देवभूमि उत्तराखंड में नई सरकार को एक साल पूरा हो गया है। इस अवधि में सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे, अवैध मजारें, जनसंख्या असंतुलन जैसे कई मुद्दों पर सरकार का सख्त रुख सामने आया तो तो कन्वर्जन विरोधी कानून, समान नागरिक संहिता पर सरकार की सक्रियता भी दिखी। राज्य में बुनियादी ढांचा विकास, पर्यटन विकास पर सरकार का काम दिखा। प्रस्तुत है इन मुद्दों पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ उत्तराखंड ब्यूरो चीफ दिनेश मानसेरा की विशेष वार्ता के संपादित अंश
धामी जी, उत्तराखंड में आपकी सरकार को एक साल हो गया है और इस दौरान आपने कई चुनौतियों का सामना किया है। सबसे बड़ी चुनौती किस रूप में आई?
चुनौतियां तो रोज आती हैं। मैं उन पर सोच-विचार कर निर्णय लेता हूं। सबसे बड़ी चुनौती मेरी सरकार के आगे, यहां भर्तियों में हुए भ्रष्टाचार को लेकर आई। युवाओं में गुस्सा था, लेकिन हम युवाओं को समझाने, उनमें विश्वास जगाने में कामयाब हुए। हमारी सरकार ने इस मामले में 50 से ज्यादा आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा और ऐसे ही नहीं भेजा। उनके खिलाफ विजिलेंस, एसआईटी जांच कराकर जेल भेजा। उन पर गैंगस्टर और अन्य गंभीर धाराएं लगाईं, उनकी संपत्ति को कुर्क किया, एक आरोपी के तो रिजॉर्ट को बुलडोजर से गिरवा दिया गया। अब कानून हमने ऐसा बना दिया है कि यहां के युवाओं का भविष्य सुरक्षित, संरक्षित रह सके। यदि कोई भर्तियों के पेपर लीक करेगा, पेपर की नकल कराएगा, तो वह संगीन धाराओं में जेल जाएगा और उस पर दस करोड़ रुपये तक जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान किया गया है। मैं ऐसा करने को इसलिए मजबूर हुआ क्योंकि मुझसे युवाओं का दर्द नहीं देखा गया। जब तक कानून कठोर नहीं होंगे, तब तक परीक्षा या भर्ती में पारदर्शिता नहीं आएगी।
राज्य में मजार जिहाद का षड्यंत्र सामने आया है। जंगल, सड़क किनारे, जहां देखो मजारें ही मजारें। इस पर आपकी सरकार क्या कर रही है?
हमारे सामने जब यह विषय आया, तो हमने पहले वन विभाग से सर्वे करवाया। यह बात सही निकली कि वन्य भूमि पर एक हजार से ज्यादा अवैध मजारें बना दी गई हैं। हमने वन विभाग को इन्हें तत्काल हटाने का निर्देश दिया। ये कोई पीर-बाबाओं की मजारें नहीं हैं बल्कि मजार जिहाद का हिस्सा हैं और यहां असामाजिक तत्व पनाह लेते हैं। हम यह भी जांच करा रहे हैं कि किस अधिकारी के कार्यकाल में वन भूमि में आरक्षित जंगल के अंदर जाकर ये मजारें बनीं। हैरानी की बात यह है कि जिस रिजर्व फॉरेस्ट में इनसान के जाने पर पाबंदी है, वहां मजार बन जाती है और महकमा सोया रहता है। मैंने कड़े निर्देश दिए हैं कि सरकारी जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त कराया जाए और अभी तीन चरणों में सौ से ज्यादा मजारें वन विभाग ने ध्वस्त भी कर दी हैं। शेष पर भी कार्रवाई होने जा रही है।
ऐसी ही मजारें सड़क के किनारे पीडब्ल्यूडी और राजस्व विभाग की जमीन पर कुकुरमुत्तों की तरह उग आई हैं। उन पर क्या कार्रवाई करेंगे?
