साधना-समर्पण की सरिता

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अरुण कुमार सिंह and अश्वनी मिश्र

राष्ट्रीय सेवा संगम में देशभर में कार्यकर्ताओं द्वारा किए जा रहे सेवा कार्यों के अलावा पर्यावरण रक्षा, पंचगव्य से बनने वाली वस्तुओं आदि को भी प्रदर्शित किया गया। इसमें 50 से अधिक जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों और वीरों के शानदार चित्रों को भी शामिल किया गया 

जयपुर में जामडोली स्थित केशव विद्यापीठ में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेवा संगम का समापन ‘आत्मनिर्भर समाज और आत्मनिर्भर भारत’ के संकल्प के साथ 9 अप्रैल को हुआ। राष्ट्रीय सेवा भारती द्वारा आयोजित इस संगम में कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से लेकर कछार तक के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इनमें अधिकतर वे लोग थे, जो दिन-रात नि:स्वार्थ भाव से सेवा कार्य में लगे हैं।
संगम का उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने 7 अप्रैल को किया। (देखें, सरसंघचालक जी का उद्बोधन, पेज 16 पर) वाल्मीकि धाम, उज्जैन के पूज्य पीठाधीश्वर बालयोगी उमेशनाथ जी महाराज की अध्यक्षता में आयोजित उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि थे प्रसिद्ध उद्योगपति और पीरामल समूह के अध्यक्ष श्री अजय पीरामल।

इससे पूर्व 6 अप्रैल को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री प्रेमचंद गोयल ने सेवा संगम परिसर में लगी प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। प्रदर्शनी में देशभर में कार्यकर्ताओं द्वारा किए जा रहे सेवा कार्यों के अलावा पर्यावरण रक्षा, पंचगव्य से बनने वाली वस्तुओं आदि को भी प्रदर्शित किया गया। इसमें 50 से अधिक जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों और वीरों के शानदार चित्रों को भी शामिल किया गया था। 8 अप्रैल को सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत प्रतिनिधियों से मिले। उन्होंने उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों आदि के बारे में जानकारी ली।

उद्घाटन सत्र में उपस्थित (बाएं से) श्री भैयाजी जोशी, श्री दत्तात्रेय होसबाले और संघ के अन्य वरिष्ठ अधिकारी

सेवा संगम में गोमय के विभिन्न उत्पादों की प्रदर्शनी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी। लोग वहां गोबर से बनी वस्तुएं देखकर चकित रह गए। गोबर से बने घर, छोटी से लेकर बड़े आकार के फोटो फ्रेम, दीवार घड़ियां, मैगजीन होल्डर व अन्य छोटी-छोटी उपहारनुमा वस्तुएं लोगों का ध्यान खींचने में सफल रहीं। जयपुर के छात्र सोहम कहते हैं कि यदि प्लास्टिक का उपयोग कम होता है तो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में यह बहुत अच्छी पहल मानी जाएगी।

इस संगम की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि इसमें सफलता की 100 से अधिक कहानियों से लोग परिचित हुए। ‘नर सेवा, नारायण सेवा’ के ध्येय वाक्य पर हुए इस सेवा संगम में उन लोगों को एक नया मंच मिला, जो सामंजस्यपूर्ण और सक्षम भारत बनाने का सपना पाले हैं। सभी ने समृद्ध भारत के निर्माण के लिए आत्मनिर्भर समाज बनाने का संकल्प लिया।

संगम के समापन पर प्रतिनिधियों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।
संगम में महामंडलेश्वर परमहंस स्वामी महेश्वरानन्द, विश्व जागृति मिशन के संस्थापक आचार्य सुधांशु जी महाराज, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य श्री भैयाजी जोशी, सह सरकार्यवाह श्री मुकुंद, राजसमंद की सांसद दीया कुमारी, जी न्यूज के स्वामी डॉ. सुभाषचंद्रा, उद्योगपति नरसीराम कुलरिया, उद्योगपति अशोक बागला आदि ने अपनी उपस्थिति से कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया।

सेवा संगम में स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों ने शिक्षा, स्वास्थ्य, आत्मनिर्भरता और सामाजिक कार्यों पर अपने विचारों का आदान-प्रदान किया और सफलता की कहानियों से सबको प्रेरित किया। इससे परस्पर सहयोग की भावना प्रबल हुई। प्रतिनिधियों ने संकल्प लिया कि वे समाज उत्थान के कार्यों में एक-दूसरे का संबल बनेंगे, ताकि पूरे भारत के जनमानस को सामंजस्य और सफलता का बड़ा संदेश दिया जा सके।

