वास्तव में यह ऐसा नरसंहार है, जो एक क्षण में नहीं होता, बल्कि पूरे समाज को धीमी, दुख भरी और दर्दनाक मौत की तरफ ले जाता है। जानकारी और जागरूकता ही इससे बचाव की पहली लाइन है। और यह लाइन है- केरल स्टोरी।
इस्लामी जिहादियों के हाथों अपनी किस्मत, अस्मत, अतीत, वर्तमान और भविष्य गंवा चुकी हजारों हिन्दू-ईसाई युवतियों की कहानी। ‘लव जिहाद’ का वह पहलू, जिसे जानते-समझते बहुत लोग हैं, लेकिन अधिकांश उससे आंखें मूंदे रखने में ही शायद अपनी भलाई समझते रहे हैं। अब यह सच एक फिल्म के जरिए सामने आया है। लोगों के पास अभी भी विकल्प है- वे चाहें, तो इसे परिवार के साथ सिनेमाघरों में देख सकते हैं। वरना यही कहानी उन्हें कभी भी अपने आसपास के दायरे में, बहुत निकट के दायरे में प्रत्यक्ष भी देखने को मिल सकती है। विकल्प उनको स्वयं चुनना होगा। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ने जा रहा है कि वे इस सच का सामना राजनीतिक चश्मे से करना चाहते हैं या नहीं।
यह ‘लव जिहाद’ का वह स्वरूप नहीं है, जिसका उद्देश्य जनसंख्या के ढांचे में बदलाव लाना होता है। बल्कि यह इस बदली हुई जनसंख्या को उसके अंतिम लक्ष्य- आतंकवाद तक ले जाने वाला स्वरूप है। भारत और दुनिया भर में आतंकवादी हमलों को अंजाम देने के लिए गैर मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाकर, बहला-फुसलाकर उनकी भर्ती करने वालों की एक भूल भुलैया का चित्रण।
वास्तव में इस भूल-भुलैया का सटीक चित्रण संभव ही नहीं है। इस जिहाद इंडस्ट्री के पीछे ऐसे संगठनों का जाल है जो कई देशों में फैले हुए हैं, जिनके पास बेशुमार पैसा है और जन्नत मिलने का सपना है। इसके अलावा यह इंडस्ट्री पल-पल अपना रास्ता और तरीके बदलना भी जानती है। फिर भी इस भूल-भुलैया का एक संकेत देने वाली फिल्म है केरल स्टोरी।
ऐसे बहुत से लोग मिल सकते हैं, जो ‘लव जिहाद’ की वास्तविकता को नकारने में ही अपनी समझदारी मानते हैं। कई ऐसे लोग हैं जिनके लिए ‘लव जिहाद’ शब्द का अर्थ सिर्फ राजनीतिक होता है। जो ‘लव जिहाद’ को और इस फिल्म को एक जहरीली, काल्पनिक और भ्रामक कोशिश मानते हैं। इनमें कथित मुख्यधारा का मीडिया भी शामिल है। आखिर केरल में कांग्रेस पार्टी ने फिल्म के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाने का आहवान किया है, कई लोगों ने अदालतों की दौड़ लगाई है। तमाम तरह की बातें कहीं हैं। वास्तविकता यह है कि यह फिल्म पर्याप्त और गहन शोध पर आधारित है। फिल्म उस स्थिति की गंभीरता का चित्रण करती है, जिसमें लड़कियों को टारगेट किया जाता है, एक बहुत सुगठित पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा धर्मांतरण के लिए बहकाया जाता है और फिर इस्लामिक स्टेट के लिए यौनदासी के तौर पर सीरिया के संघर्ष क्षेत्रों में आतंकवादियों के मनोरंजन के लिए भेज दिया जाता है।
यह फिल्म एक साथ कई पहलुओं को सामने लाती है। पहला पहलू जाहिर तौर पर ‘लव जिहाद’ का है। दूसरा मानव तस्करी का। तीसरा आतंकवाद का। चौथा आतंकवाद की गहराई तक जड़ें जमा चुके नेटवर्क का। पांचवां भारत की अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता के लिए गंभीर होते जा रहे खतरे का। छठवां अल्हड़ उम्र में भावनाओं का शिकार होने वाली लड़कियों के शोषण और उनकी पीड़ा का। सातवां बदलती जनसंख्या की स्थिति का।
फिल्म केरल पर है, लेकिन यह कहानी सिर्फ केरल की नहीं है। यह एक विकराल अंतरराष्ट्रीय समस्या की संक्षिप्त तस्वीर है। यह यूरोप भर में लड़कियों का शोषण करने वाले ‘ग्रूमिंग’ गिरोहों से लेकर दक्षिण एशिया के गरीब देशों की लड़कियों के मध्य पूर्व के देशों में होने वाले से यौन शोषण के गिरोह तक की एक लंबी कहानी है। इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड लेवांत (आईएसआईएल या आईएसआईएस) भले ही सीरिया में सक्रिय आतंकवादी संगठन हो, उसकी देखादेखी करने वालों से लेकर उसकी देखभाल करने वालों तक की कतार केरल तक में है। जबरन इस्लाम में कन्वर्ट करा कर यौन दासता के लिए मजबूर की गई हजारों यजीदी महिलाओं और लड़कियों से लेकर अफगानिस्तान में पाई गई केरल की कन्वर्टेड लड़कियों तक, सबकी एक ही कहानी है- केरल स्टोरी।
वास्तव में यह ऐसा नरसंहार है, जो एक क्षण में नहीं होता, बल्कि पूरे समाज को धीमी, दुख भरी और दर्दनाक मौत की तरफ ले जाता है। जानकारी और जागरूकता ही इससे बचाव की पहली लाइन है। और यह लाइन है- केरल स्टोरी।
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