जापान में बढ़ रहा मजहबी तनाव, कारण क्या ?

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सोनाली मिश्रा

जापान एक ऐसा देश है, जहां से धार्मिक तनाव के समाचार सबसे कम आया करते थे और जहां की पहचान मात्र कर्मनिष्ठा हुआ करती थी। परन्तु कुछ वर्षों में वहां पर मुस्लिम जनसंख्या बढ़ने के साथ ही कहीं न कहीं मजहबी तनाव भी बढ़ने लगा है, ऐसा एक वीडियो से प्रतीत होता है। जापान के शांतिप्रिय लोग इस बात से बहुत व्यथित हैं कि उनके धार्मिक स्थलों पर विदेशी मुस्लिम तोड़फोड़ कर रहे हैं।

एक वीडियो पिछले दिनों वायरल हुआ, जिसमें एक व्यक्ति जापान के शिंतो धर्म के धार्मिक स्थल पर तोड़फोड़ करता हुआ दिखाई दिया।

स्रोत: https://twitter.com/Lu1vunH6iqICRY3/status/1661010806878924800

यूसीए न्यूज के अनुसार जापान का धार्मिक परिदृश्य बदल रहा है और यह इस बात से नजर आता है कि लगातार वहां पर मस्जिदों की संख्या में वृद्धि हो रही है। पिछले दो दशकों में जापान में तेजी से मस्जिदों की संख्या बढ़ी है।

कहा यह भी जा रहा है कि वहां पर तेजी से मुस्लिमों में और जापानी नागरिकों के बीच परस्पर विवाह संबंधों के कारण यह परिवर्तन हो रहे हैं क्योंकि कई जापानी नागरिक शादी के बाद इस्लाम में मतांतरित हो गए हैं, परन्तु काफी बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है, जो इस्लामिक राज्यों से आ रहे हैं।

लोगों का गुस्सा इन घटनाओं से बढ़ रहा है। जो वीडियो वायरल हुआ है, उसमें गाम्बिया का एक व्यक्ति है, जिसने एक जापानी धर्मस्थल में इस प्रकार की तोड़फोड़ की। जिहादवाच।ओआरजी के अनुसार “तरुमी वार्ड में रहने वाले गाम्बिया गणराज्य के एक बेरोजगार नागरिक ममदौ बलदे (29) को संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के संदेह में गिरफ्तार किया गया था।“

इस वीडियो पर जापानी नागरिक तरह-तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं। जिसमें एक यूजर ने लिखा कि इस्लाम एक ही अल्लाह को मानने वाला मजहब है। जब वह काफी समय पहले एक मुस्लिम देश में गए थे तो उन्होंने यह अनुभव किया था। जब आप एक शहर में प्रवेश करते हैं, तो आपसे यह अपेक्षा की जाती है कि जैसा शहर कर रहा है, वैसा ही आप करें और मुझे लगता है कि जापान में आने वाले मुस्लिमों को भी जापानी कानूनों को प्राथमिकता देनी चाहिए न कि कुरआन को और यदि ऐसा कोई करता है तो उसे प्रवेश देने से इंकार करना चाहिए। मीठी प्रतिक्रियाएं बहुत खतरनाक होती हैं।

यूसीए के अनुसार जापान में मुस्लिमों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है और यह वर्ष 2000 में 10,200 से बढ़कर अब दो लाख के करीब हो गई हैं। अर्थात लगभग दस गुना मुस्लिमों की वृद्धि जापान में हो चुकी है।  एक समय में जापान में जहां पर मस्जिदें बहुत ही कठिनाई से पाई जाती थीं, वहीं अब ऐसा नहीं है। जापान में मस्जिदों की संख्या वर्ष 2021 में 113 हो गई, जो वर्ष 1999 तक केवल 15 हुआ करती थीं।

डेमोग्राफी परिवर्तन से भारत इस डेमोग्राफी असंतोष का सामना न जाने कब से करता आ रहा है। उत्तर प्रदेश में कैराना से सामूहिक पलायन के समाचार जैसे कई समाचार सामने आते हैं।

हाल ही में उत्तराखंड में भी हिन्दू धार्मिक स्थलों के आसपास डेमोग्राफिक असंतुलन के चलते तनाव के समाचार आ रहे हैं। जैसे भारत में यह विदेशी फंडिंग के समाचार आते हैं, वैसे ही जापान में भी यह मस्जिद निर्माण को लेकर इंडोनेशिया से दान के समाचार आ रहे हैं।

ऐसी ही एक मस्जिद है, मस्जिद इस्तिकलाल ओसाका, जिसका निर्माण एक ऐसी संरचना पर किया गया है, जो एक समय में कारखाना हुआ करता था।

धर्म की स्वतंत्रता जिस प्रकार भारत में है, उसी प्रकार जापान में है एवं निरंतर बढ़ती मस्जिदों की संख्या इस बात को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त हैं। परन्तु जिस प्रकार से जापान में यह घटना हुई है, वह लोगों को आशंका में डाल रही है। सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रियाएं यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि वह इस घटना को लेकर क्या सोचते हैं। वह कह रहे हैं कि “इस्लाम का लक्ष्य पूरी दुनिया पर कब्जा करना है। इनमें से कोई भी सोच के उस तरीके के अनुकूल नहीं है जिसकी जड़ें प्राचीन काल से जापान में हैं।”

जापान का मुख्य धर्म शिंतो है और जो प्राचीन काल से चलन में है। शिंतो और बौद्ध धर्म वहां पर परस्पर एकात्मकता के साथ रह रहे हैं। परन्तु इस्लाम के साथ ऐसा नहीं है। जहां इस्लाम एक अल्लाह पर बल देता है तो वहीं शिंतो धर्म में सिद्धांतों की कोई एक किताब नहीं है। शिंतो धर्म पवित्रता पर बल देता है तथा साथ ही प्राकृतिक जगत के साथ सामंजस्यता के साथ चलने पर बल देता है और वहां पर कई देवता हैं।

वहीं 1400 वर्ष पहले उपजा इस्लाम एक अल्लाह पर बल देता है और इस्लाम के अनुयाइयों के लिए कुरआन ही सबसे बढ़कर है। जहां शिंतो और बौद्ध अब तक आपसी सामंजस्यता के साथ एक दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए रह रहे थे, तो वहीं यह सामंजस्यता पूर्ण सह अस्तित्व कहीं न कहीं एक मुस्लिम व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से असंभव जैसा प्रतीत होता है, क्योंकि वह बहुलतावाद को नकारते हैं एवं एक अल्लाह पर जोर देते हैं तथा साथ ही वह अपने अल्लाह के अतिरिक्त किसी और की इबादत नहीं कर सकते हैं।

जापान में शिंतो धर्मस्थल पर हालिया तोड़फोड़ कहीं उस मजहबी तनाव का संकेत तो नहीं है जो जापान के सामने आने वाला है क्योंकि यहां पर परस्पर दो विरोधाभासी धार्मिक विचारों के एक साथ रहने का विषय है।

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सोनाली मिश्रा