तीन दिन तक चले इस सेवा संगम को सफल बनाने के लिए जो कार्यकर्ता लगे थे, उनमें भी सेवा और समर्पण का अद्भुत भाव दिखा। बहुत सारे ऐसे कार्यकर्ता थे, जो व्यक्तिगत जीवन में एक ऊंचाई हासिल कर चुके हैं। इसके बावजूद उन्होंने संगम में आए प्रतिनिधियों के लिए हर तरह के कार्य किए। साफ-सफाई से लेकर वाहन तक चलाया, ताकि किसी भी प्रतिनिधि को कोई असुविधा न हो। कार्यकर्ताओं के इस भाव से प्रतिनिधि भी गद्गद् दिखे। इसी सुखद अनुभव के साथ सभी प्रतिनिधि अपने-अपने कर्मक्षेत्र की ओर लौट गए।

झलकियां

संगम में गणगौर उत्सव मनाती महिलाएं
  • सेवा संगम में देश के 45 प्रांत और 11 क्षेत्र के 800 से अधिक स्वैच्छिक सेवा संगठनों के 2,756 प्रतिनिधियों ने सहभागिता की। इनमें 515 महिलाएं शामिल थीं।
  • संगम से छोटे शहरों में भी नवाचार और रोजगार को प्रोत्साहित करने और हर क्षेत्र में ‘स्टार्टअप’ को प्रोत्साहित करने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ।
  • संगम को सुचारु रूप से संपन्न कराया 820 कार्यकर्ताओं ने, जिनमें 95 महिलाएं थीं।
    सेवा संगम स्थल पर छह नगर बसाए गए थे। प्रतिनिधियों के ठहरने के लिए 19 भवनों की व्यवस्था की गई थी।

सेवा संगम का सफर
राष्ट्रीय सेवा भारती प्रत्येक पांच वर्ष में ऐसे सेवा संगम आयोजित करती है। पहला सेवा संगम 2010 में बेंगलूरु में आयोजित हुआ था। इसका ध्येय वाक्य था ‘परिवर्तन’। इसमें 980 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। दूसरा सेवा संगम 2015 में नई दिल्ली में हुआ। इसका ध्येय वाक्य था ‘समरस भारत, समर्थ भारत’। इसमें 3,500 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। 2020 में जयुपर में तीसरे सेवा संगम की पूरी तैयारी हो चुकी थी, लेकिन कोरोना महामारी के कारण वह नहीं हो पाया और अब 2023 में आयोजित हुआ। इसमें 2,756 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसका ध्येय वाक्य रहा-‘स्वावलंबी भारत, समृद्ध भारत।’

सशक्त और समरस बनता समाज
राष्ट्रीय सेवा भारती 43,045 सेवा परियोजनाओं द्वारा समाज को सशक्त और समरस बनाकर एकता के सूत्र में बांधने के लिए प्रयासरत है। देश के 117 जिलों में 12,187 स्वयं सहायता समूह संचालित किए जा रहे हैं, जिनमें 1,20,000 से अधिक सदस्य हैं। इन समूहों में 2,451 समूह स्वावलंबन के कार्यों में सक्रिय हैं। देश के 55 जिलों में स्वयं सहायता समूह संचालित हो रहे हैं। इनमें 27,494 सदस्य हैं। दो वर्ष में स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से 25,000 से अधिक लोगों को आत्मनिर्भर बनाया गया है।

राजस्थानी संस्कृति के रंग
सेवा संगम में आईं महिला कार्यकर्ताओं को जहां ठहराया गया, उसका नाम था- भगिनी निवेदिता नगर। प्रतिभागियों को यहां राजस्थानी संस्कृति की अनुभूति हुई। 6 अप्रैल को जब महिला कार्यकर्ता यहां पहुंचीं तो उनके हाथों में मेहंदी रचाई गई। यह कार्य सेवा बस्ती की प्रशिक्षित किशोरियों ने किया। परिसर की व्यवस्था को 60 महिला कार्यकर्ताओं ने संभाला। व्यवस्थाओं में पेयजल, स्वच्छता, भोजन वितरण, कार्यालय, पार्किंग, पूछताछ, पंजीकरण, खोया-पाया, कक्ष आवंटन आदि शामिल रहीं। सुरक्षा व्यवस्था भी मातृशक्ति के जिम्मे रही। व्यवस्था में लगीं महिला कार्यकर्ताओं ने राजस्थानी संस्कृति को परिलक्षित करने वाला हर दिन का परिधान तय किया था। 7 अप्रैल को प्रात: गणगौर का प्रतीकात्मक उत्सव भी हुआ। ढोल के साथ गणगौर माता की सवारी निकाली गई, देशभर से आर्इं महिला प्रतिभागियों ने भी श्रद्धा और उत्साह के साथ इसमें भाग लिया।

