उत्तराखंड के हिमालय में कई छोटे-बड़े बुग्याल मौजूद हैं। औली, गोरसों बुग्याल, दयारा बुग्याल, पंवालीकाण्ठा, चोपता, दुगलबिट्टा सहित कई बुग्याल हैं जो बरबस ही सैलानियों को अपनी और आकर्षित करते हैं। लेकिन इन सबसे अलग बेपनाह हुस्न और अभिभूत कर देने वाला सौन्दर्य को समेटे सीमांत जनपद चमोली के देवाल ब्लाक में स्थित औली बेदनी बुग्याल को केंद्र सरकार की पर्वतमाला परियोजना के तहत यदि रोपवे से जोडा जाए तो एशिया का सबसे बडा और खूबसूरत बुग्याल आली विश्वस्तरीय स्कीइंग डेस्टिनेशन और विंटर खेलों का प्रमुख क्रीडा केंद्र बन सकता है। स्थानीय ग्रामीण वर्ष 1992 से औली बेदनी बुग्याल को रोपवे से जोडने की मांग कर रहे हैं। वर्ष 1992-93 में विश्व प्रसिद्ध क्रीडा स्थल औली के जोशीमठ से रोपवे से जुडने के बाद औली-वेदनी की मांग ठंडे बस्ते में चली गई। 2014 में आयोजित हिमालयी महाकुम्भ नंदा देवी राजजात यात्रा के बाद स्थानीय ग्रामीणों द्वारा एक बार फिर से औली वेदनी बुग्याल को रोपवे से जोड़ने की मांग की जा रही है।
स्थानीय ग्रामीण और गढभूमि एडवेंचर के सीईओ हीरा सिंह गढ़वाली और देवेन्द्र बिष्ट कहते हैं कि औली-बेदनी बुग्याल पर्यटन के लिहाज से सबसे ज्यादा मुफीद है। इसे विश्वस्तरीय स्कीइंग रिजोर्ट के रूप में विकसित किया जा सकता है। जिससे न केवल पर्यटन बढ़ेगा बल्कि स्थानीय लोगों के लिए भी रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। स्थानीय लोग 1992 से औली-बेदनी को रोपवे से जोड़ने की मांग करते आ रहे हैं। हमने भी कई बार औली को पर्यटन केंद्र और स्कीइंग रिजोर्ट के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव पर्यटन विभाग और सरकार को भेजा है। स्थानीय विधायक द्वारा भी रणकधार से औली बेदनी बुग्याल को रोपवे से जोड़ने की मांग पर्यटन मंत्री और मुख्यमंत्री से की जा चुकी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि उत्तराखण्ड में पर्यटन को बढ़ावा देने और विश्वस्तरीय स्कीइंग डेस्टिनेशन के रूप में औली-बेदनी बुग्याल को विकसित करने की दीर्घकालीन सोच को चरितार्थ करने के लिए केंद्र की बहुउद्देशीय पर्वतमाला परियोजना के अंतर्गत रणकधार से औली रोपवे को मंजूरी मिलेगी। इससे न केवल पर्यटन गतिविधियां बढेंगी अपितु रोजगार के नए अवसरों का भी सृजन होगा। ऐतिहासिक नंदा देवी राजजात यात्रा आयोजन की दृष्टि से भी ये रोपवे भविष्य के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। साथ ही रोपवे टूरिज्म की उम्मीदों को भी पंख लगेंगे।
ये होते हैं बुग्याल
पहाड़ों में जहां पेड़ समाप्त होने लगते हैं यानी की टिम्बर रेखा वहां से हरे-भरे मखमली घास के मैदान शुरू हो जाते हैं। आपको यहीं पर स्नो और ट्रीलाईन का मिलन भी दिखाई देगा। उत्तराखंड में घास के इन मैदानों को बुग्याल कहा जाता है। ये बुग्याल सालों से स्थानीय लोगों के लिए चारागाह के रूप में उपयोग में आते हैं। जिनकी घास बेहद पौष्टिक होती हैं। इन मखमली घासों में जब बर्फ की सफ़ेद चादर बिछती है तो ये किसी जन्नत से कम नजर नहीं आती है। इन बुग्यालों में आपको नाना प्रकार के फूल और वनस्पति लकदक दिखाई देंगी। हर मौसम में बुग्यालों का रंग बदलता रहता है। बुग्यालों से हिमालय का नजारा ऐसे दिखाई देता है जैसे किसी कलाकार ने बुग्याल, घने जंगलों और हिमालय के नयाभिराम शिखरों को किसी कैनवास पर उतारा है। बुग्यालों में कई बहुमूल्य औषधि युक्त जडी-बू्टियां भी पाई जाती हैं। इसके साथ-साथ हिमालयी भेड़, हिरण, मोनाल, कस्तूरी मृग जैसे जानवर भी देखे जा सकते हैं।
