलग-अलग सत्रों में सीमावर्ती क्षेत्रों से पलायन, सीमावर्ती क्षेत्रों में पर्यटन, जनसांख्यिकीय बदलाव पर शोध, खतरे और उपाय, बुनियादी ढांचे का विकास, कृषि विकास और पर्यावरणीय चुनौतियों जैसे बिंदुओं पर गहनता से चर्चा की गई और इस पर समग्र रूप से कार्य करने की योजना बनी।
टिप्पणियाँ