ओडिशा के बालेश्वर जिले में 2 जून की शाम को बाहनगा बाजार रेलवे स्टेशन पर भीषण रेल हादसा हुआ। ट्रेनों की टक्कर की आवाज और चीख-पुकार पास के गांवों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ स्वयंसेवकों ने सुनी और वे भाग कर स्टेशन आए। उन्होंने अपने स्तर पर बचाव कार्य शुरू कर दिया। इसके बाद राज्य और केंद्र सरकार की राहत और बचाव टीमें, पुलिस बल तथा चिकित्सकों की टीम पहुंची।
ओडिशा के बालेश्वर जिले में 2 जून की शाम को बाहनगा बाजार रेलवे स्टेशन पर भीषण रेल हादसा हुआ। इस दुर्घटना में कोलकाता से आ रही कोरोमंडल एक्सप्रेस और मालगाड़ी से टकरा गई। यह टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि कोरोमंडल एक्सप्रेस के कई डिब्बे पटरी से उतर कर दूसरी पटरी पर जा गिरे। अभी लोग कुछ समझ पाते कि तभी यशवंतपुर से हावड़ा जा रही दुरंतो एक्सप्रेस दूसरी पटरी पर कोरोमंडल एक्सप्रेस के डिब्बों से टकरा गई और उसके भी 3-4 डिब्बे पटरी से उतर गए। घटनास्थल पर चीख-पुकार मच गई। ट्रेनों की टक्कर की आवाज और चीख-पुकार पास के गांवों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ स्वयंसेवकों ने सुनी और वे भाग कर स्टेशन आए। उन्होंने अपने स्तर पर बचाव कार्य शुरू कर दिया। इसके बाद राज्य और केंद्र सरकार की राहत और बचाव टीमें, पुलिस बल तथा चिकित्सकों की टीम पहुंची।
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव बिना सोए लगातार लगभग 53 घंटे तक राहत एवं बचाव कार्यों में जुटे रहे और भीषण दुर्घटना के बावजूद न्यूनतम समय में रेल मार्ग पर ट्रेनों की आवाजाही शुरू करने के बाद ही हटे। उन्होंने दुर्घटना के कारणों की आरंभिक जांच को देखते हुए आपराधिक कोण की जांच के लिए केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से कराने का फैसला किया।
‘ओडिशा में ट्रेन हादसे से व्यथित हूं। दुख की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं शोक संतप्त परिवारों के साथ हैं। घायल जल्द स्वस्थ हों।’’
— नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
बड़ी रेल दुर्घटनाएं
भारतीय रेलवे के इतिहास में अब तक जितनी भी बड़ी दुर्घटनाएं हुई हैं, उनमें अधिकतर ट्रेनों के पटरी से उतरने से हुई हैं।
- दिसंबर 1964- पांबन-धनुष्कोटि पैसेंजर ट्रेन के रामेश्वरम के समीप चक्रवात के कारण दुर्घटनाग्रस्त। 126 से अधिक यात्रियों की मौत।
- जून 1981- बिहार में मानसी और सहरसा के बीच पुल पार करते समय ट्रेन बेपटरी। 7 डिब्बे बागमती नदी में गिरे, 800 यात्रियों की मौत।
- अगस्त 1995- पुरुषोत्तम एक्सप्रेस फिरोजाबाद के पास खड़ी कालिंदी एक्सप्रेस से टकराई। 360 से अधिक यात्रियों की मौत।
- सितंबर 1997- हावड़ा-अहमदाबाद एक्सप्रेस के पांच डिब्बे छत्तीसगढ़ में हसदेव नदी में गिरे, 81 यात्री मरे, 200 घायल।
- नवंबर 1998- टूटी पटरी के कारण स्वर्ण मंदिर मेल के तीन व जम्मू तवी-सियालदह एक्स. 6 डिब्बे पटरी से उतरे, 280 से अधिक यात्री मरे।
- अगस्त 1999 – कटिहार डिविजन के गैसल स्टेशन पर अवध असम एक्स. व ब्रह्मपुत्र मेल की टक्कर, 285 मरे, 300 से अधिक घायल।
