जम्मू-कश्मीर शेष देश से अनुच्छेद 370 के कारण अलग-थलग पड़ा था। दिलों में दूरियां तो थी हीं, आतंक भी चरम पर था। विकास की धारा रुकी हुई थी। लेकिन 370 हटते ही जहां एक ओर आतंक पर करारा प्रहार शुरू हुआ वहीं राज्य विकास के नए कीर्तिमान गढ़ने लगा है।
साल 2019 के पहले तक जम्मू-कश्मीर शेष देश से अनुच्छेद 370 के कारण अलग-थलग पड़ा था। दिलों में दूरियां तो थी हीं, आतंक भी चरम पर था। विकास की धारा रुकी हुई थी। लेकिन 370 हटते ही जहां एक ओर आतंक पर करारा प्रहार शुरू हुआ वहीं राज्य विकास के नए कीर्तिमान गढ़ने लगा है। अब दूरियों को पाटा जा रहा है। चिनाब नदी पर बना रेलवे का पुल इसी का उत्कृष्ट उदाहरण है। अब वह दिन दूर नहीं जब कश्मीर शेष भारत के रेलवे ताने-बाने से जुड़ जाएगा। केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक सबसे ऊंचे रेल पुल की तस्वीरें ट्वीटर पर साझा करते हुए रेल मंत्रालय ने लिखा- ‘यह ब्रिज भारतीय इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट उदाहरण है।’
वास्तविक तौर पर देखें तो यह इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना ही है।
इसी कड़ी में बीते 26 मार्च को जम्मू-कश्मीर दौरे पर गए रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने रियासी के वक्कल से डुगा तक दस किलोमीटर ट्राली पर सवारी करके ट्रैक का निरीक्षण भी किया। इस मौके पर उन्होंने कहा,‘‘ऊधमपुर-श्रीनगर-बारामूला नई लाइन परियोजना को पूरा करना इंजीनियरों के लिए बड़ी चुनौती थी। लेकिन रेलवे के इंजीनियरों ने इस नई रेल लाइन परियोजना की सबसे बड़ी चुनौती चिनाब नदी पर विश्व के सबसे ऊंचे रेल पुल का निर्माण कार्य पूरा किया है। ये दुनिया की बहुत बड़ी अभियांत्रिकी चुनौतियों में से एक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के विकास का जो संकल्प लिया है उसमें नित नए अध्याय लिखे जा रहे हैं और ये चिनाब नदी पर बना रेल पुल एक नयी मिसाल है।’’ उन्होंने कहा कि ऊधमपुर-श्रीनगर-बारामूला परियोजना अगले वर्ष जनवरी तक पूर्ण हो जाएगी और कश्मीर घाटी देश के मुख्य रेल संजाल से जुड़ जाएगी। इसके शुरू होते ही जम्मू से श्रीनगर की यात्रा मात्र 3 घंटा 30 मिनट में पूरी होगी।
विशेष तकनीक का लिया सहारा
चिनाब नदी पर रेलवे पुल बनाना कोई आसान काम नहीं था। पहाड़, पानी, माहौल से जुड़ी कई चुनौतियां रेलवे के कर्मचारी और इंजीनियरों सामने थीं। जहां निर्माण किया जाना था, वहां पहुंचने के लिए पहले कोई साधन नहीं था। लिहाजा हेलीकॉप्टर के सहारे ही पहुंचा जा सकता था। ऐसे में 111 किमी की नई रेलवे लाइन बिछाने के लिए पहले रेलवे ने 205 किलोमीटर की एक सड़क तैयार की। रास्ते में कई पुल और सुरंगें बनानी पड़ीं। तब जाकर चिनाब ब्रिज का काम शुरू हो सका। इसके अलावा एक चुनौती थी, यहां के भुरभुरे पहाड़। ऐसे में पुल बनाने में विशेष तकनीकी का सहारा लिया गया।
पुल की लम्बाई 1315 मीटर तथा नदी तल से पटरी की सतह तक की ऊंचाई 359 मीटर है। पुल के निर्माण में 28,660 मीट्रिक टन स्टील का उपयोग किया गया है। वर्तमान में ट्रैक का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है। चूंकि यह भूकंप प्रवण क्षेत्र है, इसलिए इसकी नींव का स्वरूप कुछ इस तरह का है कि भूकम्प का असर इस पर नहीं पड़ेगा। भूकंप से बचाने के लिए इसमें बीयरिंग का इस्तेमाल किया गया है। रेल मंत्रालय का दावा है कि ये दुनिया का सबसे ऊंचा पुल है और अगले 120 साल तक सुरक्षित रहेगा। सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही इस पटरी पर वंदे भारत ट्रेन चलाई जाएगी।
चिनाब रेल पुल की विशेषताएं
- कटरा और बनिहाल को जोड़ेगा चिनाब रेल ब्रिज
- पुल की ऊंचाई 359 मीटर है जो पेरिस के एफिल टॉवर से 35 मीटर अधिक है। इसके अलावा चीन का गुइज्यू स्थित नाजीहे रेल 310 मीटर और बिपेन्जियांग पुल 295 मीटर ही ऊंचा है।
- उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेलवे खंड का है यह हिस्सा
- चिनाब रेल आॅर्क ब्रिज रियासी के बक्कल और कौड़ी प्रखंड में है।
- पुल को बनाने में लगभग 1500 करोड़ की लागत का अनुमान
- परियोजना को 2003 में हरी झंडी मिली, साल 2004 में काम शुरू हुआ।
- साल 2009 में काम को तेज हवाओं की वजह से कुछ समय के लिए रोकना पड़ा।
- 2017 में इसका आधार का हिस्सा बनकर तैयार हुआ।
- अप्रैल, 2021 अप्रैल में प्रमुख आर्क (अर्द्ध वृत्ताकार) पर काम शुरू हुआ।
- अगस्त, 2022 में स्टील और कंक्रीट से बने प्रमुख ‘आॅर्क’ के काम को पूरा किया गया।
- बादलों के ऊपर और ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के बीच शान से खड़ा यह पुल 260 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से बहने वाली हवा का भी कर सकता है मुकाबला।
- पुल को इस तरह बनाया गया कि अगर रिक्टर स्केल पर 8 की तीव्रता से भी भूकंप आए तो भी इसको नुकसान ना हो।
- कंक्रीट और स्टील से बने इस पुल को धमाके से रक्षित बनाने में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन से भी परामर्श लिया गया।
ल्ल चिनाब रेलवे पुल में कुल 17 पिलर हैं। इसमें 28,660 मिट्रिक टन स्टील का इस्तेमाल किया गया है।
100 किमी रफ्तार से दौड़ेगी रेल
कश्मीर को देश से जोड़ने वाला यह पुल कई मायनों में विशेष है। इस रेलवे पुल पर 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से रेल दौड़ सकेगी। साथ ही तेज रफ्तार हवाओं, तापमान आदि पहलुओं का भी निर्माण करते समय खास ध्यान रखा गया है। आसपास के पहाड़ों की बात करें तो मौसम सबसे बड़ी चुनौती रही, क्योंकि पुल के आसपास 100 से 150 किलोमीटर प्रतिघंटा तक की हवाएं चलती हैं। इसीलिए पुल को इतना मजबूत बनाया गया है कि 266 किलोमीटर प्रति घंटे तक की हवा से इसे कोई नुकसान नहीं होगा। संरचना में इस्तेमाल स्ट्रक्चरल स्टील शून्य से 10 डिग्री नीचे से लेकर 40 डिग्री नीचे तक के तापमान के लिए उपयुक्त है। खास बात यह है कि यह धमाके तक को सह सकता है। 18 साल की मेहनत के बाद यह परियोजना अंतिम चरण में है। अब तक इस पर 1500 करोड़ का खर्च हो चुका है, जबकि संपूर्ण ऊधमपुर-श्रीनगर-बारामूला परियोजना पर 34,261 करोड़ की लागत आ चुकी है।
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