मणिपुर की हिंसा को आमतौर पर नगा-कुकी और मैतेई के बीच जनजाति के अधिकार को लेकर हुआ संघर्ष माना जा रहा है। हालांकि, यह सिर्फ एक वजह नहीं है क्योंकि, पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी कई समुदाय जनजाति के दर्जे की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन स्थिति कभी भी इतनी भयावह नहीं हुई।
मणिपुर हिंसा की धधकती ज्वाला अब धीमी पड़ती दिख रही है। हालांकि, इस आग ने अपने पीछे कई सवाल छोड़े हैं। लाखों लोगों की आंखों में दहशत, डर, खौफ भर गया है, जो संभवत: कभी न मिटने वाला घाव बन गया। 3 मई को शुरू हिंसा में 60 कीमती जान चली गई, 1,700 से अधिक घरों को आग के हवाले कर दिया गया। बड़ी संख्या में वाहनों को जलाया गया, सही अर्थों में इंसानी सभ्यता पर जंगल का कानून भारी पड़ गया। वर्तमान समय में हजारों की संख्या में लोग अपने घरों को छोड़ शरणार्थी का जीवन बिताने के लिए मजबूर हैं।
नशे पर नकेल से बौखलाहट
मणिपुर में पहले से ही कई मुद्दों को लेकर जनजाति दर्जा पाए समूहों में नाराजगी पनप रही थी। हिंसा की एक वजह पहाड़ी और जंगली इलाके में हो रही अफीम की खेती पर सरकार द्वारा नकेल कसा जाना भी मानी जा रही है। मणिपुर में मादक पदार्थों का कारोबार काफी बड़े पैमाने पर हो रहा है, इसको उग्रवादी समूह पूरी तरह से संचालित करते हैं। ज्ञातव्य है कि जनजाति समाज ने पहाड़ी जमीन पर कालांतर में खेती करना शुरू किया था जिसका फायदा उठाते हुए उग्रवादी समूहों ने बंदूक की नोक पर चोरी-छिपे अफीम की खेती को बढ़ावा देना आरंभ किया। इससे होने वाली आय का इस्तेमाल वे अपना संगठन चलाने और कन्वर्जन के लिए करते आ रहे थे।
इसकी जानकारी मिलने पर राज्य सरकार ने जंगलों में अवैध रूप से हो रही अफीम की खेती को रोकने के लिए कार्रवाई तेज कर दी है। कहा जा रहा है कि इसकी मार म्यांमार से जुड़े अवैध प्रवासियों पर भी पड़ रही है। वे मणिपुर की कुकी और जेमी जनजाति से ताल्लुक रखते हैं। सरकार की इस कार्रवाई से उग्रवादी समूह और कन्वर्जन का खेल खेलने वाले बौखला गये। अपने हितों को साधने के लिए वे जनजातियों को ढाल की तरह इस्तेमाल करते हुए हिंसा भड़का रहे हैं। चुराचंदपुर में दो लोगों के पास से 16 किलो अफीम की बरामदगी पर 2 मई को मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने ट्वीट किया था कि ये लोग हमारे वनों को बर्बाद कर रहे हैं और अपने ड्रग्स व्यवसाय के लिए सांप्रदायिक मुद्दे को भड़का रहे हैं।
मणिपुर की हिंसा को आमतौर पर नगा-कुकी और मैतेई के बीच जनजाति के अधिकार को लेकर हुआ संघर्ष माना जा रहा है। हालांकि, यह सिर्फ एक वजह नहीं है क्योंकि, पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी कई समुदाय जनजाति के दर्जे की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन स्थिति कभी भी इतनी भयावह नहीं हुई। इसलिए यह साफ तौर पर माना जा सकता है कि इस हिंसा के पीछे और भी कई कारण हो सकते हैं जिसमें पहाड़ों में अफीम की खेती, सांस्कृतिक वर्चस्व और आस्था के वर्चस्व की लालसा प्रमुख हैं।
कुछ समय पहले 27 मार्च को मणिपुर उच्च न्यायालय ने मैतेई ट्राइब यूनियन की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से कहा कि वह मैतई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने को लेकर विचार करे। पिछले 10 वर्षों से यह मांग विचाराधीन है। न्यायालय ने केंद्र सरकार की भी राय मांगी थी। न्यायालय ने अभी मैतई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने का आदेश नहीं दिया है, सिर्फ़ एक आब्जर्वेशन दी है।