- सितंबर 2002- गया और डेहरी-आन-सोन स्टेशन के बीच रफीगंज स्टेशन के पास हावड़ा-नई दिल्ली राजधानी एक्स. पटरी से उतरी, 130 मरे।
- अक्तूबर 2005- आंध्र प्रदेश में वेलुगोंडा के पास पैसेंजर ट्रेन के कई डिब्बे पटरी से उतरे, 77 लोग मारे गए।
- मई 2010- पश्चिम मिदनापुर में बेपटरी दो ट्रेनों से मालगाड़ी टकराई, 235 यात्रियों की मौत।
- जुलाई 2011- फतेहपुर में मेल ट्रेन के पटरी से उतरी, 70 यात्रियों की मौत और 300 से ज्यादा घायल।
- नवंबर 2016- इंदौर-राजेंद्रनगर एक्सप्रेस के 14 डिब्बे यूपी में पटरी से उतरे, 152 मरे, 200 से अधिक घायल।
- जनवरी 2017- जगदलपुर-भुवनेश्वर हीराखंड एक्सप्रेस के कई डिब्बे आंध्र प्रदेश में बेपटरी, 41 की मौत।
- अक्तूबर 2018- अमृतसर में रावण दहन देखने के लिए पटरियों पर जमा भीड़ ट्रेन की चपेट में आई, 59 लोगों की मौत।
टक्कर रोधी तकनीक ‘कवच’
अधिकारियों के अनुसार, फिलहाल दक्षिण मध्य रेलवे के अंतर्गत 1465 किमी खंड में टक्कर रोधी तकनीक ‘कवच’ लगाई गई है। यह नई तकनीक है, जिसे रेलवे ने हाल ही में स्वीकृति दी है। इसे लगभग 3,000 किमी. मार्ग में लगाया जाएगा। दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा मार्ग पर इस तकनीक को लगाया जा रहा है। लिहाजा, पूरे 65 हजार किमी. नेटवर्क से ‘कवच’ तकनीक वाले हिस्से की तुलना करना बेमानी है। अधिकारियों ने यह भी स्पष्ट किया कि ‘कवच’ लगाने के लिए अलग से राशि आवंटित नहीं की गई है। सिग्नल एवं टेलीकॉम मद में आवंटित राशि से ही इसे लगाया जा रहा है। जरूरत पड़ी तो संरक्षा के मद से भी धन लेकर इस काम को पूरा किया जाएगा। रेलवे को किसी भी परियोजना खासकर, संरक्षा संबंधी कार्यों के लिए धन की कमी नहीं है। जोनल महाप्रबंधकों को यह अधिकार दिया गया है कि वे जरूरत पड़ने पर संरक्षा के लिए आवंटित किसी भी मद से धन खर्च करने का निर्णय ले सकते हैं।
कैसे हुई दुर्घटना
भारतीय रेलवे के इतिहास में 2 जून, 2023 की तारीख भीषणतम दुर्घटनाओं में से एक के रूप में दर्ज हो गई। इस दिन कोलकाता के शालीमार स्टेशन से अपराह्न 3:20 बजे कोरोमंडल एक्सप्रेस (12841 अप) 2,000 से अधिक यात्रियों को लेकर चेन्नई के लिए रवाना हुई। यह बालेश्वर से शाम लगभग 6:30 बजे निकल कर अगले ठहराव भद्रक के लिए पूरी गति से पटरी पर दौड़ रही थी। गाड़ी समय सारणी में दर्ज समय से लगभग पांच मिनट पहले चल रही थी। चालक ने 6:56 बजे बाहनगा बाजार स्टेशन पर ग्रीन सिग्नल देखा और निश्चिंत होकर गति कम किए बिना आगे बढ़ता रहा। अचानक गाड़ी मेन लाइन की बजाय लूप लाइन पर आ गई। लूप लाइन पर कुछ देर पहले ही लौह अयस्क से लदी मालगाड़ी आई थी। चालक या कोई और कुछ समझ पाता, इससे पहले ही कोरोमंडल एक्सप्रेस मालगाड़ी से टकरा गई।
