राजा और धर्म के बीच संवाद का प्रतीक है सेंगोल, राजधर्म को अनुशासन में रखने के लिए है यह दंड
July 19, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

राजा और धर्म के बीच संवाद का प्रतीक है सेंगोल, राजधर्म को अनुशासन में रखने के लिए है यह दंड

सेंगोल बताता है कि दुनिया फ्लैट नहीं है, गोल है और अंततः वहीं लौटती है जहां उसे लौटना चाहिये था। सेंगोल यह भी बताता है कि सत्ता का चक्र परिवर्तन होता रहता है। वह एक हाथ से दूसरे हाथ में जाती रहती है। जैसे गीता के ज्ञानांतरण की एक परंपरा है

by मनोज कुमार श्रीवास्तव
May 26, 2023, 09:18 pm IST
in भारत, तथ्यपत्र
सेंगोल

सेंगोल

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

सत्तांतरण तो 1947 में हो चुका था और सेंगोल तो तभी भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जी ने ग्रहण किया था। यह बात अलग है कि बाद में वह संग्रहालय की चीज़ बना दिया गया। तो सत्तांतरण के प्रतीक को उसी के गौरवास्पद पर अधिष्ठित किया जा रहा है।

सेंगोल

वे पूछते हैं कि किसका राज्याभिषेक होने जा रहा है, कौन-सा सत्तांतरण हुआ है कि सेंगोल स्थापित किया जा रहा है। लेकिन सत्तांतरण तो 1947 में हो चुका था और सेंगोल तो तभी भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जी ने ग्रहण किया था। यह बात अलग है कि बाद में वह संग्रहालय की चीज़ बना दिया गया। तो सत्तांतरण के प्रतीक को उसी के गौरवास्पद पर अधिष्ठित किया जा रहा है। सेंगोल बताता है कि दुनिया फ्लैट नहीं है, गोल है और अंततः वहीं लौटती है जहां उसे लौटना चाहिये था। सेंगोल यह भी बताता है कि सत्ता का चक्र परिवर्तन होता रहता है। वह एक हाथ से दूसरे हाथ में जाती रहती है। जैसे गीता के ज्ञानांतरण की एक परंपरा है, वैसे ही सत्तांतरण की भी। आज मैं हूँ जहां कल कोई और था। ये भी इक दौर है वह भी एक दौर था। महाभारत के शांतिपर्व के राजधर्मानुशासनपर्व में सबसे पहले शिव इसे विष्णु को देते हैं।

महादेवस्ततस्तस्मिन् वृत्ते यज्ञे यथाविधि । जा दण्डं धर्मस्य गोप्तारं विष्णवे सत्कृतं ददौ॥
तदनन्तर ब्रह्माजीका वह यज्ञ जब विधिपूर्वक सम्पन्नहो गया, तब महादेवजीने धर्मरक्षक भगवान् विष्णुका सत्कार करके उन्हें वह दण्ड समर्पित किया ॥

विष्णुरङ्गिरसे प्रादादङ्गिरा मुनिसत्तमः ।प्रादादिन्द्रमरीचिभ्यां मरीचिर्भृगवे ददौ ॥
भगवान् विष्णु ने उसे अंगिरा को दे दिया । मुनिवर अंगिरा ने इन्द्र और मरीचि को दिया और मरीचि ने भृगु को सौंप दिया ॥ भृगुर्ददावृषिभ्यस्तु दण्डं धर्मसमाहितम्। ऋषयो लोकपालेभ्यो लोकपालाः क्षुपाय च ॥
क्षुपस्तु मनवे प्रादादादित्यतनयाय च। पुत्रेभ्यः श्राद्धदेवस्तु सूक्ष्मधर्मार्थकारणात् ॥
भृगु ने वह धर्मसमाहित दण्ड ऋषियों को दिया । ऋषियों ने लोकपालों को, लोकपालों ने क्षुप को, क्षुप ने सूर्यपुत्र मनु (श्राद्धदेव) को और श्राद्धदेव ने सूक्ष्म धर्म तथा अर्थ की रक्षा के लिये उसे अपने पुत्रों को सौंप दिया ॥

