नागपुर। रेशिमबाग में गुरुवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग समापन समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने उद्बोधन दिया और अदृश्य काडसिद्धेश्वर स्वामीजी (श्री सिद्धगिरी संस्थान मठ, कणेरी) ने आशीर्वचन दिए।
अदृश्य काडसिद्धेश्वर स्वामीजी ने कहा कि विविधता से भरा हुआ अपना देश है। आसपास में मित्र से अधिक शत्रुओं से लिप्त हमारी सीमाएं हैं फिर भी हमने सभी के साथ मित्रता का भाव हमेशा रखा है। सारी दुनिया में जो चीजें नहीं मिलतीं वह यहां उपलब्ध हैं। यहां करीब करीब 22-23 भाषाएं हैं और साढ़े चार सौ से अधिक बोलिया हैं। इस देश पर बहुत से आक्रमण हुए, हम लोगों ने कभी भी संपत्ति को अर्थ और अर्थ को संपत्ति नहीं माना है, इसलिए देश कभी गरीब नहीं हुआ। भविष्य के बीज हमारे ही अंदर होते हैं, उसी के प्रकटीकरण का माध्यम ही संघ शिक्षा वर्ग है। उन्होंने कहा कि संघ यानी अनुशासन, संघ यानी सेवा और समर्पण, संघ यानी हिन्दुत्व, हिन्दुत्व यानी राष्ट्रीयता, संघ यानी ज्ञान, संघ यानी सज्जनता, संघ यानी सकारात्मकता, संघ यानी समरस। संघ कार्य राष्ट्रीय कार्य है और जो कुछ भी देश और समाज के उत्थान के लिए आवश्यक है वह कार्य संघ और स्वयंसेवक द्वारा किया जाता है। इस अवसर पर उन्होंने देश के साधु-संतों से संघ के कार्यों में योगदान देने और देश को परम वैभव प्राप्त करने में सहयोग करने का आह्वान किया।
सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने राष्ट्र की स्वतंत्रता की घोषणा की थी और उसी से हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की थी। शिवाजी महाराज ने देश के प्राचीन मूल्यों को जगाया। गोहत्या बंद कराई। मातृभाषा में व्यवहार करने लगे। स्वराज्य में मजबूत नौसेना की स्थापना की। उन्होंने जनता को एकजुट किया। उन लोगों की रक्षा की जो देश के प्रति वफादार थे। साथ ही, औरंगज़ेब द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर को नष्ट करने के बाद, शिवाजी ने औरंगजेब को पत्र भेजा था। उस पत्र मे शिवाजी ने कहा था कि राजा को धर्म के आधार पर प्रजा में भेदभाव नहीं करना चाहिए। सभी के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। छत्रपति ने औरंगजेब को चेताया था कि यदि प्रजा के साथ धार्मिक आधार पर भेदभाव हुआ तो वह तलवार लेकर उत्तर भारत पहुंचेंगे। डॉ भागवत ने बताया कि अपनी भाषा, संस्कृति और प्राचीन मूल्यों को बचाए रखते हुए देश को मातृभूमि मानने वाले सभी लोगों का स्वराज्य में स्थान और संरक्षण था। संघ के हिंदू राष्ट्र की अवधारणा की जड़ें शिवाजी महाराज के स्वराज में समाहित हैं।
सरसंघचालक ने कहा कि राजनेताओं को सावधानी बरतनी चाहिए। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके क्रियाकलापों से देश का नाम खराब न हो। डॉ भागवत ने कहा कि अपनी छोटी पहचान मिटने के झूठे डर से अलग-अलग रहना ठीक नहीं। अलग दिखते हैं, इसलिए अलग हैं, यह भाव न रहता तो देश नहीं टूटता। देश की एकता, अखंडता के लिए प्रयास हम सबने करने चाहिए।
उन्होंने कहा कि आत्मीयता के लिए सभी को कुछ न कुछ छोड़ना होगा। इसी की आदत बनाने हेतु प्रयास ही संघ का कार्य है। संघ 1925 से निरंतर रूप से देश और समाज के हित में काम कर रहा है। संघ को किसी से कुछ नहीं चाहिए। संघ किसी कार्य का श्रेय भी लेना नहीं चाहता। समाज और स्वयंसेवक मिलकर अच्छा काम कर रहे हैं। इसी तर्ज पर देश के सभी लोगों के इकट्ठा होने से हमारी तरक्की होगी। बतौर भागवत सभी के प्रयासों से देश आगे बढ़ेगा इसके अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है।
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