साहित्य में भी ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’?

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बालेन्दु शर्मा दाधीच

साहित्य अकादमी जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों की वेबसाइटों ने वैश्विक स्तर पर साहित्य के रसिकों के साथ तादात्म्य स्थापित करने में मदद की है।

सूचना प्रौद्योगिकी और नए मीडिया ने साहित्यकारों को कई अर्थों में सहयोग दिया है। लेखन और प्रकाशन के नए मंच सामने आए हैं तो ब्लॉगिंग जैसे अभिव्यक्ति के नए माध्यम लोकप्रिय हुए हैं। किताबें ईबुक्स जैसे नए स्वरूपों को अपना रही हैं। साहित्यिक विमर्श के डिजिटल और आभासी मंचों ने साहित्य तथा लेखकों को लाभान्वित किया है। हमारे रचनाकर्म को भौगोलिक सीमाओं से परे एक बहुत बड़े पाठक, दर्शक तथा श्रोता वर्ग तक पहुंचाने में नए मीडिया ने कमाल का योगदान दिया है।

साहित्य अकादमी जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों की वेबसाइटों ने वैश्विक स्तर पर साहित्य के रसिकों के साथ तादात्म्य स्थापित करने में मदद की है। कोविड के दौर में साहित्यिक आयोजनों के लिए एक वैकल्पिक (आभासी, डिजिटल, वर्चुअल) पटल उभर कर आया जिसने उन कठिन परिस्थितियों में भी हमें इन आयोजनों से जोड़े रखा और जो आज भी प्रासंगिक है। थोड़े शब्दों में कहें तो साहित्य तथा साहित्यकारों के लिए दायरा बढ़ा है और सर्जक तथा पाठक के बीच दूरी सिमट गई है।

लेकिन बात यहीं तक सीमित नहीं है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आगमन के बाद साहित्य की दुनिया भी बड़े बदलावों से साक्षात्कार करने वाली है। न सिर्फ अंग्रेजी, बल्कि भारतीय भाषाओं का साहित्य भी। लेखकों द्वारा विषयों के चयन या पुस्तक की परिकल्पना से लेकर रचना के पाठक तक वितरित होने तक की पूरी प्रक्रिया में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की भूमिका होने वाली है। यह एक मददगार के रूप में तो है ही, एक सर्जक के रूप में भी सामने आ चुकी है और ‘कृत्रिम साहित्य’ (एआई लिटरेचर) नामक एक नई धारा उदित हो रही है।

वेबसाइटों ने वैश्विक स्तर पर साहित्य के रसिकों के साथ तादात्म्य स्थापित करने में मदद की है। कोविड के दौर में साहित्यिक आयोजनों के लिए एक वैकल्पिक (आभासी, डिजिटल, वर्चुअल) पटल उभर कर आया जिसने उन कठिन परिस्थितियों में भी हमें इन आयोजनों से जोड़े रखा और जो आज भी प्रासंगिक है।

आपने चैट जीपीटी का नाम सुना या पढ़ा होगा। यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित एक अनुप्रयोग है जिसने महज तीन-चार महीने में पूरे विश्व में हलचल मचा दी है। चैट जीपीटी नामक एआई अनुप्रयोग ने कंप्यूटर की सृजन करने की क्षमता से परिचय के साथ ही, कृत्रिम बुद्धिमत्ता के एक ऐसे पहलू को सामने लाकर रख दिया है जो अद्भुत है और कुछ हद तक डरावना है। अहम बात यह है कि उसने अपनी इस क्षमता की झलक मात्र नहीं दी है बल्कि इन क्षमताओं को हमारे सामने प्रस्तुत किया है, आज की एक हकीकत के रूप में।
लेकिन बात को आगे बढ़ाने से पहले हमें इसकी एक झलक देखनी चाहिए। जरा ये कुछ पंक्तियां पढ़िए
इस साहित्य की अनगिनत पंक्तियां :
जो समझाती हैं हमें जीवन के सच।
हमारे मन की सभी संवेदनाओं का परिचय,
यही तो है, जो देता है हमें नई पहचान।
हिंदी साहित्य पर हमें गर्व है,
यही हमारी संस्कृति का आधार है।
इससे उजाला मिला हमें,
जिससे जीवन की राहें हुईं स्पष्ट।

यह हिंदी साहित्य पर एक कविता है जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने लिखी है। अब तीन भाषाओं में लिखे गए इन हाइकू को देखिए:
हिंदी : धूप का संघर्ष, अंधेरे के साथ खत्म, अमर विरासत।
बांग्ला : सितिर सिलाए स्नेहो, प्रकृतीर आंचले हरानो मोन।
पबित्र ब्रष्टिर छायाय संसारेर अभिनब संपदा।
मराठी : शिताकाळाचा वेडा, उदयाला उजळणारी संध्या। विविधतेचे सुंदर संगम।
शायद आप सोंचे कि साहित्य के संदर्भ में इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं दिखती। लेकिन ऐसा सोचने से पहले याद करें कि 2010 के आसपास जब आप मशीनी अनुवाद को देखते थे, तब वह कैसा था, और आज कैसा है। सिर्फ दस साल के भीतर मशीनी अनुवाद की क्षमताओं का कायाकल्प हो चुका है। तब मशीनी सृजनकर्म क्या इसी पड़ाव पर रुक जाने वाला है?
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट में निदेशक- भारतीय भाषाएं
और सुगम्यता के पद पर कार्यरत है)।

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