सेंगोल बताता है कि दुनिया फ्लैट नहीं है, गोल है और अंततः वहीं लौटती है जहां उसे लौटना चाहिये था। सेंगोल यह भी बताता है कि सत्ता का चक्र परिवर्तन होता रहता है। वह एक हाथ से दूसरे हाथ में जाती रहती है। जैसे गीता के ज्ञानांतरण की एक परंपरा है, वैसे ही सत्तांतरण की भी। आज मैं हूँ जहां कल कोई और था। ये भी इक दौर है वह भी एक दौर था। महाभारत के शांतिपर्व के राजधर्मानुशासनपर्व में सबसे पहले शिव इसे विष्णु को देते हैं।

यों तो अशोक चक्र भी राजा का ही था। उस पर आपत्ति क्यों न हुई? अकबर, बाबर, औरंगजेब, टीपू, कर्जन, कार्नवालिस, डलहौज़ी पर क़सीदे पढ़ने वाले उनके राजा होने से तो विचलित नहीं हुए, चोलों से क्यों होना? और चोल राज्य तो प्रशासनिक विकेंद्रीकरण का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण था- यह बात तो इन आपत्तिकर्ताओं की परमपूज्या रोमिला थापर तक स्वीकारतीं हैं।

विभज्य दण्डः कर्तव्यो धर्मेण न यदृच्छया ।
दुष्टानां निग्रहो दण्डो हिरण्यं बाह्यतः क्रिया ॥

अतः धर्मके अनुसार न्याय-अन्यायका विचार करके ही दण्ड का विधान करना चाहिये, मनमानी नहीं करनी चाहिये । दुष्टों का दमन करना ही दण्ड का मुख्य उद्देश्य है, स्वर्ण मुद्राएँ लेकर खजाना भरना नहीं। दण्ड के तौर पर सुवर्ण (धन) लेना तो बाह्यंग – गौण कर्म है ॥ व्यङ्गत्वं व शरीरस्य वधो नाल्पस्य कारणात् । शरीरपीडास्तास्ताश्च देहत्यागो विवासनम् ॥ किसी छोटे-से अपराध पर प्रजा का अंग-भंग करना, उसे मार डालना, उसे तरह-तरहकी यातनाएँ देना तथा उसको देहत्यागके लिये विवश करना अथवा देशसे निकाल देना कदापि उचित नहीं है ॥ तं ददौ सूर्यपुत्रस्तु मनुर्वै रक्षणार्थकम् आनुपूर्व्याच्च दण्डोऽयं प्रजा जागर्ति पालयन् ॥ सूर्यपुत्र मनु ने प्रजा की रक्षा के लिये ही अपने पुत्रों के हाथोंमें दण्ड सौंपा था, वही क्रमशः उत्तरोत्तर अधिकारियों के हाथ में आकर प्रजा का पालन करता हुआ जागता रहता है॥ इन्द्रो जागर्ति भगवानिन्द्रादग्निर्विभावसुः । अग्नेर्जागर्ति वरुणो वरुणाच्च प्रजापतिः ॥ भगवान् इन्द्र दण्ड-विधान करने में सदा जागरूक रहते हैं। इन्द्रसे प्रकाशमान अग्नि, अग्निसे वरुण और वरुण से प्रजापति उस दण्ड को प्राप्त करके उसके यथोचित प्रयोग के लिये सदा जाग्रत् रहते हैं ॥
प्रजापतेस्ततो धर्मो जागर्ति विनयात्मकः ।
धर्माच्च ब्रह्मणः पुत्रो व्यवसायः सनातनः॥
जो सम्पूर्ण जगत को शिक्षा देनेवाले हैं, वे धर्म प्रजापति से दण्ड को ग्रहण करके प्रजा की रक्षा के लिये सदा जागरूक रहते हैं । ब्रह्मपुत्र सनातन व्यवसाय वह दण्ड धर्म से लेकर लोकरक्षा के लिये जागते रहते हैं |

व्यवसायात् ततस्तेजो जागर्ति परिपालयत् ।
ओषध्यस्तेजसस्तस्मादोषधीभ्यश्च पर्वताः ॥
पर्वतेभ्यश्च जागर्ति रसो रसगुणात् तथा ।
जागर्ति निरृतिर्देवी ज्योतींषि निर्ऋतेरपि ॥