सांस्कृतिक वर्चस्व की लड़ाई
मणिपुर में अधिकारों की लड़ाई के पीछे सांस्कृतिक वर्चस्व भी छिपा हुआ है। देश में अंग्रेजी सत्ता के बाद पहाड़ी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर कन्वर्जन का खेल आरंभ हो गया था। कभी सेवा के नाम पर, तो कभी ताकत के बल पर, तो कभी अंधविश्वास के नाम पर। जनजाति समाज के भोलेपन का फायदा उठाते हुए उन्हें कन्वर्ट किया जाता रहा। देश की आजादी के बाद पूर्वोत्तर में सबसे पहले उग्रवाद की जड़ें नगालैंड में पनपनी शुरू हुईं। इसके पीछे सीधे तौर पर पश्चिमी देशों का मजहबी एजेंडा शामिल था। समय बीतने के साथ पूरे पूर्वोत्तर में उग्रवाद ने अपनी जड़ें जमा लीं। सभी समूहों के पीछे नगालैंड में पैदा हुआ उग्रवादी समूह ही था। उग्रवाद की आड़ में कन्वर्जन का खेल बड़े ही शांतिपूर्ण तरीके से चलता रहा।
जब तक देश के अन्य हिस्सों में इसका पता चलता, तब तक काफी देर हो चुकी थी। केंद्र में बैठी पूर्ववर्ती सरकार ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया। पूर्वोत्तर में सेवा और शिक्षा के नाम पर बड़े पैमाने पर फर्जी एनजीओ के जरिए आर्थिक मदद मुहैया कराई जारी रही, जिसका उपयोग कन्वर्जन और उग्रवाद की पौध को सींचने के लिए किया जाता रहा। पूर्वोत्तर के कई राज्यों से म्यांमार की सीमा लगती है। यहां से न सिर्फ हथियार भारत में पहुंचाये जाते रहे, बल्कि उग्रवादी समूह अपने प्रशिक्षण शिविर भी म्यांमार में स्थापित कर पूर्वोत्तर को दहलाने की अनवरत कोशिश करते रहे हैं। उग्रवाद प्रभावित पूर्वोत्तर के राज्यों में अलग देश के नाम पर घिनौनी गतिविधियां संचालित की जाती रहीं। इन सबके पीछे सिर्फ एक उद्देश्य था, अलग उपासना पद्धति के अनुसार भारत से इस क्षेत्र को अलग करना।
देर से ही सही, केंद्र सरकार को इसका पता चला। उग्रवाद पर कड़ाई से नकेल कसने की योजना ने मूर्त रूप लिया, तो स्थितियां तेजी से बदलने लगीं। पूर्वोत्तर के अधिकांश राज्यों में उग्रवाद के फन को पूरी तरह से कुचला जा चुका है। लेकिन सांस्कृतिक लड़ाई का नेतृत्व करने वाले और कन्वर्जन के खले के संचालकों को यह स्थिति नागवार लगने लगी, इसलिए उन्होंने अंग्रेजों वाली राजनीति ‘फूट डालो और राज करो’, पर फिर से अमल करना शुरू कर दिया। अधिकार की लड़ाई असल में संस्कृति की लड़ाई है। इसके लिए हिंसा का रास्ता अपनाने का प्रयास किया जा रहा है।
इसके मद्देनजर 3 मई को आल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर ने एक रैली आयोजित की। ‘आदिवासी एकजुटता रैली राजधानी इंफाल से करीब 65 किमी दूर चुराचांदपुर जिÞले के तोरबंग इलाके में आयोजित की गई। इसमें हजारों लोग शामिल हुए थे। स्थानीय लोगों का कहना है कि रैली में शामिल कुछ लोगों ने उकसाऊ नारे लगाये, जिसके बाद एकता रैली ने हिंसक रूप अख्तियार कर लिया। देखते ही देखते हिंसा राज्य के दूसरी स्थानों पर भी फैलती गई। दावा किया गया है कि आंदोलन की आड़ में पड़ोसी देश म्यांमार से उग्रवादी समूहों ने हथियार लेकर रैली में हिस्सा लिया। उग्रवादियों के उकसावे पर ही रैली में भाग लेने वालों ने हिंसक रूप अख्तियार किया।
मैतेई समुदाय के लिए काम करने वाले संगठन पीपुल्स अलायंस फॉर पीस एंड प्रोग्रेस, मणिपुर (पीएपीपी) ने दावा किया है कि राज्य के हिंसा प्रभावित चुराचंदपुर जिले में मैतेई समुदाय के 5,000 लोग बेघर हो गए हैं। पीएपीपी ने आरोप लगाया है कि चुराचांदपुर में सामुदायिक बस्ती क्षेत्र में मैतेई के सभी घरों को उग्रवादियों द्वारा समर्थित हथियारबंद नागरिकों ने जला दिया।
