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सनातन : एकात्म भी, सर्वांगीण भी

भारत का विशिष्ट चिंतन सनातन है। भारत के सनातन रहने के लिए इस सनातन अध्यात्म आधारित हिंदू जीवनदृष्टि का विद्यमान रहना आवश्यक है और इस जीवन दृष्टि को अपने जीवन में आचरित करने वाले समाज का संगठित, शक्तिसंपन्न विजिगीषु और सक्रिय रहना भी उतना ही आवश्यक है

by डॉ. मनमोहन वैद्य, सहसरकार्यवाह, रा.स्व.संघ
Apr 10, 2023, 03:48 pm IST
in भारत, विश्लेषण, संस्कृति
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सनातन चिंतन के आधार पर जीवन जी कर एक दीर्घ परम्परा यहां के समाज ने खड़ी की है। अनेक आक्रमण, आघात सहन कर यह समाज, जिसे राष्ट्र कहा गया है, यहां लगातार जीता आ रहा है।

डॉ. मनमोहन वैद्य
(लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह हैं)

सनातन चिंतन के आधार पर जीवन जी कर एक दीर्घ परम्परा यहां के समाज ने खड़ी की है। अनेक आक्रमण, आघात सहन कर यह समाज, जिसे राष्ट्र कहा गया है, यहां लगातार जीता आ रहा है।

सनातन भारत का विशेषण है क्योंकि वह अनादि है और अनंत भी। इसके दो कारण हैं। एक, इस भारत का चिंतन सनातन है और इस चिंतन को जीने वाला, इसे अपने आचरण से प्रतिष्ठित करने वाला, यह भारत का समाज भी सनातन है।

भारत का यह विशिष्ट चिंतन सनातन है क्योंकि इसका आधार आध्यात्मिक है, इसीलिए यह एकात्म है और सर्वांगीण भी। इसीलिए भारत सारी सृष्टि को परस्पर जुड़ा हुआ मानता है। एक ही चैतन्य विविध रूपों में अभिव्यक्त हुआ है। इसलिए सृष्टि में संघर्ष नहीं, अपितु समन्वय है और यह परस्पर विरोधी नहीं, अपितु परस्पर पूरक है, ऐसा मानना है। इस कारण भारत का, माने भारत के समाज का एक व्यक्तित्व उभरा है। इस व्यक्तित्व के चार पहलू हैं।

पहला कि सत्य या ईश्वर एक है, उसे अनेक नामों से और विविध मार्गों से जाना जा सकता है। दूसरा पहलू है यह एक के ही विविध रूप होने के कारण विविध रूपों के भीतर रही एकता को देखने की, पहचानने की, उस विविधता का उत्सव मनाने की दृष्टि भारत की रही है।

तीसरा पहलू है की प्रत्येक व्यक्ति (स्त्री और पुरुष भी) में ईश्वर का अंश है और उसे प्रकट करते हुए मोक्ष पाना, यही मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य है। इस दिव्यत्व को प्रकट करने का प्रत्येक का मार्ग (जिसे उपासना या religion कह सकते हैं) उस व्यक्ति की रुचि-प्रकृति के अनुसार विभिन्न, व्यक्तिगत हो सकता है, सभी समान हैं। इन मार्गों के अनेक नाम होंगे और नए-नए नामों के मार्ग समय के साथ आते रहेंगे। सभी का स्वीकार है, यह भारत की विशेषता है। इसीलिए स्वामी विवेकानंद ने अपने शिकागो व्याख्यान में भारत का वर्णन mother of all religions के रूप में किया था। इस चिंतन का आधार आध्यात्मिक है, अत: यह चिंतन सनातन है।

भारत की परम्परा नहीं है। न्याय, सुरक्षा और विदेश संबंध, केवल ये विषय राजा के अधीन होते थे, बाकी सभी शिक्षा, आरोग्य, व्यापार, उद्योग, मंदिर, मेला, कला, संगीत, नाट्य, यात्रा आदि विषयों के लिए समाज की अपनी स्वतंत्र व्यवस्था होती थी। इसके लिए राजकीय कोष से धन नहीं आता था। समाज की अपनी व्यवस्था होती थी, जिसका आधार धर्म था। यह धर्म माने उपासना (religion) नहीं है। समाज को अपना मान कर देना, वापस लौटाना ही धर्म कहा गया है।

-गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर

समाज का सातत्य
अब यह केवल चिंतन के स्तर पर रहने से भी नहीं चलेगा। इसके आधार पर जीवन जी कर एक दीर्घ परम्परा यहां के समाज ने खड़ी की है। अनेक आक्रमण, आघात सहन कर यह समाज, जिसे राष्ट्र कहा गया है, यहां लगातार जीता आ रहा है। इस राष्ट्र का, समाज का सातत्य भी भारत को सनातनत्व देता है। इस राष्ट्र के सनातन रहने के दो मुख्य कारण हैं। एक कि इसकी जीवनदृष्टि का आधार आध्यात्मिक होना और दूसरा इस राष्ट्र का राज्य पर आधारित नहीं होना।

अपने – स्वदेशी समाज – निबंध में गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर कहते हैं कि कल्याणकारी राज्य भारत की परम्परा नहीं है। न्याय, सुरक्षा और विदेश संबंध, केवल ये विषय राजा के अधीन होते थे, बाकी सभी शिक्षा, आरोग्य, व्यापार, उद्योग, मंदिर, मेला, कला, संगीत, नाट्य, यात्रा आदि विषयों के लिए समाज की अपनी स्वतंत्र व्यवस्था होती थी। इसके लिए राजकीय कोष से धन नहीं आता था। समाज की अपनी व्यवस्था होती थी, जिसका आधार धर्म था। यह धर्म माने उपासना (religion) नहीं है। समाज को अपना मान कर देना, वापस लौटाना ही धर्म कहा गया है।