व्यवसाय से दण्ड लेकर तेज जगत की रक्षा करता हुआ सजग रहता है। तेज से ओषधियाँ, ओषधियों से पर्वत, पर्वतों से रस, रस से निर्ऋति और निर्ऋति से ज्योतियाँ क्रमशः उस दण्ड को हस्तगत करके लोक- रक्षा के लिये जागरूक बनी रहती हैं ॥
वेदा: प्रतिष्ठा ज्योतिर्थ्यस्ततो हयशिराः प्रभुः ।
ब्रह्मा पितामहस्तस्माज्जागर्ति प्रभुरव्ययः ॥

ज्योतियों से दण्ड ग्रहण करके वेद प्रतिष्ठित हुए हैं। वेदों से भगवान् हयग्रीव और हयग्रीव से अविनाशी प्रभु ब्रह्मा वह दण्ड पाकर लोक-रक्षा के लिये जागते रहते हैं॥
पितामहान्महादेवो जागर्ति भगवान् शिवः । |
विश्वेदेवाः शिवाच्चापि विश्वेभ्यश्च तथर्षयः ॥ ॥
ऋषिभ्यो भगवान् सोमः सोमाद् देवाः सनातनाः । |
देवेभ्यो ब्राह्मणा लोके जाग्रतीत्युपधारय ॥
पितामह ब्रह्मा से दण्ड और रक्षा का अधिकार पाकर महान् देव भगवान् शिव जागते हैं। शिव से विश्वेदेव, विश्वेदेवों से ऋषि, ऋषियों से भगवान् सोम, सोम से सनातन देवगण और देवताओं से ब्राह्मण वह अधिकार लेकर लोक-रक्षाके लिये सदा जाग्रत् रहते हैं। इस बातको तुम अच्छी तरह समझ लो ॥

प्रजा जागर्ति लोकेऽस्मिन् दण्डो जागर्ति तासु च ।
सर्वं संक्षिपते दण्डः पितामहसमप्रभः ॥
इस लोक में प्रजा जागती है और प्रजाओं में दण्ड जागता है। वह ब्रह्माजी के समान तेजस्वी दण्ड सबको मर्यादा के भीतर रखता है ॥
जागर्ति कालः पूर्वं च मध्ये चान्ते च भारत ।
ईश्वरः सर्वलोकस्य महादेवः प्रजापतिः ॥
भारत ! यह कालरूप दण्ड सृष्टि के आदि में, मध्य में और अन्त में भी जागता रहता है। यह सर्व- लोकेश्वर महादेव का स्वरूप है। यही समस्त प्रजाओं का पालक है ॥

तो दंड की ट्रांसफेरिबिलिटी- अंतरणीयता ही तो लोकतंत्र की खूबी है। यह भान रहना कि –
तुझसे पहले भी जो यहाँ तख़्ते-नशीं था। उसको भी ख़ुदा होने का इतना ही यक़ीं था।

लेकिन उसी के साथ साथ इस बात का लगातार अनुस्मरण कि वह एक महान परंपरा का अंग है और उसके निर्वाह की भी एक प्रतिश्रुति है।

यह दंड राजधर्म को अनुशासन में रखने के लिए है। इसलिए पर्व का नाम राजधर्मानुशासन है। यहाँ दंडशक्ति प्रजा के पास भी है। तो यह परस्पर मर्यादाओं का, चेक एंड बैलेंस का खेल है।

जो बात महाभारत के इस दंड प्रसंग में खींचती है वह है जागरूकता की। awareness की। उस पर इतना बल कोई लक्ष्य किये बिना नहीं रह सकता। या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।

और इस प्रजातंत्र के लिए यह बात कितनी प्रेरक है कि-
प्रजा जागर्ति लोकेऽस्मिन् दण्डो जागर्ति तासु च ।
सर्वं संक्षिपते दण्डः पितामहसमप्रभः॥

कि इस लोक में प्रजा जागती है और प्रजाओं में दण्ड जागता है। वह ब्रह्माजी के समान तेजस्वी दण्ड सब को मर्यादा के भीतर रखता है॥