हमने सर्वे करवा लिया है और निश्चित रूप से इन्हें हटाया जाएगा। हमने यह भी पता कराया है कि ज्यादातर मजारें कांग्रेस शासन काल में 2004 के आसपास बनीं और बाद में फिर जब 2012 में कांग्रेस की सरकार आई, तब भी यहां मजार जिहाद चला, जबकि सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश था कि 2004 के बाद कोई भी धार्मिक स्थल नहीं बनाया जा सकता। जो बनाएगा या किसी स्थल की मरम्मत भी करेगा, तो उसकी अनुमति डीएम से लेना आवश्यक है। और, यहां तो कोई अनुमति नहीं है। जगह सरकारी है, इस लिए सरकार इन्हें हटाएगी। ये मजार, दरगाह नहीं, बल्कि अवैध कब्जे हैं। हमने अब तक जो हटवाई हैं, उनमें कुछ भी नहीं निकला।
देखने में आया है कि देवभूमि की बेशकीमती जमीन पर, खासतौर पर उत्तर प्रदेश से लगे क्षेत्रों में बड़ी संख्या में अवैध कब्जे हुए हैं और यहां अब जनसंख्या असंतुलन की समस्या खड़ी हो गई है?
हां! हमें रिपोर्ट मिली है कि उत्तर प्रदेश से लगते जिलों के लोग वहां से यहां आकर अवैध कब्जे कर रहे हैं, यहां आकर बस गए हैं। हमने इनकी पहचान शुरू कर दी है। इस बारे में हमारी सरकार ने हर जिले में एक टास्क फोर्स बनाई है जिसमें वन, पीडब्ल्यूडी, राजस्व विभाग के अधिकारी हैं जो सरकारी जमीन पर अवैध कब्जों की पहचान कर रहे हैं। हमने देहरादून जिले में विकास नगर परगना क्षेत्र में करीब नौ किमी क्षेत्र से अवैध कब्जे हटाए हैं। हमने बुलडोजर चलवा कर अरबों रुपये की सरकारी जमीन को खाली कराया है। यह अभियान तब तक जारी रहेगा, जब तक एक-एक इंच सरकारी जमीन खाली नहीं हो जाती। उत्तराखंड देवभूमि है। इसके स्वरूप को हमारी सरकार बिगड़ने नही देगी। इसमें किसी तरह का राजनीतिक दबाव सहन नहीं किया जाए, ऐसा निर्देश मैंने सभी जिला अधिकारियों को भी दे दिया है। मैं यह बात भी साफ कर देना चाहता हूं कि उत्तराखंड देवभूमि है कोई सराय नहीं कि जो चाहे, यहां आए और आकर सरकारी जमीन पर अवैध रूप से कब्जा करके बैठ जाए। जरूरी हुआ तो हम ऐसे तत्वों को भू-माफिया की श्रेणी में रख उन पर गैंगस्टर, रासुका जैसे कड़े कानून लगाने में भी नहीं हिचकेंगे।
उत्तर प्रदेश, असम में भाजपा की सरकार खुलकर हिन्दुत्व की, राष्ट्रवाद की बात करती है। आपकी सरकार मुखर नहीं प्रतीत होती?
मेरा स्वभाव है कि मैं बोलता कम हूं पर मेरा काम बोलता है। देश में सबसे सख्त कन्वर्जन सुधार कानून सबसे पहले हम लेकर आए। हमें देवभूमि उत्तराखंड के सनातन स्वरूप की चिंता है। यहां हम मिशनरियों के मंसूबे सफल नहीं होने देंगे जो प्रलोभन देकर कन्वर्जन करा रही थीं। लव जिहाद के मामले भी सामने आए, उन्हें रोकना सरकार का दायित्व है। इसीलिए हमने पहल की और कन्वर्जन के खिलाफ सख्त कानून बनाया है। हमारे बाद हिमाचल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में ऐसा कानून बना।
चुनाव से पहले आपने समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात कही थी। यह विषय कहीं पीछे छूट गया?
पीछे बिल्कुल भी नहीं छूटा। देश में सबसे पहले उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कही थी। सत्ता में लौटते ही पहली कैबिनेट बैठक ने इसे मंजूरी दी और फिर हमने जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में समिति बना दी। समिति ने राज्य भर से लोगों के सुझाव लिए हैं। ऐसे महत्वपूर्ण सुझाव, जिनकी संख्या ढाई लाख से ज्यादा है। इस सुझावों का परीक्षण अंतिम दौर में है। मुझे विश्वास है कि मई के मध्य तक समिति अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप देगी। उत्तराखंड में आपको एक राज्य-एक कानून यानी समान नागरिक संहिता कानून देश में सबसे प्रभावी ढंग से लागू होता दिखेगा। और यह भी तय है कि उत्तराखंड के बाद अन्य राज्य भी हमारा अनुसरण करेंगे और एक देश-एक कानून की राह भी आसान होगी।
शत्रु संपत्ति को लेकर सवाल उठते रहे हैं कि यहां के स्थानीय लोगों को एक षड्यंत्र के तहत तंग किया जा रहा है?
