‘जागृति महिला स्वावलंबन केंद्र’ से कुछ रास्ता निकल सकता है। वह वहां गईं। अपनी व्यथा बताने के बाद उन्होंने कुछ करने की इच्छा व्यक्त की। इसके बाद केंद्र में उन्हें राखी बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। अब वह सालभर राखियां ही बनाती हैं। इस काम में उनके साथ ममता पुजारी, मंजुला पट्टार, गीता नंदीहल्ली भी हैं।
कहा जाता है कि गरीबी से बुरी और कोई चीज नहीं होती और जो इस गरीबी से मुक्ति दिलाए, वह भगवान से कम नहीं होता। कुछ ऐसा ही कहना है बेलगाम (कर्नाटक) की गीता कापलुसकर का। 55 वर्षीया गीता विधवा हैं। बेलगाम की एक झुग्गी में रहने वाली गीता ने मजदूरी करके अपने इकलौते बेटे को पाला-पोसा और बड़ा किया।
बेलगाम स्थित सेवा भारती के केंद्र में सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण प्राप्त करतीं महिलाएं
जागृति महिला स्वावलंबन केंद्र
बेटा कुछ करता उससे पहले ही वह भी अपनी मां को अकेला छोड़कर इस दुनिया से चल बसा। इसके बाद तो गीता लगभग टूट-सी गईं। कई महीने बाद वह बेटे के गम से उबर पाईं। अब सवाल था कि भरण-पोषण कैसे हो? उन्हीं दिनों उन्हें पता चला कि ‘जागृति महिला स्वावलंबन केंद्र’ से कुछ रास्ता निकल सकता है। वह वहां गईं। अपनी व्यथा बताने के बाद उन्होंने कुछ करने की इच्छा व्यक्त की। इसके बाद केंद्र में उन्हें राखी बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। अब वह सालभर राखियां ही बनाती हैं। इस काम में उनके साथ ममता पुजारी, मंजुला पट्टार, गीता नंदीहल्ली भी हैं।
इस काम से हर महिला को प्रतिमाह 5,000 रु. की आमदनी हो जाती है। इनके द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 8,00,000 राखियां बनाई जा रही हैं। इन राखियों को रक्षाबंधन से पहले कुछ तय दुकानदारों को दे दिया जाता है। वे लोग इन राखियों को यह कहकर बेचते हैं कि इन्हें गरीब महिलाओं ने बनाया है। इस कारण उन राखियों की बिक्री आसानी से हो जाती है। कुछ राखियां संघ के आनुषंगिक संगठन खरीद लेते हैं। यानी राखियों को बेचने की कोई समस्या नहीं है।
अनेक महिलाएं सालभर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गणवेश बनाती हैं। ये गणवेश पूरे कर्नाटक के संघ कार्यालयों में जाते हैं। इस काम में सेवा भारती क कार्यकर्ता उनकी मदद करते हैं। कह सकते हैं कि ‘जागृति महिला स्वावलंबन केंद्र’ ने न केवल महिलाओं को प्रशिक्षित किया, बल्कि उनके लिए काम की भी व्यवस्था की है।
गीता, ममता, मंजुला जैसी सैकड़ों महिलाओं को गढ़ने वाले ‘जागृति महिला स्वावलंबन केंद्र’ की स्थापना सेवा भारती के कार्यकर्ताओं ने 2010 में यानी आज से 13 वर्ष पूर्व की थी। इस केंद्र में गरीब और असहाय महिलाओं को हुनरमंद बनाया जा रहा है, ताकि वे स्वावलंबी बन सकें। केंद्र में सिलाई-कढ़ाई, फैशन डिजाइनिंग, कंप्यूटर, योग आदि का भी प्रशिक्षण दिया जाता है।
कर्नाटक उत्तर प्रांत, सेवा भारती की महिला प्रमुख शिल्पा वरनेकर ने बताया, ‘‘अब तक केंद्र से 1,272 महिलाओं ने अलग-अलग विधाओं का प्रशिक्षण लिया है। इनमें से 70 प्रतिशत महिलाएं अपना काम करती हैं। बाकी 30 प्रतिशत महिलाएं कहीं नौकरी करती हैं।’’ उन्होंने यह भी बताया कि अनेक महिलाएं सालभर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गणवेश बनाती हैं।
ये गणवेश पूरे कर्नाटक के संघ कार्यालयों में जाते हैं। इस काम में सेवा भारती क कार्यकर्ता उनकी मदद करते हैं। कह सकते हैं कि ‘जागृति महिला स्वावलंबन केंद्र’ ने न केवल महिलाओं को प्रशिक्षित किया, बल्कि उनके लिए काम की भी व्यवस्था की है।
अब ये महिलाएं कुछ कमाने लगी हैं, इसलिए अपने बच्चों को पढ़ने भी भेज रही हैं। इनमें यह भी विश्वास जगा है कि समाज उनके साथ है। यही विश्वास उनके जीवन की राह को और आसान बना रहा है।
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