टक्कर इतनी जोरदार थी कि कोरोमंडल का इंजन मालगाड़ी के खाली वैगन पर इस प्रकार से चढ़ गया, जैसे उसे मालगाड़ी पर रख दिया गया हो। एक्सप्रेस के 24 में से 21 डिब्बे पटरी से उतर गए, जबकि तीन डिब्बे दाहिनी ओर पलट कर दूसरी पटरी पर चले गए। उसी समय यशवंतपुर-हावड़ा दूरंतो एक्सप्रेस वहां से गुजरी और उसके आखिरी दो डिब्बे इसकी चपेट में आ गए। दोनों डिब्बे ट्रेन से कट कर पलट गए, जबकि 20 डिब्बों के साथ दूरंतो आगे निकल कर रुक गई। इस दुर्घटना में 5 डिब्बे पलटे, जिसमें 288 लोगों की मौत हो गई, जबकि 900 से अधिक यात्री घायल हो गए। चारों ओर घायलों की चीख-पुकार से वातावरण भयावह हो गया। दुर्घटनाग्रस्त डिब्बों में कम से कम तीन अनारक्षित थे। हताहतों में बड़ी संख्या में अनारक्षित डिब्बों में यात्रा करने वाले यात्रियों की रही। दुर्घटना के बाद पता चला कि ग्रीन सिग्नल देने के बावजूद पटरी के प्वाइंट्स मेन लाइन की बजाए लूप लाइन के लिए ही लगे रह गए थे।
प्रधानमंत्री की आपात बैठक
नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपात बैठक कर दुर्घटना की स्थिति का जायजा लिया। रेलवे बोर्ड की सदस्य (परिचालन एवं व्यापार संवर्धन) जया वर्मा सिन्हा ने प्रधानमंत्री को पूरी स्थिति से अवगत कराया। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी बालासोर पहुंचे और बाहनगा बाजार स्टेशन और कटक के अस्पताल का दौरा किया, जहां घायलों को भर्ती किया गया था। उन्होंने भीषण त्रासदी से निपटने और इसकी पीड़ा कम करने के लिए पूरे सरकारी तंत्र को तालमेल से काम करने को कहा। उन्होंने कैबिनेट सचिव और स्वास्थ्य मंत्री से भी बात की तथा उन्हें घायलों व उनके परिवारों को सभी आवश्यक सहायता प्रदान करने के निर्देश दिए। प्रधानमंत्री ने इस बात का विशेष ध्यान रखने को कहा कि शोक संतप्त परिवारों को कोई असुविधा न हो और प्रभावितों को शीघ्र आवश्यक सहायता मिलती रहे। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी दुर्घटनास्थल का दौरा किया।
दुर्घटना से मात्र 15 मिनट पहले ही रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव गोवा पहुंचे थे। उन्हें 3 जून को गोवा से मुंबई छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस के बीच चलने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस के शुभारंभ कार्यक्रम में शामिल होना था। वह रात नौ बजे गोवा के डेबोलिम हवाईअड्डे पर उतरे ही थे कि उन्हें रेल दुर्घटना की सूचना मिली। वे उसी विमान से दिल्ली आए और प्रधानमंत्री मोदी से मिले। इसके बाद रेलवे बोर्ड के शीर्ष अधिकारियों के साथ संक्षिप्त बैठक कर तत्काल रेल संरक्षा आयुक्त (दक्षिण-पूर्व सर्किल) को दुर्घटना की जांच कराने के आदेश जारी किए और सुबह होते-होते रेलवे के शीर्ष अधिकारियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए।
राहत कार्यों में तत्परता
इस दुर्घटना के साथ स्वयंसेवकों, ओडिशा सरकार, रेलवे और रेल मंत्री की तत्परता भी याद की जाएगी। रेल दुर्घटना के तुरंत बाद ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने प्रशासनिक मशीनरी को सक्रिय किया और स्वयं विशेष राहत आयुक्त नियंत्रण कक्ष पहुंच कर स्थिति का जायजा लिया। फिर मंत्री प्रमिला मलिक, राज्य सरकार में विशेष राहत आयुक्त, पुलिस महानिदेशक (अग्निशमन सेवा) एवं अन्य अधिकारियों को घटनास्थल पर पहुंचने के निर्देश दिए। राज्य आपदा मोचन बल भी मौके पर पहुंच गया। एनडीआरएफ की टीम, खड़गपुर मंडल मुख्यालय, बालेश्वर और भद्रक से दुर्घटना राहत गाड़ियां रवाना की गर्इं, जो रात लगभग 8:30 बजे घटनास्थल पर पहुंच गईं।