ये विषय हमारी जानकारी में आया था कि देहरादून, हरिद्वार जिले के राजस्व के रिकार्ड सहारनपुर कमिश्नरी में पड़े हुए हैं। उत्तराखंड राज्य बने 23 साल हो गए और ये रिकार्ड वहां कैसे और क्यों हैं? जबकि इन्हें तिवारी शासन काल में ही यहां ले आना चाहिए था। मैंने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार से बात की और डीएम देहरादून को सहारनपुर भेजा और सभी राजस्व दस्तावेज, रिकार्ड मंगवा लिए गए हैं। हमारी कोशिश है कि सभी भूमि संबधी रिकॉर्ड का कंप्यूटीकरण कर दिया जाए ताकि देहरादून, हरिद्वार जिलों के लोगों को परेशानी नहीं उठानी पड़े। कुछ सरकारी-गैरसरकारी भवनों और जमीन पर शत्रु संपत्ति बता कर जो दावे किए गए हैं, उन पर भी कानूनविदों से राय ली जा रही है और हमारी सरकार ये मंसूबे सफल नहीं होने देगी कि किसी की संपत्ति पर कोई भू-माफिया अपना दावा करने लगे और उन्हें तंग करे।
हमने दस साल का विजन तैयार किया है। जैसे हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज, एक जिला एक उत्पाद, एक जिला एक नया पर्यटन स्थल, होम स्टे, सौर ऊर्जा, सेब और अन्य फल उत्पादन, मोटे अनाज के उत्पादन में वृद्धि, आर्गेनिक खेती जैसी परियोजनाओं पर माइक्रो लेवल पर काम चल रहा है। हमने वन आधारित पर्यटन को बढ़ावा दिया है, साहसिक खेलों को पर्यटन के साथ जोड़ दिया है। इससे रोजगार के अवसर पैदा हो रहे हैं।
नैनीताल, किच्छा और अन्य क्षेत्रों में भी शत्रु संपत्ति पर हजारों लोग अवैध रूप से काबिज हो गए हैं जबकि यह जमीन गृह मंत्रालय की है। इन पर क्या कार्रवाई होगी?
बिल्कुल होगी! मैंने पहले भी कहा है कि सरकारी जमीन को हम अतिक्रमण मुक्त करवाएंगे, चाहे वो केंद्र की जमीन हो या राज्य की। इस राज्य के पास वैसे भी 35 प्रतिशत ही भू-भाग है, शेष में जंगल है। हम अपनी जमीन को अवैध कब्जेदारी से मुक्त कराने के लिए वचनबद्ध हैं। नैनीताल में राजा महमूदाबाद की शत्रु संपत्ति पर जो लोग अवैध रूप से बैठे हैं, उन्हें सरकार की जमीन खाली करनी होगी।
हल्द्वानी रेलवे जमीन का मुद्दा भी तो इसी तरह का ही है जिसको लेकर इतना शोर-शराबा हुआ।
हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण का विषय अभी माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। मैं उस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। न्यायालय जैसा आदेश करेगा, हमारी सरकार उसका पालन करेगी।
पलायन की समस्या, सशक्त भू-कानून की मांग भी उठती रही है?
हां! ये भी उत्तराखंड की सामाजिक समस्या है। इस पर भी पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक समिति बनाई हुई है। इसमें अन्य विशेषज्ञ भी राय दे रहे हैं। हिमाचल और अन्य हिमालयी राज्यों के भू-कानूनों को भी देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीमांत गांवों के लिए विशेष योजनाएं दी हैं। इस पर काम शुरू हो गया है। उम्मीद करता हूं कि पलायन रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकार का सामंजस्य कारगर सिद्ध होगा।
चारधाम यात्रा के लिए क्या तैयारी है?