जगी जीवन की आस
सेवा संगम में आए कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने अनुभव को साझा किया। असम से आए आदेश और खिरोद गोगोई अपनी आपबीती सुनाते-सुनाते भावुक हो गए। उन दोनों ने बताया कि 2008 में दंगाइयों ने उनके घर जला दिए थे। न खाने को भोजन था, न रहने को आश्रय। चारों ओर भय और डर का वातावरण था, पग-पग पर जीवन को संकट था। ऐसे में सेवा भारती के कार्यकर्ता देवदूत बने। सेवा भारती द्वारा लगाए गए शिविर में उन्हें शरण मिली। मन में जब सुरक्षित होने का विश्वास हुआ, तो जीवन की आशा भी जगी। इसी शिविर में संगठन के सेवाभाव से प्रभावित होकर सेवा भारती से जुड़ाव बढ़ गया। इसके बाद सेवा भारती, पूर्वांचल ने उनके लिए रोजगार की व्यवस्था की। आज लगभग 3,000 लोग सेवा भारती, पूर्वांचल की ओर से संचालित संस्थानों में रोजगार एवं आश्रय पा रहे हैं। यहां के हस्तनिर्मित उत्पादों की मांग विश्व भर में है। लोग तरह-तरह के उत्पाद बनाकर रोजी-रोटी कमा रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि असम के जोरहाट, मालीगांव, बोंगाईगांव, गुवाहाटी और कोकराझार जिलों में स्थानीय संस्कृति एवं कला को बढ़ावा देने के लिए सेवा भारती के प्रयास अनुकरणीय हैं। स्थानीय लोगों की ओर से बनाए गए अचार, वस्त्रों पर कढ़ाई का काम, बांस के पैन स्टैंड, गमछों इत्यादि को काफी पसंद किया जाने लगा है।

पीड़ा हरते स्वयंसेवक

सेवा संगम में राष्ट्रीय सेवा भारती के अध्यक्ष पन्नालाल भंसाली के वक्तव्य के संपादित अंश

सेवा क्षेत्र में कार्य करने वाले कार्यकर्ता दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र से लेकर वनांचल तथा समुद्री क्षेत्रों में विषम से विषम परिस्थिति में कार्य करते हुए अपने भाई-बंधुओं का दुख हर रहे हैं। यह सभी कार्यकर्ता मत-पंथ, जात-पांत को दूर रखकर सकल समाज के उत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं। इन कार्यकर्ताओं ने विभिन्न क्षेत्रों में बहुत से लोगों को हुनरमंद बनाया है। प्रत्येक प्राणी में हुनर छिपा हुआ है। आवश्यकता है उस हुनर को पहचान कर उसे तराशने की। उसे रोजगार देकर उसके उत्पाद बिक्री की व्यवस्था की। जिस प्रकार रामसेतु के निर्माण में गिलहरी का योगदान रहा, उसी प्रकार पुनीत कार्य में मैं कुछ दे पाऊं, इसे ध्यान रखना है।

बेहतर विकल्प बन रहे गोमय उत्पाद
सेवा संगम में गोमय के विभिन्न उत्पादों की प्रदर्शनी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी। लोग वहां गोबर से बनी वस्तुएं देखकर चकित रह गए। गोबर से बने घर, छोटी से लेकर बड़े आकार के फोटो फ्रेम, दीवार घड़ियां, मैगजीन होल्डर व अन्य छोटी-छोटी उपहारनुमा वस्तुएं लोगों का ध्यान खींचने में सफल रहीं। जयपुर के छात्र सोहम कहते हैं कि यदि प्लास्टिक का उपयोग कम होता है तो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में यह बहुत अच्छी पहल मानी जाएगी।

गोसेवा प्रकल्प से जुड़े चित्तौड़ प्रांत के राजेन्द्र पामेचा और नीरज का कहना था कि गोमय उत्पाद सिर्फ प्लास्टिक का ही विकल्प नहीं बन रहे, अपितु यूरिया एवं अन्य हानिकारक पदार्थों का भी विकल्प बन रहे हैं। गोमय से दानेदार खाद भी बनाई जा रही है, जिसका उपयोग कृषक कर रहे हैं और उन्हें अच्छे परिणाम भी मिल रहे हैं। भूमि की उर्वरता में भी वृद्धि हो रही है।

 

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