रेल मंत्री 53 घंटे डटे रहे
इसके बाद रेल मंत्री घटनास्थल पर ही डटे रहे और राहत एवं बचाव कार्यों के साथ जांच की निगरानी की। रेल मंत्री ने 51 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद सोमवार देर रात लगभग दस बजे डाउन लाइन पर यातायात बहाल होने की जानकारी दी और इसके डेढ़ घंटे बाद 11:30 बजे अप लाइन पर भी यातायात बहाल हो गया। जब इन लाइनों पर गाड़ियों को निकाला गया तो रेल मंत्री वहां मौजूद थे। उन्होंने लोकोपायलट एवं गार्ड का हाथ हिला कर अभिवादन किया। दोनों लाइनें चालू हो जाने के बाद वैष्णव भावुक हो गए और कहा कि उनकी जिम्मेदारी अभी खत्म नहीं हुई है और इस घटना के जिम्मेदार लोगों को कड़ा दंड दिया जाएगा।
रेल मंत्री ने ट्वीट पर ही हताहतों के लिए मुआवजे की घोषणा कर दी थी। इसमें मृतकों के परिजनों को दस लाख, गंभीर रूप से घायलों को दो-दो लाख एवं मामूली घायलों को 50-50 हजार रुपये देने का ऐलान किया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी मृतकों के परिजनों को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से दो-दो लाख और घायलों को 50 हजार रुपये देने की घोषणा की। इसके अलावा, टिकट में बीमा लेने वालों को बीमा की राशि भी दी जा रही है। भारतीय जीवन बीमा निगम ने बीमा दावों के त्वरित निपटारे की बात कही है।
सीबीआई जांच शुरू
शनिवार को जांच शुरू हुई। पांच सदस्यीय जांच समिति ने संयुक्त रिपोर्ट दी, जिसमें स्पष्ट लिखा कि प्वांइट नंबर रिवर्स कंडीशन में 17ए अप लूप लाइन की ओर सेट था और सिगनल दिया गया था। लेकिन उसे बाद में वापस ले लिया गया, जिससे अप लाइन पर तय गति (लगभग 128 किलोमीटर प्रतिघंटा) से आ रही कोरोमंडल एक्सप्रेस लूप लाइन पर आ गई और मालगाड़ी से पीछे से जा टकराई। जांच में बाहनगा बाजार रेलवे स्टेशन का रिले रूम खुला पाया गया, जो गंभीर संरक्षा चूक थी। सामान्यत: रिले रूम सिग्नल एवं टेलीकॉम स्टाफ (एस एंड टी) के जिम्मे होता है, लेकिन इसका ताले की दो चाबियां होती हैं। एक चाबी स्टेशन मास्टर और दूसरी चाबी एस एंड टी स्टाफ के पास होती है। नियमानुसार रिले रूम तभी खोला जाता है, जब ट्रेन परिचालन नहीं हो रहा हो। ट्रेन परिचालन के समय रिले रूम खोलने की जरूरत पड़ने पर एस एंड टी स्टाफ से मूवमेंट आथराइजेशन रजिस्टर में हस्ताक्षर कराया जाता है और लिखवाया जाता है कि रिले रूम खुले रहने की स्थिति में ट्रेन का सुरक्षित परिचालन हो सकता है।
इसके बाद रविवार की शाम को रेल मंत्री ने दुर्घटना की जांच सीबीआई से कराने की घोषणा की। उन्होंने कहा, ‘‘दुर्घटना के मूल कारण एवं जिम्मेदार लोगों की पहचान कर ली गई है। जिन परिस्थितियों में यह दुर्घटना हुई है और अब तक जो भी सूचनाएं रेलवे एवं प्रशासन की ओर से प्राप्त हुई हैं, उसे देखते हुए आगे की जांच के लिए पूरे मामले को सीबीआई को देने का फैसला किया जा रहा है।’’ बाद में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि रेल संरक्षा आयुक्त की जांच भी जारी रहेगी, क्योंकि यह वैधानिक अनिवार्यता है। सोमवार को रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को रेल दुर्घटना की सीबीआई जांच के लिए अनुरोध का पत्र लिखा और प्रधानमंत्री कार्यालय जाकर पत्र सौंपा। इसके बाद देर शाम सीबीआई की एक टीम जांच के लिए घटनास्थल पहुंच गई।