चारधाम यात्रा से गढ़वाल का आर्थिक चक्र चलता है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चारधाम के लिए आल वेदर रोड और रेलवे परियोजनाएं दी हैं। चारों धामों का स्थलीय विकास हो रहा है। केदारनाथ के बाद अब बद्रीनाथ में कॉरिडोर बन रहा है। इस साल अभी तक सात लाख श्रद्धालु यात्रा के लिए आनलाइन पंजीकरण करा चुके हैं। पिछले साल 50 लाख श्रद्धालुओं ने चार धाम यात्रा की थी। मुझे आशा है, इस बार यात्री संख्या के पिछले रिकॉर्ड टूटेंगे। हम व्यवस्थाओं को और बेहतर कर रहे हैं। केदारनाथ में रोपवे प्रोजेक्ट पर काम शुरू है। पुराना पैदल यात्रा मार्ग भी ठीक करा दिया गया है। यात्री सुविधाएं और बेहतर की जा रही हैं।
आपने कुमायूं क्षेत्र में मानसखंड कॉरिडोर की बात कही थी। उस पर सरकार कहां तक पहुंची है?
कुमाऊं के धार्मिक और पर्यटन स्थलों के विकास का काम शुरू हो चुका है। विश्वप्रसिद्ध बाबा नीब करोरी जी के कैंची धाम के लिए पार्किंग का काम शुरू हो गया है। जागेश्वर धाम, चित्तई मंदिर, बागेश्वर, बैद्यनाथ मंदिर, रीठा साहिब, श्री नानकमत्ता साहिब, जितने भी पौराणिक तीर्थ स्थल हैं, वहां तीर्थ यात्रियों के लिए सुविधाएं बढ़ाने का काम शुरू हो चुका है। इस साल ॐ पर्वत आदि कैलाश यात्रा को लेकर बेहद उत्साह है। देखिए, तीर्थाटन ही उत्तराखंड के विकास का पथ है। हमारी सरकार उस पर आगे बढ़ रही है।
हरिद्वार को आपकी सरकार ने क्यों छोड़ दिया जबकि यहां सबसे ज्यादा तीर्थ यात्री आते हैं?
हरिद्वार को बिल्कुल नहीं छोड़ा। यहां तो हर की पैड़ी पर कॉरिडोर बनाने के लिए तैयारी चल रही है। हरिद्वार में कुंभ के दौरान विकास के काम होते रहे हैं। हर साल यहां तीन करोड़ कांवड़िए आते हैं। हम इन सभी को तीर्थ यात्री मानते हैं। इसीलिए हर की पैड़ी के आसपास कॉरिडोर बनाया जाना है जिस पर मास्टर प्लान बना कर पीएमओ भेजा जा चुका है। प्रधानमंत्री मोदी जी स्वयं इस विषय को देख रहे हैं।
पिछले एक साल में आपकी सरकार ने और ऐसा क्या-क्या किया जिससे आप संतुष्ट हैं?
मेरा यह मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का उत्तराखंड से विशेष लगाव है। उनके विजन से करीब एक लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं यहां चल रही हैं, जिनमें सड़क, रेल, नगर विकास, बद्री-केदार प्रोजेक्ट, हवाई अड्डे, हेली एयर स्ट्रिप्स जैसे बहुत से काम शामिल हैं। इससे राज्य का बुनियादी ढांचा खड़ा हो रहा है जो इस हिमालयी राज्य के लिए बेहद जरूरी था। डबल इंजन की सरकार से यह फायदा मिलता है। यह राज्य जब 25 साल का होगा तो ये परियोजनाएं पूरी हो जाएंगी। इसके आगे हमने दस साल का विजन तैयार किया है। जैसे हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज, एक जिला एक उत्पाद, एक जिला एक नया पर्यटन स्थल, होम स्टे, सौर ऊर्जा, सेब और अन्य फल उत्पादन, मोटे अनाज के उत्पादन में वृद्धि, आर्गेनिक खेती जैसी परियोजनाओं पर माइक्रो लेवल पर काम चल रहा है। हमने वन आधारित पर्यटन को बढ़ावा दिया है, साहसिक खेलों को पर्यटन के साथ जोड़ दिया है। इससे रोजगार के अवसर पैदा हो रहे हैं।
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