ईरान में जैसे-जैसे अनिवार्य हिजाब को लेकर आन्दोलन और विरोध बढ़ रहा है, वैसे-वैसे सरकार की ओर से भी कड़ाई बढ़ती जा रही है। यह कड़ाई कई रूपों में आ रही है। यह पूरा विश्व देख रहा है कि कैसे अनिवार्य हिजाब का विरोध करने वाली महिलाओं के साथ अन्याय हो रहा है। जब पूरा विश्व महिलाओं के साथ भेदभाव समाप्त करने पर बल दे रहा है और यह कहा जा रहा है कि हर जगह समावेशी नीति के अंतर्गत ही कार्य होना चाहिए, तो ऐसे में यह बहुत हैरान करने वाला है कि समूचा विश्व ईरान में महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर चुप है। कई वीडियो ट्विटर पर आ रहे हैं, जो दिनों दिन इस बढ़ते अत्याचार की कहानी कह रहे हैं। ऐसा ही एक वीडियो ट्विटर पर है, जिसमें था कि तक-ए-बोस्तन के ऐतिहासिक स्थल में उन सभी लड़कियों को प्रवेश नहीं दिया गया, जिन्होंने हिजाब नहीं पहना था, तो वहीं हिजाब पहनने वाली लड़कियों को प्रवेश करने दिया गया।
https://twitter.com/erfunn/status/1641824471861305346
दिनों दिन वहां पर लड़कियों के साथ अन्याय बढ़ते जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार के स्तर पर ही यह हो रहा है, बल्कि कुछ कट्टरपंथी लोग भी दुकान में प्रवेश करने वाली उन महिलाओं पर अत्याचार करने से बाज नहीं आ रहे हैं, जिन्होंने अनिवार्य हिजाब का पालन नहीं किया होता है। हाँ, यह बात सुखद है कि अब आम लोग इन कट्टरपंथी लोगों के विरोध में अपनी बात उठाने लगे हैं। ऐसा ही एक मामला शंदिज़ में एक दुकान में नजर आया जब एक माँ और बेटी हिजाब के बिना नजर आईं तो एक व्यक्ति ने आगे बढ़कर उन महिलाओं को ही अपशब्द नहीं कहे, बल्कि साथ ही उन पर दही भी डाल दिया। परन्तु यह अभद्रता देखकर वहां पर उपस्थित अन्य लोगों के दिल में आक्रोश फूटा और उन्होंने उन कट्टरपंथी तत्वों को बाहर निकाल दिया।
https://twitter.com/bai_mina/status/1641794587868921857
ऐसा हो रहा है और निरंतर हो रहा है। इतना ही नहीं एक ऐसा क़ानून भी ईरान में आया है, जिसमें यह कहा गया कि महिला फार्मासिस्ट केवल और केवल काला ही हिजाब पहनकर काम पर आएंगी। ईरान के फ़ूड एवं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने फार्मासी कंपनियों को यह आदेश दिया कि वह अपने यहाँ की महिला कर्मियों के प्रति यह सुनिश्चित करें कि वह कार्यस्थान पर काले हिजाब को ही पहनकर आएं और उसके अतिरिक्त और किसी रंग के हिजाब नहीं पहनेंगी। इसे लेकर हंगामा मचा है और इसके विरोध में ईरान के पुरुष भी आ गए हैं! यह विरोध इस सीमा तक था कि पुरुष ही काला हिजाब पहनकर आ गए। इस विषय में ट्वीट्स भी वायरल हुए।
https://twitter.com/ImtiazMadmood/status/1640015367538987013
यह बहुत ही विशेष है कि पुरुष अब महिलाओं के साथ मिलकर आवाज उठा रहे हैं। वह अकेला नहीं छोड़ रहे हैं। वह इस कट्टरपंथ की लड़ाई में उस आजादी की ओर आकर खड़े हैं, जहां पर विश्व की वह कथित फेमिनिस्ट शामिल नहीं हैं, जो बहनापे अर्थात सिस्टरहुड को लेकर सबसे आगे रहती हैं। सरकार ने हर प्रकार के कदम उठाकर देख लिए हैं, आजादी की भावना नहीं रुक रही है। अब सरकार कुछ और प्रतिबंधों को लेकर आई है। और वह प्रतिबन्ध अब पूरी तरह से वहां की लड़कियों की आजादी को लेकर है। वे तमाम प्रतिबन्ध इतने भयानक हैं कि उन पर सहज विश्वास ही नहीं हो सकता है। क्या कोई कल्पना कर सकता है कि किसी भी देश की लड़कियों पर मात्र इस बात को लेकर लाइसेंस एवं पासपोर्ट छीनने तक के कदम उठाए जा सकते हैं कि उन्होंने अनिवार्य हिजाब पहनने से इंकार कर दिया। संसद में एक नया क़ानून पारित हुआ है जिसमें उन पर 100$ से 60,000$ तक का अर्थदंड तो लगेगा ही साथ ही उनका ड्राइविंग लाइसेंस और पासपोर्ट तक छीन लिया जाएगा।
https://twitter.com/MiddleEastMnt/status/1641109416542871552
यह कल्पना ही भयावह है कि लड़कियों को मात्र इस कारण इस सीमा तक दंड दिया जाए कि उनकी मूलभूत आजादी ही छीन ली जाए और वह भी किस कारण, वह इस कारण कि उन्होंने एक थोपे हुए नियम को मानने से इंकार कर दिया है। उन्होंने अनिवार्य हिजाब का विरोध किया है? क्या उन्हें अपने मन से रहने की आजादी नहीं है? और सबसे बढ़कर पूरी दुनिया में बहनापे का राग गाने वाली महिलाएं भी इस सीमा तक हो रहे अन्याय के लिए कुछ बोल नहीं रही हैं। वह यह नहीं कहने आ रही कि जो हो रहा है, वह गलत हो रहा है, वह इन महिलाओं के साथ हैं ही नहीं!
यह भी ध्यान दिया जाए कि ईरान में हो रहे इस घनघोर अत्याचार के विरुद्ध वह बॉलीवुड भी एकदम मौन है, जो खुद को तमाम तरह की क्रान्ति का केंद्र मानता है। जो इजरायल के प्रधानमंत्री नेत्यान्हू से मिलने को लेकर भी विमर्श के स्तर पर दो फाड़ में बंट गया था और सम्भवत्या एक भी “खान” इस मुलाक़ात में शामिल नहीं था। और इतना ही नहीं, तमाम मुद्दों पर बॉलीवुड अपनी बात उठाता है। मगर जब ईरान में यह सब घट रहा है तो बॉलीवुड से मात्र एक ही आवाज उठी थी और वह भी ईरान की अभिनेत्री की। नहीं तो महसा अमीन की मृत्यु के बाद जिस प्रकार से सरकारी दमन चल रहा है और जिस प्रकार से लड़के-लड़कियों दोनों को ही सजाएं दी जा रही हैं, उन पर “प्रगतिशील” बॉलीवुड का बेशर्म मौन बहुत कुछ कहता है।
आज जब इतने महीनों बाद भी जनता का विरोध प्रदर्शन बंद नहीं हुआ है तो सरकार इस सीमा तक अमानवीय क़ानून लेकर आई है। ऐसे में भी विश्व की फेमिनिस्टो का मौन चकित करता है, विस्मय में डालता है कि आखिर उनके लिए बहनापा है क्या?
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