आज राष्ट्रीय बाघ परियोजना की 50वीं वर्षगांठ है। यानी आज ही के दिन 1 अप्रैल 1973 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत के राष्ट्रीय पशु बाघ को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए बाघ परियोजना का शुभारंभ किया था। इंदिरा गांधी ने इस परियोजना का शुभारंभ कॉर्बेट नेशनल पार्क से किया, जहां बाघों को प्राकृतिक वास में सुरक्षित रखने के लिए टाइगर रिजर्व जोन घोषित किया गया।
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व भारत का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान होने का भी स्थान रखता है। कॉर्बेट पार्क के अतिरिक्त आठ अन्य राष्ट्रीय उद्यान टाइगर रिजर्व घोषित किए गए। टाइगर रिजर्व में राष्ट्रीय पशु को बचाने के लिए कई कार्य हुए, जिस कारण तेजी से कम हो रहे बाघ जो की शिकार और तस्करी, घटते पर्यावास और मानव वन्य जीव संघर्ष की भेंट चढ़ रहे थे उनको एक नया जीवन प्राप्त हुआ। वर्तमान में भारत में लगभग 2700 से अधिक बाघ हैं, जो की 50 से अधिक टाइगर रिजर्व में हैं। इसके अलावा बाघ अन्य आरक्षित वनों में विचर रहे हैं।
भारत ने दुनियाभर में एक मिसाल कायम की है। इतनी विशाल आबादी के बाद भी किस तरह से वन्य जीवों के संरक्षण में खास तौर पर बाघ कि सुरक्षा में सफलता हासिल की जा सकती है। बाघ विशेषज्ञ डॉ एस बिलाल कहते हैं कि बाघों के संरक्षण के पीछे भारत के लोगों का मूल विचार और संस्कार है, जो की जीवों पर दया करो की प्रेरणा देते हैं।
वन्य जीव विशेषज्ञ डॉ पराग धकाते कहते हैं कि सख्त कानून की वजह से भी बाघों का संरक्षण हुआ है। पहले प्रभावशाली लोग बाघों के शिकार को अपनी शान से जोड़ते थे, उसकी खाल को घर में लगाकर वीरता के किस्से सुनाते थे। कानून बन जाने से इस पर रोक लगी और बाघों और संरक्षित वन्य जीवों का शिकार रोक पाने में सफलता मिली और धीरे-धीरे लोगों में जानवरों के प्रति करुणा का भाव भी बढ़ा।
वन्य जीव विशेषज्ञ और बाघों के नए-नए प्रवास पर शोध करने वाले डॉ विपुल मौर्य कहते हैं कि बाघों के संरक्षण में भारत के बाघ परियोजना जैसे प्रोजेक्ट्स ही काफी मददगार साबित होते हैं, परंतु बिना क्षेत्रीय जनता के ये कभी सफल नहीं हो सकता। डॉ मौर्य कहते हैं कि वर्तमान में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की भूमिका बाघों के संरक्षण सुरक्षा के लिए बेहद असरदार भूमिका में है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल भी बाघों के लिए सोचता और करता है।
आईएफएस डॉ विनय भार्गव कहते हैं कि बाघ परियोजना, एनटीसीए, देश के राष्ट्रीय पशु को संरक्षित करने में सफल रही है। बाघ केवल एक पशु नहीं है, वह हमारे जंगलों का रखवाला भी है और बिना जंगलों के हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। बाघों के लिए अभी और काम करने की जरूरत समझी जा रही है। जानकर कहते हैं कि टाइगर परिवार को बाघ संरक्षित जंगलों के बाहर लगते जंगलों में भी संरक्षित करने की जरूरत है, क्योंकि बाघों की अपनी टेरिटरी होती है और जवान बाघ उम्रदराज बाघ को अपने इलाके में रहने नहीं देता और वो दूसरे जंगल तलाशता है इसलिए एनटीसीए को इस बारे में भी योजना बनाने की जरूरत है।
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