तिरुपति मंदिर में होती है इन भगवान की पूजा, जानिए मंदिर से जुड़ा इतिहास और मान्यताएं

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Masummba Chaurasia

आंध्र प्रदेश में स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर जो देश के सबसे धनी मंदिरों की लिस्ट में शामिल है। यह मंदिर पृथ्वी के बैकुंठ के नाम से भी जाना जाता है। यहां हर वर्ष करोड़ों की संख्या में पर्यटकआते हैं। इस मंदिर में लोग भारत के अलग-अलग क्षेत्रों के अलावा विदेशों से भी काफी अधिक संख्या में आते हैं। तो चलिए अब हम तिरुपति बालाजी मंदिर से जुड़ी कुछ जानकारियों को विस्तार से बताते हैं।

तिरुपति बालाजी मंदिर
तिरुपति बालाजी मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिला में स्थित है, यह केवल आंध्र प्रदेश का ही नहीं बल्कि पूरे भारत का एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल है। यहां पूरे साल भक्त काफी अधिक संख्या में भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन को लेकर आते हैं।

तिरुपति बालाजी मंदिर में होते हैं केश दान
इस मंदिर से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं है। यह मंदिर मुख्य रूप से वेंकटेश्वर स्वामी यानी भगवान विष्णु को समर्पित है। यहां हर रोज हजारों की संख्या में लोग अपने केश को दान करने के लिए आते हैं।

तिरुपति बालाजी मंदिर की इतिहास
तिरुपति बालाजी मंदिर भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के अंतर्गत आने वाले चित्तूर जिला में स्थित है। यह तिरुपति बालाजी मंदिर हिंदू धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। इस मंदिर का नाम देश के सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों में सबसे ज्यादा भक्तों के दर्शन करने की सूची में आता है।

वहीं तिरुपति बालाजी मंदिर के इतिहास की बात करेंगे, तो कहा जाता है कि तिरुपति बालाजी मंदिर का निर्माण 300 ईसवी में शुरू हुआ था। मंदिर के निर्माण में कई राजाओं द्वारा अहम भूमिका निभाई गई है। तिरुपति बालाजी मंदिर के निर्माण में मुख्य रूप से भूमिका की बात करें, तो 18वीं शताब्दी के दौरान जर्नल राघोजी भोसले के नाम को बताया जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर को पृथ्वी का बैकुंठ भी कहा जाता है। यह भी मान्यता है कि यहां भगवान विष्णु भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए स्वयं प्रकट हुए हैं। कुछ ग्रंथों के अनुसार यह भी माना जाता है, कि लंका से वापस लौटते समय भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने यही विश्राम किया था।

तिरुपति बालाजी मंदिर की वास्तुकला
तिरुपति बालाजी मंदिर द्रविड़ वास्तुकला में बना हुआ है। मंदिर के गर्भगृह को आनंद नीलयम कहा जाता है।

तिरुपति बालाजी मंदिर में भगवान विष्णु की जो प्रतिमा है उसके बारे में कहा जाता है कि यह प्रतिमा किसी ने बनाई नहीं है बल्कि यह प्रतिमा स्वयं जमीन से प्रकट हुई है। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान वेंकटेश्वर जो भगवान विष्णु है, उनकी 7 फीट ऊंची प्रतिमा है जिनका मुख पूर्व दिशा की ओर है।

इस मंदिर के गर्भ गृह के ऊपर का गोपुरम पूरी तरह से सोने से बना हुआ है। इसी के साथ मंदिर के तीनों द्वार पर सोने के कलश बने हुए हैं। मंदिर के गर्भगृह की ओर जाने के लिए बाहर से प्रमुख तीन प्रवेश द्वार बने हैं। मंदिर के मुख्य द्वार को पडिकावाली कहा जाता है। मंदिर के ऊपरी शीर्ष पर 7 सोने के कलशों को स्थापित किया गया है।

तिरुपति बालाजी मंदिर में केश दान करने की परंपरा
जब आप तिरुपति बालाजी मंदिर में जाएंगे तो यहां आप देखेंगे कि बड़ी संख्या में लोग अपने केश दान कर रहे होंगे। यहां पर केश को दान करने की परंपरा काफी पुरानी मानी जाती है। कहा जाता है, कि भगवान के दर्शन पहले लोग अपने केश दान करते हैं, जिसका मतलब ये होता है, कि वह अपने अहंकार को खत्म करके भगवान वेंकटेश्वर की शरण में आए हैं।

यहां केश दान की परंपरा को मोक्कू के नाम से जाना जाता है। यहां पर प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग अपने केश को दान करते हैं। यहां पर केश दान करने के लिए कुछ नियम है, केश दान करने वाले शख्स को मंदिर अथॉरिटी से खुद ब्लेड लेनी होती है। केश दान करने के बाद स्नान करके कपड़े बदल कर ही मंदिर में तिरुपति बालाजी के दर्शन किए जाते हैं।

तिरुपति बालाजी का दर्शन समय
तिरुपति बालाजी मंदिर श्रद्धालु दिन और रात दोनों समय दर्शन कर सकते हैं, केवल रात के समय दो घंटे के लिए दर्श बंद होते हैं। यहां पर श्रद्धालुओं दर्शन करने के लिए कम से कम 2 घंटे और ज्यादा से ज्यादा 18 घंटे तक लाइन में लगना होता है।

कैसे पहुंचे तिरुपति बालाजी ?
तिरुपति बालाजी मंदिर जाने के लिए कोई भी शख्स काफी आसानी से अपने यहां से पहुंच सकता है। इसके लिए ट्रेन में रिजर्वेशन पहले से करा लेना ज्यादा बेहतर रहेगा, आप तत्काल टिकट भी बुक कर सकते हैं, इसके बाद डायरेक्ट ट्रेन आपको तिरुपति बालाजी में उतारेगी। वहां से आसानी से ऑटो मिल जाएगा, जहां से आपको बायोमैट्रिक एन्ट्री टिकट जहां मिलता है, वहां तक छोड़ देगा जिसके बाद वहां से टिकट लेने के बाद आप मंदिर के लिए बस, ऑटो, कैब, टैक्सी कोई भी वाहन ले सकते हैं, जो आपको मंदिर तक पहुंचा देगा ।

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