रेल दुर्घटना पर राजनीति
रेल दुर्घटना पर राजनीति भी हुई। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने इसे राजनीतिक रंग देने का प्रयास किया। तीनों रेल मंत्री रह चुके हैं। विपक्षी दलों ने रेल मंत्री का इस्तीफा मांगा और प्रधानमंत्री मोदी पर भी हल्ला बोला। विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री से पूछा कि विशेषज्ञों की चेतावनियों और सुझावों, संसदीय समिति और कैग की रिपोर्ट की अनदेखी के लिए कौन जिम्मेदार है। विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि रेलवे ने संरक्षा बजट का इस्तेमाल नहीं किया। जवाब में भाजपा ने विपक्षी दलों से ट्रेन दुर्घटना का राजनीतिकरण नहीं करने की अपील की। साथ ही, कांग्रेस के आरोपों पर भाजपा को यह कहना पड़ा कि उसकी अगुआई वाली संप्रग सरकार के रेल मंत्रियों का ट्रैक रिकॉर्ड किसी आपदा से कम नहीं है। भाजपा के आईटी प्रमुख अमित मालवीय ने तो ट्विटर पर संप्रग सरकार के रेल मंत्रियों के कार्यकाल में हुए रेल दुर्घटनाओं का ब्यौरा भी दिया।
अदालत में याचिका
रेल दुर्घटना की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक जांच आयोग गठित करने की मांग की गई है। तर्क दिया गया है कि विशेषज्ञ आयोग को रेलवे प्रणाली में जोखिम और सुरक्षा मापदंडों का विश्लेषण और समीक्षा करनी चाहिए। याचिका में यह भी कहा गया कि रेलवे सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने के लिए व्यवस्थित सुरक्षा संशोधनों का सुझाव देना चाहिए और अपनी रिपोर्ट अदालत में जमा करनी चाहिए। ‘कवच’ प्रणाली लागू न करने से बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हुआ है।
जब नीतीश कुमार रेल मंत्री थे, तब 1079 रेल दुर्घटनाओं में 1527 लोग मारे गए थे। ममता बनर्जी के रेल मंत्री रहते 893 दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 51 लोगों ने जान गंवाई। वहीं, लालू यादव के कार्यकाल में 601 रेल दुर्घटनाओं में 1159 लोगों की मौत हुई थी।
रेलवे के संरक्षा उपायों पर समुचित व्यय नहीं करने के विपक्ष के आरोपों का रेलवे के उच्चाधिकारियों ने खंडन किया। अधिकारियों ने कहा कि विपक्ष के आरोप तथ्यात्मक रूप से सही नहीं हैं। और इस प्रकार के दावों से लोगों में गलत धारणाएं बनाई जा रही हैं। उन्होंने कहा कि 2017-18 में सरकार ने बजट में राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष का गठन कर 2021-22 तक एक लाख करोड़ रुपये व्यय करने का लक्ष्य रखा था। सीएजी की रिपोर्ट में राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष के इस्तेमाल को लेकर केवल तीन वर्ष (2017-18, 2018-19 एवं 2019-20) के व्यय का जिक्र किया गया है। वहीं, कोरोना जैसी चुनौतियों के बावजूद रेलवे ने निर्धारित अवधि में इस कोष का पूरा इस्तेमाल सुनिश्चित किया और 2021-22 तक एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि खर्च हुई है।
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