उत्तराखंड में वन क्षेत्र में अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत वन भूमि पर बनी मजारों को हटाया गया है। इस क्रम में कुछ मंदिर भी हटाए गए है, सबसे दिलचस्प बात ये है कि वन विभाग ने अपनी जमीन पर बनी एक ही नाम की आठ मजारों को हटाया और इनके भीतर कोई मानव अवशेष नहीं मिले।
कालू सैयद बाबा के नाम की सात मजारें अभी तक वन विभाग ने अपनी जमीन से हटाई हैं। अभी एक और मजार इसी नाम की जसपुर फॉरेस्ट रेंज में दिखाई दी है, जंगल क्षेत्र में बनी इस मजार के आसपास खादिमों ने पक्के मकान बना लिए हैं और यहां नए पिलर खड़े कर मजार परिसर के विस्तार की गुपचुप तैयारी चल रही है। मुख्य मजार के भवन के आसपास भी मजहबी चिन्ह देखे गए हैं। एक ही फकीर की दस-दस मजारें होने पर ये प्रतिक्रिया भी सामने आई है कि ये फ्रेंचाइजी मजारें हैं और इनके खादिम भीं आपस में रिश्तेदार हैं और मिलकर ये धंधा चला रहे हैं। एक मजार पर जब ये पूछा गया कि एक फ़कीर दस जगह कैसे दफनाया गया होगा? तो उनका जवाब था कि फकीर साहब कहां शरीर छोड़ गए ये किसी को मालूम नहीं इसलिए उनकी जगह-जगह मजारें है और एक मजार तो गुजरात में भी है।
बहरहाल, ये आस्था के नाम पर कारोबार होता प्रतीत होता है। जानकारी के मुताबिक तराई फॉरेस्ट डिवीजन की टीम ने वहां जाकर मजार खादिमों को नोटिस जारी किया है कि वो सुप्रीम कोर्ट के 20 जून 2009 के आदेश के तहत कोई नया धार्मिक निर्माण नहीं कर सकते और न ही मरम्मत कर सकते हैं, इसके लिए उन्हें डीएम से अनुमति लेना जरूरी है। फॉरेस्ट ने फिलहाल यहां आने जाने वाले लोगो को रोकना टोकना शुरू कर दिया है क्योंकि ये मजार घने जंगल के भीतर है और इससे जंगल में वन संरक्षण और सुरक्षा के कार्य प्रभावित हो रहे हैं। तराई फॉरेस्ट के डीएफओ प्रकाश आर्य के मुताबिक यहां मजार के साथ-साथ मकान भी बना दिया और व्यवसायिक गतिविधियों का भी संचालन हो रहा है, जिसपर वन विभाग को आपत्ति है। उन्होंने कहा कि मजार के दस्तावेजों के विषय में भी जानकारी मांगी गई है।
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