समलैंगिक विवाह पर इन दिनों एक बहस लगातार चल रही है और इसी से आगे बढ़कर ट्रांस-पीपल एक मुद्दा है। यह मामला कुछ अधिक व्यापक है और यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पश्चिम के समाज में स्वीकार्यता पाने के लिए कहीं न कहीं भारतीय लोक को कॉर्पोरेट द्वारा निशाना बनाया जा रहा है, नीचा दिखाया जा रहा है। उन अवधारणाओं पर भारतीय लोक को पिछड़ा दिखाया जा रहा है, जिनके आसपास की सकारात्मक अवधारणाओं को लेकर वह हमेशा ही सजग रहा है। सहज रहा है। समलैंगिक संबंधों को लेकर जो लॉबी सक्रिय है, उसका उद्देश्य क्या है? उसका उद्देश्य भारत के लोक को पराजित करना है, उसका उद्देश्य भारत के हिन्दू लोक को निरंतर अपमानित करना है। पिछले वर्ष जून में चेन्नई में कथित “प्राइड परेड” का आयोजन किया गया था। प्राइड परेड अर्थात समलैंगिक लोगों द्वारा अपनी इस लैंगिक पहचान पर शर्मिंदा न होने की बात करना। यहाँ तक बात सही है, कोई भी परेड कर सकता है और कोई भी अपनी पहचान पर गर्व कर सकता है। परन्तु एक पोस्टर ने ध्यान आकर्षित किया था और उस समय इस पर चर्चा भी हुई थी। वह पोस्टर था कि “मेरे इन्द्रधनुष में केसरिया नहीं!”

अर्थात ऐसा एक परिदृश्य बनाया जा रहा था जैसे केसरिया अर्थात हिन्दू बाहुल्य भारत इन संबंधों के विषय में संकुचित दृष्टिकोण रखता है। परन्तु वह कौन सा समाज या समुदाय है जो इन संबंधों के प्रति संकुचित दृष्टिकोण रखता है, इस पर न ही इन प्राइड परेड वालों का और न ही कथित विज्ञापन बनाने वाले कॉर्पोरेट का ध्यान जाता है। यद्यपि स्टारबक्स का विज्ञापन लैंगिक और यौनिक पहचान में भ्रम को लेकर हिन्दू समाज में पुरुष से महिला बनने की स्वीकार्यता की हिचकिचाहट को लेकर है, परन्तु उसी से जुड़ा जो एक और मामला है समलैंगिक विवाह का, तो उसमें आंकड़ों में देखना चाहिए कि विरोध कहाँ है हो रहा है और ऐसे जोड़ों की हत्याएं कहाँ हो रही हैं?
वर्ष 2023 में जब स्टारबक्स अपने विज्ञापन में यह दिखा रहा है कि क्या फर्क पड़ता है अर्पित और अर्पिता से
Your name defines who you are – whether it's Arpit or Arpita. At Starbucks, we love and accept you for who you are. Because being yourself means everything to us. #ItStartsWithYourName. 💚 pic.twitter.com/DKNGhKZ1Hg
— Starbucks India (@StarbucksIndia) May 10, 2023
तो स्टारबक्स का इतना साहस नहीं होता कि वह पिछले ही वर्ष अक्टूबर में तालिबान सरकार द्वारा चलाए जा रहे एलजीबीटी क्यू समुदाय के विरुद्ध की जा रही सुनियोजित हिंसा के आधार पर विज्ञापन बना सके? पिछले ही वर्ष एक मेडिकल की पढाई की चाह रखने वाले हामेद सबौरी की हत्या तालिबान ने कर दी थी। और वह हत्या किसलिए की थी क्योंकि वह समलैंगिक था। पाकिस्तान में आए दिन ट्रांसजेंडर लोगों की हत्याओं के समाचार आते रहते हैं। अभी फरवरी में ही एक ट्रांसजेंडर का शव रावलपिंडी में लटका हुआ मिला था। मार्च 2022 में प्रकाशित एएनआई की एक खबर के अनुसार पाकिस्तान में ट्रांसजेंडर लोगों की हत्याएं आम हैं। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनखवा प्रांत में 17 मार्च 2022 को पांच ट्रांसमहिलाओं की हत्या हुई थी और उसके बाद ही एक और प्रख्यात ट्रांसजेंडर की हत्या हो गयी थी।
इसी रिपोर्ट में एक गैर सरकारी संगठन के हवाले से बताया था कि पाकिस्तान में कुछ वर्षों में लगभग 70 ट्रांसजेंडर्स की हत्याएं हुई हैं, परन्तु सजा किसी को भी नहीं मिली है। परन्तु न ही स्टारबक्स का साहस होता है कि वह उस समाज से प्रश्न करे जहां से यह हत्याएं जन्म ले रही हैं और न ही प्राइड परेड वाले यह साहस कर पाते हैं कि उनके “इन्द्रधनुष” में यह विशेष रंग नहीं होगा, जैसे केसरिया नहीं होगा!
