हमारे समाज में एक वर्ग है जो वंचित, दुर्बल है। उन्हें हम अपने पास लाएं। उनके अंदर के भेदभाव की भावना को समाप्त करें। जब सारे लोग एक साथ होंगे तो ऐसी देश-विरोधी शक्तियों से हम लड़ पाएंगे।
भारतवर्ष पर सदैव से घुसपैठियों की नजर रही है। देश को किसी न किसी तरीके से तोड़ने के लिए बाहरी शक्तियां सदैव तैयार रही हैं। लेकिन हमारे ऋषि मुनियों के त्याग, तपस्या, भजन, पूजन, प्रार्थना ने समाज को ऐसी शक्ति दी, जिससे इन घुसपैठियों को परास्त करने में मदद मिली। लेकिन बीच के कालखंड में भीतर से ही भारत को तोड़ने का काम किया गया।
जब ऐसे तत्वों ने हमारे परिवार को तोड़ने का प्रयास किया तो समरसता का एक बहुत बड़ा आंदोलन चालू हुआ और चीजों में सुधार हुआ। लेकिन फिर से आज यह समस्या दिखाई पड़ती है। इसलिए हमें फिर से इस पर रोक लगानी ही होगी। और यह तभी होगा जब समरस समाज होगा। हमारे समाज में एक वर्ग है जो वंचित, दुर्बल है। उन्हें हम अपने पास लाएं। उनके अंदर के भेदभाव की भावना को समाप्त करें। जब सारे लोग एक साथ होंगे तो ऐसी देश-विरोधी शक्तियों से हम लड़ पाएंगे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समरसता के काम में लगा हुआ है। सामाजिक समरसता के क्षेत्र में संघ की वही सोच है जो हम सब की है। कोई ऊंचा नहीं, कोई बड़ा नहीं, सारे लोग समान हैं, सभी एक ईश्वर की ही संतान हैं। इसलिए सब भाइयों को साथ लाना है। यही हमारा ध्येय होना चाहिए।
दुर्भाग्य हमारा यह रहा कि इस देश में शंख, घंटे-घड़ियाल और नगाड़ों की आवाज सुनाई देना बंद हो गई। और सुनाई क्या देता है सुबह से लेकर शाम तक पांच समय की नमाज। इसकी ध्वनि हमारे काम में बाधक बनी हुई है। यह सब कैसे हुआ? हमारी दादी-नानी कहा करती थीं कि ‘उठो, पांच बज गए हैं। अजान हो गयी है।’ हमें दुख होता है यह सुनकर। हमारी नानी-दादी ये कहें कि ‘उठ जाओ, शंख बज गया है’। और जब शंख बजता है तो इस देश की समस्त गंदगी दूर हो जाती है। वातावरण प्रदूषण मुक्त हो जाता है।
जब ऐसे तत्वों ने हमारे परिवार को तोड़ने का प्रयास किया तो समरसता का एक बहुत बड़ा आंदोलन चालू हुआ और चीजों में सुधार हुआ। लेकिन फिर से आज यह समस्या दिखाई पड़ती है। इसलिए हमें फिर से इस पर रोक लगानी ही होगी। और यह तभी होगा जब समरस समाज होगा। हमारे समाज में एक वर्ग है जो वंचित, दुर्बल है। उन्हें हम अपने पास लाएं। उनके अंदर के भेदभाव की भावना को समाप्त करें। जब सारे लोग एक साथ होंगे तो ऐसी देश-विरोधी शक्तियों से हम लड़ पाएंगे।
सवाल है कि शंख बजना क्यों बंद हुआ? तो इसका उत्तर है कि हमारे बीच में कुछ ऐसे घुसपैठिए आए जो हमारे ही देश के लोग रहे। उन लोगों ने यहां पर एक ऐसा माहौल खड़ा किया, जिससे हमें ही कष्ट होने लगा। हम अपने संस्कार भूलते चले गए। अपने मठ मंदिर को भूल गए। अपनी पूजा-पद्धति, धार्मिक कार्यविधि से दूर हुए। इसका लाभ घुसपैठियों ने उठाया और हमें आपस में ही बांट दिया।
इस देश में जब भक्ति का लोप हो रहा था या यूं कहें कि भक्ति संकट में थी, तब बहुत बड़ा भक्ति आंदोलन हुआ। दक्षिण से शुरू हुए इस भक्ति आंदोलन में कबीर दास जी, रैदास जी, विट्ठल जी, एकनाथ जी सहित अनेक संतों ने अपनी त्याग-तपस्या और भक्ति को साथ लेकर अपना मठ-मंदिर छोड़कर इस देश में भक्ति आंदोलन को चलाया। हम सभी को जानना चाहिए कि हमारे प्रत्येक वर्ग में किसी ना किसी संत का जन्म हुआ। और ये सारे संत समाज को जोड़ने के लिए सदैव तैयार दिखे। लेकिन अब इस देश को किसकी नजर लग गयी! आपस में ही हम लड़ते दिखाई देते हैं। यह मंथन-चिंतन का विषय है।
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