ऐसे पहुंचा जा सकता है बेदनी-औली बुग्याल
चमोली के देवाल ब्लाक में स्थित बेदनी-औली बुग्याल तक पहुंचने के लिए कर्णप्रयाग से लगभग 100 किमी गाड़ी में जाना पड़ता है। कर्णप्रयाग से नारायणबगड़, थराली, देवाल, मुन्दोली होते हुए अंतिम गांव वाण गाड़ी से पहुंचा जाता है। वहीं दूसरी ओर काठगोदाम रेलवे स्टेशन से देवाल-वाण तक गाड़ी से पहुंचा जा सकता है। जबकि वाण गांव से औली तक का 13 किमी का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है। वाण गाँव से थोडा ऊपर जाने पर लाटू देवता का पौराणिक मंदिर है। जिसके कपाट पूरे साल में केवल एक ही दिन के लिए खुलते हैं। हिमालयी महाकुम्भ नंदा देवी राजजात यात्रा में लाटू देवता से अनुमति मिलने के बाद ही राजजात आगे बढ़ती है। लाटू देवता को माँ नंदा का धर्म भाई माना जाता है और राजजात में यहां से आगे नंदा का पथ प्रदर्शक लाटू ही होता है।
लाटू मंदिर के बाद रणकधार नामक जगह आती है। फिर आगे नील गंगा, गैरोली पाताल, डोलियाधर होते हुए बांज, बुरांस, कैल के घने जंगलों, नदी, पशु, पक्षियों के कलरव ध्वनियों के बीच 13 किमी पैदल चलने के उपरान्त 12 हजार फुट की ऊंचाई पर औली और बेदनी के मखमली बुग्याल के दीदार होते हैं। जो एशिया का सबसे बडा मखमली घास का बुग्याल है यह 5-10 किमी से भी अधिक क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त देखना किसी रोमांच से कम नहीं है। ये दोनों दृश्य बेहद ही अद्भभुत और अलौकिक होते हैं। साथ ही यहां से दिखाई देने वाले त्रिशूल और नंदा देवी सहित अन्य पर्वत श्रीखलाओं का दृश्य लाजवाब होता है। वहीं हरी मखमली घास, ओस की बूंदें, चारों ओर से हिमालय की हिमाच्छादित नयनाविराम चोटियां, धूप के साथ बादलों की लुकाछिपी आपको यहां किसी जन्नत का अहसास कराती है। दिसम्बर से मार्च तक यहां बिछी बर्फ की सफेद चादर स्कीइंग के लिए किसी ऐशगाह से कम नहीं है। इसे स्कीइंग रिसोर्ट के रूप में विकसित किया जा सकता है।
हिमालय को बेहद करीब से जानने वाले पर्वतारोही विजय सिंह रौतेला कहते हैं कि औली बेदनी बुग्याल की सुंदरता के सामने हर किसी का हुस्न फीका है। बरसात के समय हरी भरी घास की हरियाली मन को मोहित करती है तो बर्फ के समय पूरा बुग्याल सफ़ेद चादर से चमक उठता है। जबकि यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा देखना वाकई अद्भभुत है। सरकार को चाहिए की इस बुग्याल को रोपवे से जोड़े और पर्यटन के रूप में विकसित करे ताकि पर्यटन को बढ़ावा मिले और स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मुहैया हो सकें।
वास्तव में देखा जाए तो औली बेदनी बुग्याल को स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि पहाड़ों से प्यार करने वाले, देश से लेकर विदेशी भी औली की सुन्दरता के कायल हैं। औली की नैसर्गिक सुन्दरता आपको हिमालय के बहुत करीब ले जाती है। हरे घास का ये मैदान घोड़े की पीठ का आभास दिलाता है। हिमालय की गोद में बसे मखमली घास और फूलों के इस खजाने को अगर रोपवे से जोड़ा जाए तो इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और पर्यटक बेदनी औली में बर्फ की सफ़ेद चादर के दीदार करने और औली की ढलानों पर स्कीइंग करने यहां पहुंचेगा।
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