वैसे किसी भी रंग पर आरोप लगाना स्वयं में उस रंग की ह्त्या करना होता है, परन्तु हिन्दू लोक पहचान वाले भारत से कथित प्रगतिशील या परिवार तोड़ो विमर्श की घृणा इतनी तीव्र है कि वह भारतीय जनता पार्टी से घृणा करते करते पूरे हिन्दू समाज को अपनी घृणा की जद में ले चुके हैं।
नहीं तो उन तमाम हत्याओं की बातें कभी नहीं होती हैं, जो पाकिस्तान में ट्रांसजेंडर लोगों की हो रही हैं, जो अफगानिस्तान में समलैंगिक सम्बन्धों को कायम रखने वालों के साथ हो रही हैं और यह सब इसलिए हो रही हैं क्योंकि उनके समुदाय में यह अनुमत नहीं है। जबकि भारत में हिन्दू मूल्यों वाले परिवार ने अपने बच्चे की लैंगिक पहचान को लेकर शायद ही इतना चरम कदम उठाया हो कि उसकी हत्या कर दी हो। इस्लामिक मुल्कों में लिग्न आधारित पहचान को लेकर क्या दृष्टिकोण है, उसे बहुत ही अच्छी तरह से एक पाकिस्तानी फिल्म “बोल” के माध्यम से दिखाया गया था, जिसमें अपनी देह से लड़का परन्तु मन से लड़की संतान को उसका अब्बा ही मार डालता है। क्योंकि वह यह बर्दाश्त नहीं कर पाता कि उसके बेटे की लैंगिक एवं यौनिक पहचान अलग-अलग हैं!

यह फिल्म वर्ष 2011 में आई थी और यह बहुत ही बेबाक होकर समस्या पर बात करने वाली फिल्म थी। परन्तु कथित प्रगतिशील वर्ग एवं पश्चिम की दृष्टि में ऊंचा उठने का लक्ष्य लेकर चलने वाले कॉर्पोरेट भारतीय लोक पर आक्रमण करके उसे नीचा दिखाकर ही आगे बढना चाहते हैं। क्या किसी भी प्राइड परेड करने वाले या स्टारबक्स जैसे कॉर्पोरेट में उस पाकिस्तानी फिल्म निर्माता जितना साहस है जिन्होंने “बोल” फिल्म बनाकर एक ऐसे पक्ष की पीड़ा को सामने रखा था, जिसे सामने लाने में लोग हिचक जाते हैं। या फिर भारत में वह एक ऐसे समूह पर वह विमर्श थोप देते हैं, जो दरअसल उस समाज का है ही नहीं! जब से स्टारबक्स का यह विज्ञापन आया है, इंटरनेट पर हलचल है और लोग विरोध कर रहे हैं
Hi @StarbucksIndia, I suppose people like me and people of my opposite gender, who prefer to be called as men and women, respectively, aren't welcome at your outlets. Thanks for letting me know that! #GoWoke #GoBroke ! https://t.co/izCfoXYXDk
— Dr. Manigreeva Krishnatreya (@manigreeva) May 11, 2023
परन्तु चूंकि वोकिज्म का दौर है और हर विमर्श को वोक आधारित बनाना है, यहाँ तक पीड़ाओं एवं हर्ष को भी ऐसा बनाकर प्रदर्शित करना है कि समस्त खामियां एक ही समाज में हैं और वही विमर्श बिकता भी है तो इस विज्ञापन का समर्थन करने वाले भी तमाम आ गए हैं, और वह भी वही लोग हैं, जो कभी फिल्म बोल पर चर्चा नहीं करते, जो कभी भी अफगानिस्तान में ऐसे लोगों के मारे जाने पर बात नहीं करते जिनकी लैंगिक एवं यौनिक पहचान अलग है। यह वही लोग हैं जो ईरान में एक समलैंगिक व्यक्ति की होनर किलिंग पर बात नहीं करते हैं और जो लोग आतंकी संगठन आईएसआईएस द्वारा समलैंगिक पुरुषों की पत्थर मारकर ह्त्या किए जाने पर भी मौन धारण किए रहते हैं। इस विज्ञापन के समर्थन में वह पूरी की पूरी लॉबी आ गयी है, जो किसी न किसी प्रकार भारत को सांस्कृतिक रूप से तोड़ना चाहती है।
मगर सबसे मजे की बात यह है कि जो स्टारबक्स भारतीय समाज या कहें हिन्दू समाज को शर्मिंदा कर रही है, उनमे हीन भावना भर रही है, कि वह अर्पित से अर्पिता को नहीं अपना रहे हैं, वह खुद क्या करती है? एक यूजर ने एक समाचार साझा किया जिसमें लिखा था कि स्टारबक्स स्टोर ने ट्रांस कर्मचारी को नौकरी से निकाला क्योंकि उसने एक कस्टमर को ट्रांसफोबिक कह दिया था।
https://twitter.com/kushfehmi/status/1656743043343720450
मगर स्टारबक्स को भारतीय लोक को शर्मिंदा करके पश्चिम के विमर्श में ऊंचा उठना है फिर चाहे वह स्वयं कुछ भी करता रहे। यहाँ तक कि जब ट्रांस कर्मचारियों ने एकजुट होने का प्रयास किया था तो उन्होंने ट्रांस हेल्थ लाभ भी वापस लेने की धमकी दी थी।
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