संगठन ने दावा किया है कि मोरेह शहर में लगभग हर मैतेई के घर को जला दिया गया है और कुछ मैतेई म्यांमार में शरण ले रहे हैं, जबकि अन्य लोगों ने खुदेंगथाबी में असम राइफल्स के शिविर में शरण ली है। वहीं हिंसा प्रभावित लोगों के काफी संख्या में असम और मिजोरम में शरण लेने की बात कही जा रही है।
घटनाक्रम
- मणिपुर में हिंसा का सूत्रपात गत 27 अप्रैल से आरंभ हुआ। अपने चुराचांदपुर दौरे से एक दिन पहले मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह जिस ओपन जिम का उद्घाटन करने वाले थे, उसमें 27 अप्रैल को आग लगा दी गई।
- मणिपुर में जनजातीय दर्जा प्राप्त समूहों ने 28 अप्रैल को मुख्यमंत्री की चुराचांदपुर यात्रा के दिन 12 घंटे के बंद का आह्वान किया। इस दौरान जनजातीय समूहों और मैतेई के बीच इंफाल, चुराचांदपुर और अन्य क्षेत्रों में हिंसक झड़पों की सूचना मिली। प्रशासन ने धारा 144 लागू कर दी। इंटरनेट सेवा को भी पांच दिन के लिए निलंबित कर दिया गया।
- मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में शामिल करने की मांग के विरोध में छात्रों के संगठन आॅल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन आफ मणिपुर (एटीएसयूएम) ने 3 मई को रैली का आह्वान किया। इस प्रदर्शन के दौरान चुराचांदपुर के तोरबंग इलाके में सबसे पहले हिंसा भड़की। कांगपोकपी जिले के सैकुल में गोली लगने से लगभग 11 नागरिक घायल हो गए, जबकि दो अन्य की मौत हो गई। उधर मैतेई और जनजाति समूह को सड़कों पर उतरते देख आठ जिलों में निषेधाज्ञा लागू कर दी गई। सेना और असम राइफल्स ने सभी प्रभावित क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में तुरंत अपने जवान तैनात कर दिए।
- 4 मई को इंफाल में हिंसा की घटनाएं हुईं। तोड़फोड़, संपत्ति को नष्ट करना और मैतेई व दूसरी जनजातियों के बीच संघर्ष जारी रहा। इस बीच, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह से बात की और स्थिति का जायजा लिया। उधर हिंसा को रोकने के लिए राज्य में रैपिड एक्शन फोर्स की कंपनियां भेजी गईं।
- उसी दिन, सरकार ने कुछ परिस्थितियों में देखते ही गोली मारने का आदेश जारी किया। इस दौरान हिंसा प्रभावित क्षेत्रों से करीब 9 हजार लोगों को सुरक्षा बलों द्वारा निकाल कर सुरक्षित आश्रय दिया गया। कई हिस्सों में जारी हिंसा और तनाव के बीच मणिपुर के मुख्यमंत्री ने कहा, ‘हिंसा की ये घटनाएं हमारे समाज के दो वर्गों के बीच पैदा हुई गलतफहमी की वजह से हुई हैं। राज्य सरकार स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सभी कदम उठा रही है।’
- 5 मई को हिंसा के बीच कई राज्यों ने अपने लोगों को निकालना शुरू कर दिया था। मणिपुर के हालात पर पूर्वोत्तर के राज्य त्रिपुरा, असम, मिजोरम अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मेघालय की सरकारों ने भी कदम उठाते हुए हेल्प लाइन नंबर जारी किया। हिंसाग्रस्त मणिपुर के हजारों लोगों ने असम के कछार जिले में शरण ली।
- इस बीच भाजपा विधायक वुंगजागिन वाल्टे पर प्रदर्शनकारियों ने हमला किया जिसमें वे गंभीर रूप से घायल हो गये। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए उन्हें हवाई मार्ग से दिल्ली ले जाया गया, जहां पर उनका इलाज चल रहा है। इसी दिन केंद्रीय गृह मंत्री ने मुख्यमंत्री और राज्य के साथ-साथ केंद्र के शीर्ष अधिकारियों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस बैठक में मणिपुर की स्थिति की समीक्षा की। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल की 10 और कंपनियां मणिपुर भेजी गईं।
