उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिले में चैत्र नवरात्रि एवं रामनवमी के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने के शासनादेश को चुनौती दी गई थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस याचिका को खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ता राजीव कुमार यादव का कहना था कि देश पंथनिरपेक्ष है। उत्तर प्रदेश सरकार के अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि शासनादेश कहीं से भी असंवैधानिक नहीं है। यह कार्यक्रम देश की सांस्कृतिक धरोहर को बचाए रखने के लिए किया गया है।
इस बार चैत्र नवरात्र में उत्तर प्रदेश सरकार ने नवरात्र और रामनवमी के अवसर पर देवी मंदिरों और शक्तिपीठों में धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कराया था। गत 22 से 30 मार्च तक चैत्र नवरात्र की इस अवधि में देवी मंदिरों और शक्तिपीठों में दुर्गा सप्तशती का पाठ किया गया था। मंदिरों में देवी गीत एवं जागरण का भी आयोजन किया गया था। अष्टमी और रामनवमी के अवसर पर प्रमुख शक्तिपीठों में अखंड रामायण का आयोजन किया गया था। इसके लिए जिला स्तर पर कमेटी का गठन किया गया था। इस सम्बन्ध में शासनादेश जारी किया गया था। संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव, मुकेश मेश्राम ने जारी आदेश में कहा था कि अष्टमी और रामनवमी को प्रमुख देवी मंदिरों और शक्तिपीठों में अखंड रामायण का पाठ किया जाए। इस तरह के आयोजन का उद्देश्य है कि सामाजिक और राष्ट्रीय मूल्यों का प्रसार किया जा सके। इसके लिए हर जिले में एक आयोजन समिति गठित की जाए।
मेश्राम ने यह भी स्पष्ट किया था कि इस तरह के आयोजन पहले भी होते रहे हैं। ऐसा पहली बार नहीं है। इस तरह के आयोजन से स्थानीय स्तर के कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलेगा। प्रत्येक जिले में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जाएगी। यह समिति जनपद में कलाकारों का चयन करेगी। कलाकारों को मानदेय दिया जाएगा। यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि बड़ी संख्या में जन भागीदारी हो। आयोजन में जनप्रतिनिधियों को भी बुलाया जाएगा। आयोजनों के दौरान उसकी फोटोग्राफी कराई जाए और उन फोटो को विभाग की वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा। मंदिरों की जीपीएस लोकेशन भी विभाग के साथ साझा की जाएगी।
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