तो यह दंड राजधर्म को अनुशासन में रखने के लिए है। इसलिए पर्व का नाम राजधर्मानुशासन है। यहाँ दंडशक्ति प्रजा के पास भी है। तो यह परस्पर मर्यादाओं का, चेक एंड बैलेंस का खेल है। प्रजा की जागरूकता- eternal vigilance is the price of democracy, if not of liberty. यह लोकतांत्रिकता जो दंड की भारतीय अवधारणा में है वह उस मोनार्की से तत्वतः भिन्न है जो sceptre धारण करवाती है राजा को जैसे अभी किंग चार्ल्स को करवाया। उनका तो दंड ही बदलता रहता है। लेकिन वहाँ भी वह राजा की आध्यात्मिक भूमिका का प्रतीक है। तिरुक्कुरल में सेनकोनमाई अध्याय में इस सेंगोल को कवि तिरुवल्लुवर ने विज्ञान और धार्मिकता, वेदों और उसमें वर्णित गुणों का आधार कहा है। वे कहते हैं सेंगोल के बारे में :

அந்தணர் நூற்கும் அறத்திற்கும் ஆதியாய்
நின்றது மன்னவன் கோல்.

कि विद्वान जो लिखते हैं और जिन गुणों को महत्त्व देते हैं, उन्हीं का मूल यह सेंगोल है। तिरुक्कुरल के अनुसार यह संसार जैसे बारिश के लिए आकाश की ओर देखता है, वैसे ही लोग न्याय के लिए सेंगोल को देखते हैं:

வானோக்கி வாழும் உலகெல்லாம் மன்னவன்
கோல்நோக்கி வாழுங் குடி.

सेंगोल राजा और धर्म के बीच एक संवाद का प्रतीक है। सेंगोल में सबसे ऊपर एक वृषभ है। वृषभ को धर्म का प्रतिनिधि कामायनी के आनंद सर्ग में जयशंकर प्रसाद जी ने कहा ही था तो वह उसी शास्त्रीय दृष्टि की आधारभूमि से कहा था। धर्म साक्षी है और निरन्तर शासक को सेंगोल देख रहा है। सेंगोल आग्रह है, संग्रह नहीं।

यह शासन की शिवता की ओर धर्म-दृष्टि है और यह किसी धर्म विशेष की बात नहीं है, जिनसेनाचार्य ने आदि पुराण में वृषभ को याद किया। उन्हें आदि नाथ भी कहा गया। ऋग्वेद में कहा गया :
अनर्वाण वृषभमन्द्रजित बृहस्पति वर्ध या नव्यमर्के (1/19
(1यह भी कि : ‘एक देवे वृष भो युक्त आरती द‌वावची स्सारथिरस्व केशी:’ यह भी कि
‘दिवक्षा असि वृषभ सत्य शुष्मोऽस्मभ्यं सु मधवन्योधि गोदा :’, यह भी कि
‘ त्वं रथ प्रभरो यो धमृ‌ध्वभावो युध्यन्तं वृषभ दशयम्’,

यह भी कि ‘एबारे वृषभासुर्तडसिन्सूर्या वयः, और यह भी कि ‘प्राग्नये वाचमीरय वृषभाय क्षितीनाम्’, यह भी कि ‘वृषभो युम्नवाँ असिसम्ध्वरेस्थिध्यसे’ और ‘मसत्ववन्तं वृषभ वाव धानमकवारि दिव्य शासमिन्द्रम्। शिवपुराण वृषभ को एक जननेता बताता है, चौंसठ करोड़ का। यानी गणतंत्र का प्रतीक है, बौद्धधर्म में वृषभ सबसे बड़े क्रिया तंत्रों में माना जाता है। संस्कृत में वृषभ अपनी कक्षा का सर्वश्रेष्ठ या प्रतिष्ठित कुछ हो – नरवृषभ, द्विजवृषभ आदि कहलाता है यानी वृषभ excellence का प्रतीक है – किं नास्ति त्वयि सत्यमात्य वृषभे यस्मिन् करोमि स्पृहाम्! शक्ति और स्थायित्व का प्रतीक तो वह है ही, सेंगोल का मंगलवृषभ कल्याणमूलक है, स्वस्तिमूलक है। किसी ने वृषभ के बारे में यह भी कहा कि

