प्रयागराज। मथुरा कृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला सोमवार को आ गया। इस फैसले से मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा। मुस्लिम पक्ष की याचिका हाई कोर्ट ने वापस लौटा दी है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की याचिका पर हस्तक्षेप न करते हुए सिविल कोर्ट मथुरा को विचाराधीन वाद तय करने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने कहा सिविल कोर्ट मथुरा ने कटरा केशवदेव की 13.37 एकड़ जमीन, जो कृष्ण जन्मभूमि है उसे भगवान श्री कृष्ण विराजमान के नाम करने, अवैध निर्माण हटाने आदि की मांग में दाखिल वाद पंजीकृत न कर गलती की है। प्रकीर्ण अर्जी दर्ज कर उसकी ग्राह्यता पर फैसला सुनाना कानून के खिलाफ है।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा जिला जज मथुरा ने सिविल जज के फैसले के खिलाफ अपील को पुनरीक्षण में तब्दील कर कोई ग़लती नही की है। कोर्ट को ऐसा करने का कानूनी अधिकार है। कोर्ट ने कहा सिविल वाद की पोषणीयता विवाद सिविल कोर्ट ही तय कर सकती है। अब सिविल वाद पंजीकृत हो चुका है। विपक्षियों को लिखित कथन दाखिल करने के लिए सम्मन जारी हो चुका है। अनुच्छेद 227 मे इस मुद्दे को तय करने का हाईकोर्ट को अधिकार नहीं है और न ही जिला जज पुनरीक्षण में तय कर सकते थे।
कोर्ट ने याचिकाओं को निस्तारित करते हुए प्रकरण सिविल कोर्ट को वापस भेज दिया है और पक्षों को अपना मुद्दा वहीं उठाने की छूट दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड व ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह के प्रबंध समिति की याचिकाओं को निस्तारित करते हुए दिया है।
मालूम हो कि भगवान श्रीकृष्ण विराजमान व कई अन्य लोगों ने सिविल जज सीनियर डिवीजन मथुरा के समक्ष 25 सितंबर 2020 को दावा दाखिल किया और कटरा केशव देव कृष्ण जन्मभूमि की जमीन से निर्माण हटाकर कब्जा सौंपने तथा 1973 मे कुछ पक्षों के बीच हुए समझौते व डिक्री को रद करने की मांग की।
सिविल जज ने वाद पंजीकृत नहीं किया और कहा वादी संख्या 3 लगायत 8 मथुरा निवासी नहीं है। प्रकीर्ण केस की ग्राह्यता पर सुनवाई की तारीख तय की। बाद में प्रकीर्ण वाद पोषणीय न मानते हुए खारिज कर दिया।कहा वाद सुना गया तो सामाजिक व न्यायिक सिस्टम प्रभावित होगा। जिसके खिलाफ जिला जज के समक्ष भगवान श्रीकृष्ण विराजमान व अन्य की तरफ से अपील दाखिल की गई।जिस पर विपक्षियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया।याची विपक्षियों ने आपत्ति की कि सिविल जज का आदेश सीपीसी के आदेश 7 नियम 11 में पारित नहीं है। इसलिए इसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती।जिला जज ने आपत्ति स्वीकार करते हुए अपील को पुनरीक्षण अर्जी में तब्दील कर दिया। कई वाद विंदु बनाए गए और अंततः सिविल जज का आदेश रद कर पक्षों को सुनकर आदेश पारित करने का निर्देश दिया। जिस पर सिविल जज ने वाद पंजीकृत कर सम्मन जारी किया। इन्हीं आदेशों को हाईकोर्ट में याचिका में चुनौती दी गई थी।
याची की तरफ से हाईकोर्ट में आपत्ति की गई कि जमीन की मालियत 42 लाख 26 हजार 230.40 रूपये है। जिला जज 25 लाख कीमत के वाद की पुनरीक्षण सुन सकते हैं। जिला जज को सुनवाई का अधिकार नहीं था। हाईकोर्ट में पुनरीक्षण दाखिल की जानी चाहिए थी। मंदिर की तरफ से कहा गया कि वाद में जमीन की कीमत 20 लाख है। याची को 42 लाख कीमत कहा से पता चली स्पष्ट नहीं है। इसलिए जिला जज का आदेश सही है। सिविल वाद की सुनवाई होनी चाहिए। सुनवाई पर लगी रोक हटाई जाय। कोर्ट ने दोनो पक्षों को सुनकर फैसला सुरक्षित कर लिया था। और फैसला सुनाते हुए सिविल वाद की सुनवाई करने का आदेश दिया है।
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