स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता ने कहा है कि, जिस समाज में लोग अपने परिश्रम का पारिश्रमिक अपने ही पास न रखकर समाज को देते हैं, वह समाज, ऐसे समाज के पास एकत्र पारिश्रमिक की पूंजी पर, सम्पन्न और समृद्ध बनता है और समाज का हर व्यक्ति सम्पन्न और समृद्ध बनता है। यह धर्म है जो भेदभाव नहीं करता है। आगे वे कहती हैं कि जिस समाज में लोग अपने परिश्रम का पारिश्रमिक समाज को न देकर अपने ही पास रखते हैं, उस समाज में कुछ लोग तो सम्पन्न और समृद्ध होते हैं पर समाज दरिद्र ही रहता है।

एक खम्भे पर खड़ा एक तम्बू है और उसका खम्भा यदि टूटता है तो पूरा तम्बू जमीन पर आ जाता है। पर यदि 3-4 खम्भों पर खड़ा कोई तम्बू है और उसमें से एक खम्भा टूट जाए तो तम्बू जमीन पर नहीं आएगा और उस खम्भे को अंदर से फिर से खड़ा करने की सम्भावना रहेगी। भारत की रचना परम्परा से ऐसी ही थी। इसलिए परकीय आक्रमण आने पर कभी यदि राजा पराजित हो जाए और परकीय शासन आए, फिर भी राष्ट्र माने समाज हमेशा अपराजित रहा है और समाज में योग्य जागरण कर फिर से स्वराज्य की स्थापना होती रही है। यह रचना भी भारत के, माने इस राष्ट्र के सनातन होने का रहस्य है।

भारत के सनातन रहने के लिए इस सनातन अध्यात्म आधारित हिंदू जीवनदृष्टि का विद्यमान रहना आवश्यक है और इस जीवन दृष्टि को अपने जीवन में आचरित करने वाला एक संगठित, शक्तिसंपन्न, विजिगीषु, सक्रिय समाज का रहना भी उतना ही आवश्यक है। हिंदू शब्द का गौरवपूर्ण आग्रह रखते हुए इस हिंदू समाज का संगठन कर दोषमुक्त, राष्ट्रीय गुणसम्पन्न समाज का निर्माण करने से ही यह सनातन भारत बनेगा और भारत का सनातनत्व बना रहेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसी कार्य में पूर्ण शक्ति के साथ लगा हुआ है। कारण यही उसका जीवन उद्देश्य है, अवतार कार्य है। 

राष्ट्र हिंदू, सनातन विशेषण
इस राष्ट्र की विशिष्ट अध्यात्म आधारित जीवन दृष्टि को दुनिया में ‘हिंदू’ नाम से जाना जाता रहा है, इसलिए इस राष्ट्र का नाम हिंदू रहा है और सनातन इसका विशेषण। यह नाम हमने नहीं दिया क्योंकि हम अपने आप को अन्य मानव समूह से अलग मानते ही नहीं थे। वसुधैव कुटुम्ब – यही हमारी धारणा रही है। परंतु बाहर के लोगों ने हमारी विशिष्टता के कारण हमारी एक पहचान बना कर इसका हिंदू (सिंधु नदी के उस पर से आने वाले) यह नाम रखा। जैसे 1935-1940 के आसपास नागपुर में घी की दुकानों पर आसपास के गांव जैसे कि बोरगांव, दहेगांव या आमगांव के घी की दुकान – ऐसे बोर्ड लगे दिखते थे।

द्वितीय महायुद्ध के समय डालडा नाम की एक चीज बाजार में आयी, जो घी के समान दिखती जरूर थी, पर घी नहीं थी। तब इन सभी दुकानों के बोर्ड पर अपने गांव के नाम के साथ शुद्ध घी की दुकान – लिखा दिखने लगा। अब शुद्ध शब्द बाद में लिखा गया, इसका मतलब यह नहीं कि पहले का घी अशुद्ध था। पहले एक ही घी था। अब घी के समान दिखने वाली, पर घी नहीं, ऐसी चीज से भिन्नता दिखाने के लिए शुद्ध शब्द बाद में जोड़ना पड़ा। यही बात हिंदू के लिए भी लागू होती है। पहले से सभी को ‘आत्मवत सर्वभूतेषु’ मानने के कारण हमने अपने-आप को अलग नाम नहीं दिया था। उसकी आवश्यकता ही नहीं महसूस हुई।

इसलिए भारत के सनातन रहने के लिए इस सनातन अध्यात्म आधारित हिंदू जीवनदृष्टि का विद्यमान रहना आवश्यक है और इस जीवन दृष्टि को अपने जीवन में आचरित करने वाला एक संगठित, शक्तिसंपन्न, विजिगीषु, सक्रिय समाज का रहना भी उतना ही आवश्यक है। हिंदू शब्द का गौरवपूर्ण आग्रह रखते हुए इस हिंदू समाज का संगठन कर दोषमुक्त, राष्ट्रीय गुणसम्पन्न समाज का निर्माण करने से ही यह सनातन भारत बनेगा और भारत का सनातनत्व बना रहेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसी कार्य में पूर्ण शक्ति के साथ लगा हुआ है। कारण यही उसका जीवन उद्देश्य है, अवतार कार्य है।

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