वाहनं पशुनाथस्य कृषकस्य प्रिय: सखा।
निष्कामकर्मयोगी सः क्षेत्रं कर्षति आजन्म॥

  • तो किसानों के इस संगी से बैर करने वाले कौन हैं? इसमें आया क्षेत्र शब्द तो गीता के संदर्भ में कुछ और बड़ी आस्तित्विक यादें कराता है, पर यहाँ खेत ही समझ लें।
  • तो दिक्कत जिन्हें इसके धार्मिक संदर्भों से है, उनकी बीमारी का इलाज तो क्या होगा, पर वे अपने देश की मिट्टी पर पसीना बहाने वाले किसान के चेहरे को ही याद कर लें, इसके बहाने। वैसे संविधान की मूल प्रति पर जब सारे धार्मिक चिन्ह और चित्र लगाये जा रहे थे तब ये सारी चिन्ताएँ कहाँ ग़ायब हो गईं थीं?
  • ओह वो भी नहीं, एक लोकतंत्र में राजदंड कैसे हो सकता है? अरे इसीलिए तो महाभारत का वह हिस्सा ऊपर उद्धृत किया मैंने। राज का मतलब शासन। राजा नहीं। राजदंड है यह। राजादंड नहीं।

लेकिन प्रयोग तो इसका चोल राजाओं के समय हुआ?

यों तो अशोक चक्र भी राजा का ही था। उस पर आपत्ति क्यों न हुई? अकबर, बाबर, औरंगजेब, टीपू, कर्जन, कार्नवालिस, डलहौज़ी पर क़सीदे पढ़ने वाले उनके राजा होने से तो विचलित नहीं हुए, चोलों से क्यों होना? और चोल राज्य तो प्रशासनिक विकेंद्रीकरण का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण था- यह बात तो इन आपत्तिकर्ताओं की परमपूज्या रोमिला थापर तक स्वीकारतीं हैं।

कि नहीं। उत्तरमेरूर पर उनका लिखा पढ़िये.

(लेखक-साहित्यकार एवं संपादक, अक्षरा। पूर्व अपर मुख्य सचिव, मध्यप्रदेश शासन।)

Topics: symbol of transfer of powertransmission of GitaAshoka Chakra also kingसेगोल के बारे में जानेंसेंगोलसेंगोल धर्म राजनीतिक्या है सेंगोलसेंगोल चोल साम्राज्यsengolसेंगोल राजदंडसत्तांतरण का प्रतीककिंग चार्ल्सराजधर्मानुशासनसेंगोल में सबसे ऊपर एक वृषभ
Share3TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

ईस्टर पर इस्लाम का जिक्र क्यों? : किंग चार्ल्स के संदेश से भड़का ब्रिटेन, लोगों ने पूछा- कन्वर्जन कर लिया क्या..?

‘केवल अपने लिए किया गया कार्य अधर्म’

सेंगोल

सेंगोल पर विवाद क्यों ? क्या बताता है ये राजदंड, जानिये इसके बारे में सबकुछ

सेंगोल को दंडवत प्रणाम करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नई संसद : संस्कृति, मर्यादा और अनुशासन

संसद पर सांसत में इकोसिस्टम

संसद भवन

राजनीति या कुंठा!

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

ज्ञान सभा 2025 : विकसित भारत हेतु शिक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन, केरल के कालड़ी में होगा आयोजन

सीबी गंज थाना

बरेली: खेत को बना दिया कब्रिस्तान, जुम्मा शाह ने बिना अनुमति दफनाया नाती का शव, जमीन के मालिक ने की थाने में शिकायत

प्रतीकात्मक चित्र

छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में छह नक्सली ढेर

पन्हाला दुर्ग

‘छत्रपति’ की दुर्ग धरोहर : सशक्त स्वराज्य के छ सशक्त शिल्पकार

जहां कोई न पहुंचे, वहां पहुंचेगा ‘INS निस्तार’ : जहाज नहीं, समंदर में चलती-फिरती रेस्क्यू यूनिवर्सिटी

जमानत मिलते ही करने लगा तस्करी : अमृतसर में पाकिस्तानी हथियार तस्करी मॉड्यूल का पर्दाफाश

Pahalgam terror attack

घुसपैठियों पर जारी रहेगी कार्रवाई, बंगाल में गरजे PM मोदी, बोले- TMC सरकार में अस्पताल तक महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं

अमृतसर में BSF ने पकड़े 6 पाकिस्तानी ड्रोन, 2.34 किलो हेरोइन बरामद

भारतीय वैज्ञानिकों की सफलता : पश्चिमी घाट में लाइकेन की नई प्रजाति ‘Allographa effusosoredica’ की खोज

डोनाल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका

डोनाल्ड ट्रंप को नसों की बीमारी, अमेरिकी राष्ट्रपति के पैरों में आने लगी सूजन

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • जीवनशैली
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies