पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान का एक ट्वीट वहीं नहीं, दुनियाभर में उत्सुकता का विषय बन गया है। इमरान ने पाकिस्तान के म्यांमार बन जाने या तुर्की की राह चल पड़ने का ‘खतरा’ जताते हुए लोगों से ‘पाकिस्तान को बचा लेने’ का आह्वान किया है। इमरान का यह ‘दर्द’ यूं ही नहीं छलका है। खुद को कानून के कसते शिंकजे और सियासी उठापटक के केन्द्र में देख रहे इमरान पाकिस्तान के आने वाले कल को लेकर आखिर इतने ‘आहत’ क्यों दिख रहे हैं?
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री कुर्सी से हटने के बाद से ही वहां की फौज पर नित नए आरोप उछालते आ रहे हैं। वे सत्तारूढ़ पार्टी पर भी खुद को मरवा देने के आरोप लगाते रहे हैं। इधर अदालतों ने एक के बाद एक उनके विरुद्ध मुकदमों को मंजूरी दी हुई है। कई आरोप तो ऐसे लगे हैं जिनमें गैर जमानती वारंट जारी किए गए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान का उक्त ट्वीट कल आया है। इसमें उन्होंने कहा है कि ‘आज देश एक चौराहे पर खड़ा है। इस देश के सामने अब दो ही रास्ते दिख रहे हैं—या तो यह तुर्किए के रास्ते चले या फिर एक और म्यांमार बन जाए।’
ध्यान देने वाली बात है कि म्यांमार में इन दिनों सेना की सत्ता है। वहां लोकतंत्र का गला घोंटा जा चुका है। वहां की विश्वप्रसिद्ध लोकतंत्र समर्थक नेता और लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गईं आंग सान सू ची की सरकार को सेना द्वारा 2021 में कुर्सी से बेदखल करके अपनी सरकार बना ली गई थी।
इमरान कहते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) और उसकी साथी पार्टियां फिलहाल चुनाव नहीं होने देना चाहतीं। उन्होंने कहा कि लंदन में बैठे नवाज शरीफ पाकिस्तान मुख्य न्यायाधीश सहित अन्य न्यायाधीशों और सुप्रीम कोर्ट को सार्वजनिक तौर पर धमका रहे हैं।
इस्लामी देश तुर्किए के राष्ष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन खुद को ‘इस्लामी जगत के खलीफा’ दिखाने की जुगत भिड़ाते रहे हैं। 2016 में वहां उनकी सत्ता को कुर्सी से बेदखल करने के लिए हिंसक सैन्य कार्रवाई के माध्यम से आमजन को सड़क पर उतारने की चाल कामयाब नहीं हो पाई थी। आमजन सिर्फ सत्ता में बदलाव की मांग करके सड़क से हट गए थे।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और विपक्षी दल तहरीके—इंसाफ के अध्यक्ष का यह लिखना कि ‘आज हम संवैधानिक इतिहास में ऐसे चौराहे पर खड़े हैं जहां यह तुर्किए जैसा बन सकता है या फिर एक और म्यांमार बन सकता है’, बताता है कि पाकिस्तान के सामने तुर्किए में संविधान, कानून के राज और लोकतंत्र के साथ होने की राह है, अन्यथा म्यांमार जैसे एक भ्रष्ट माफिया, जंगल के शासन और फासीवादी राज बनने का खतरा है।
इमरान का ‘दर्द’ संभवत: फौज की सत्ता की आशंका से उपजा है, क्योंकि जिन्ना द्वारा लगभग 75 साल पहले इस्लाम के नाम पर भारत को तोड़कर बनाए गए इस देश में आधे से ज्यादा वक्त तो फौजी राज ही रहा है। लोकतंत्र को वहां बार—बार सूली चढ़ाया गया है। इमरान को पिछले साल अप्रैल में उनके विरुद्ध एक अविश्वास प्रस्ताव लाकर कुर्सी से हटाया गया था, जो उनके अनुसार, फौज के इशारे पर हुआ था। तब से ही इमरान और फौजी अफसरों के बीच तलवारें खिंची हुई हैं।
इमरान कहते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) और उसकी साथी पार्टियां फिलहाल चुनाव नहीं होने देना चाहतीं। उन्होंने कहा कि लंदन में बैठे नवाज शरीफ पाकिस्तान मुख्य न्यायाधीश सहित अन्य न्यायाधीशों और सुप्रीम कोर्ट को सार्वजनिक तौर पर धमका रहे हैं।
उन्होंने कहा वर्तमान सरकार फासीवादी चालें चल रही है, लेकिन उनकी पार्टी सुप्रीम कोर्ट और संविधान के साथ खड़ी है। चुनाव से संबंधित मामले इस वक्त पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंदियाल के नेतृत्व में तीन सदस्यीय पीठ देख रही है। उधर नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन ने अपने कुछ साथी दलों के साथ संदेह व्यक्त किया है कि मुख्य न्यायाधीश बंदियाल के साथ ही कुछ और न्यायाधीश इमरान खान की पार्टी तहरीके इंसाफ के पाले में हैं।
अंदरखाने कुछ भी चल रहा हो, लेकिन सार्वजनिक तौर पर इमरान खान का ‘दर्द’ उस आशंका को और पुख्ता करता है कि पाकिस्तान में सत्ता अधिष्ठान अब गया तब गया की स्थिति में है।
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