- 6 मई को स्थिति को देखते हुए राज्य से अतिरिक्त उड़ानें चलाईं गईं, ताकि अधिक से अधिक यात्रियों को राज्य से सुरक्षित बाहर निकाला जा सके। इस बीच राजधानी इंफाल में सुरक्षा बलों की गश्त जारी रही। वहीं आईएएस विनीत जोशी को मणिपुर का मुख्य सचिव बनाया गया।
- 7 मई को मणिपुर के केंद्रों में होने वाली नीट यूजी 2023 परीक्षा को स्थगित कर दिया गया। प्रशासन ने दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की।
- मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने राज्य में शांति बहाल करने के लिए ‘मणिपुर अखंडता समन्वय समिति (सीओसीओएमआई)’ के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की। इसके अलावा एक सर्वदलीय बैठक की गई। हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में लगे कर्फ्यू से स्थानीय लोगों को कुछ घंटों की छूट दी गई।
- 8 मई को मणिपुर के मुख्यमंत्री ने बताया कि तीन मई की दुर्भाग्यपूर्ण घटना में लगभग 60 निर्दोष लोगों की जान चली गई। 231 लोगों को चोटें आईं और लगभग 1700 घर जला दिए गए। उन्होंने लोगों से राज्य में शांति बहाल करने की अपील की। राज्य में फंसे हुए लोगों को उनके संबंधित स्थानों तक पहुंचाने का काम शुरू हो गया है।
- उन्होंने बताया कि हिंसा भड़काने वाले व्यक्तियों या समूहों और अपनी जिम्मेदारियों को पूरा नहीं करने वाले सरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों पर जिम्मेदारी तय करने के लिए एक उच्च स्तरीय जांच की जाएगी। उन्होंने सभी से अपील की कि वे निराधार अफवाहें न फैलाएं और न ही उन पर विश्वास करें। अब तक 1593 छात्रों सहित 35,655 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है।
मणिपुर में हिंसा के फैलने की जानकारी मिलते ही केंद्र सरकार ने तुरंत कदम उठाते हुए राज्य सरकार को सभी आवश्यक सहायता मुहैया कराई। सीआरपीएफ की 35 कंपनियां नियुक्त की गईं। इसके लिए असम के तेजपुर और गुवाहाटी से वायु सेना के विमानों के जरिए बेहद कम समय में सुरक्षा बलों को मणिपुर पहुंचाया गया। वहीं सेना और असम राइफल की टुकड़ियां पहले से ही शांति बहाली के कार्य में जुट गई थीं। राज्य के 10 जिलों में फैली हिंसा के मद्देनजर धारा 144 को लागू किया गया, वहीं राज्यपाल के निर्देश पर दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिये गए। इंटरनेट सेवा को बंद कर गलत सूचनाओं के फैलने पर रोक लगाने के लिए भी तुरंत कदम उठाए गए।
राज्य के हालात के खराब होने के चलते मणिपुर में पढ़ने वाले दूसरे राज्यों के अधिकांश छात्रों के बीच भी डर का माहौल उत्पन्न हो गया। अधिकांश राज्य सरकारों ने मणिपुर सरकार के साथ सांमजस्य बनाते हुए अपने-अपने विद्यार्थियों को हवाई मार्ग से निकाला। इस कार्य में सेना, असम राइफल्स, केंद्रीय अर्ध सैनिक बल और राज्य पुलिस ने अहम भूमिका निभाई।
10 प्रतिशत भूभाग में सिमटे बहुसंख्यक मैतेई
लगभग 35 लाख की आबादी वाला मणिपुर मुख्य रूप से दो हिस्सों में बंटा हुआ है। 90 प्रतिशत पहाड़ और 10 प्रतिशत मैदान या घाटी। पहाड़ों पर नगा-कुकी की संख्या अधिक है, जबकि घाटी में मैतेई। नगा-कुकी मूलत: ईसाई समाज है और मैतेई हिंदू। राज्य में मैतेई समाज की बहुसंख्या होने के चलते राज्य की राजनीति में प्रतिनिधित्व भी मैतेई समाज को अधिक मिलता है। नगा-कुकी घाटी में जमीन खरीद सकते हैं परंतु मैतेई पहाड़ी क्षेत्र में जमीन नहीं खरीद सकते।
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