लेबनान में एक वक्त था जब ईसाई वहां बहुलता में थे और सुकून के साथ कायदे—कानून मानकर जिंदगी जीते थे। लेकिन अब दौर इतना बदल चुका है कि काम और बसने के लिए शुरुआत में गिनती के आए मुसलमानों ने जनसंख्या बढ़ाते हुए ईसाइयों की बराबरी कर ली है। समाज जीवन के हर क्षेत्र में वे अपनी चलाने लगे हैं और ईसाई, जो वहां के मूल निवासी माने जाते हैं, मुंह खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। रमजान के इस महीने में आज वहां दोनों समुदायों के बीच तकरार इस हद तक जा पहुंची है कि कई विशेषज्ञ इसे 1975 वाली स्थिति मान रहे हैं जब यहां ‘सिविल वार’ छिड़ी थी।
हुआ यूं है कि रमजान के महीने की वजह से वहां की सरकार, जिसमें मुस्लिमों के पक्षधरों की कमी नहीं है, ने गर्मियों का टाइम टेबल लागू न करते हुए सर्दियों की ही समय सारिणी बनाए रखने का फैसला किया। सरकार को लगा, इससे मुस्लिम समुदाय को राहत मिलेगी। सरकारी घड़ी गर्मियों वाली ही रही। लेकिन इस फैसले पर बिना खास विचार विमर्श किए आखिरी वक्त पर लागू किया गया। इससे लेबनान में राजनीतिक ही नहीं, पांथिक नेताओं में ऐसी तीखी बहस छिड़ गई है कि जो थमने का नाम नहीं ले रही है।
दरअसल, होता यह आया है कि मार्च के महीने के अंत में सरकार वक्त में बदलाव करते हुए इसे एक घंटा आगे बढ़ा दिया करती थी। लेकिन इस बार रमजान पर विशेष ध्यान देते हुए वहां की सरकार ने तय किया है कि 20 अप्रैल तक एक घंटा नहीं बढ़ाया जाएगा, समयसारिणी गर्मियों वाली ही रहेगी।
बाहर से वहां आ बसे कट्टर इस्लामवादियों से पहले ही त्रस्त ईसाई समुदाय के लोग चुप नहीं बैठे। उन्होंने मिकाती पर आरोप लगाया कि वे मुसलमानों को रिझाने में लगे हैं इसलिए अंत समय में यह फैसला लिया है। यही वह फैसला है जिसने ईसाइयों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंचाया हुआ है।
लेबनान में फिलहाल कार्यवाहक प्रधानमंत्री नजीब मिकाती की सरकार है। देश जबरदस्त आर्थिक संकट में फंसा है। सरकार ने घोषणा कर दी कि मुस्लिम समुदाय के लोग शाम 6 बजे इफ्तार करेंगे। सरकार अगर परंपरानुसार, समय में एक घंटे का फर्क कर देती तो इफ्तार 7 बजे होता यानी एक घंटा देर से। बाहर से वहां आ बसे कट्टर इस्लामवादियों से पहले ही त्रस्त ईसाई समुदाय के लोग चुप नहीं बैठे। उन्होंने मिकाती पर आरोप लगाया कि वे मुसलमानों को रिझाने में लगे हैं इसलिए अंत समय में यह फैसला लिया है। यही वह फैसला है जिसने ईसाइयों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंचाया हुआ है।
परिस्थितियां ऐसी नाजुक हो चली है कि लेबनान के सबसे बड़े चर्च ‘मेरोनाइट’ ने फैसले का खुलकर विरोध किया। चर्च की तरफ से कह दिया गया है कि वे यानी ईसाई अपनी घड़ी हमेशा की तरह एक घंटा आगे बढ़ा लेंगे। मार्च के खत्म होने पर आखिरी रविवार को ऐसा होता ही आया है। चर्च सरकार के ‘मुस्लिमों के हित’ में बेवजह किए गए सरकार के इस फैसले का स्पष्ट विरोध किया है। चर्च ने यह भी कहा है कि अन्य क्रिश्चयन संस्थान, स्कूल आदि चर्च की ही राह पर चलते हुए घड़ियां एक घंटा आगे कर लेंगे।
दरअसल मार्च के अंत में घड़ियों को एक घंटा आगे करना लेबनान में एक बड़ा विषय रहा है।मिकाती सरकार के इस वक्त को न बदलने के निर्णय से आमलोग बड़े पसोपेश में फंस गए हैं। एक तरफ तो ईसाइयों ने सरकार के फैसले का विरोध करते हुए अपनी घड़ियां एक घंटा आगे कर लेने का फैसला किया है तो दूसरी तरफ मुस्लिम लोगों और उनके संस्थानों ने सरकार के निर्णय को मानते हुए सर्दियों का वक्त ही बनाए रखने की घोषणा कर दी है। सवाल है कि देश में किस समुदाय का माना वक्त चलेगा?
घड़ी के वक्त में बदलाव फर्क होने से लेबनान से जाने वालीं अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को लेकर दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। मिडिल ईस्ट एयरलाइंस का कहना है कि वे देश में तो सर्दियों की घड़ी पर चलेंगे, लेकिन अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए घड़ी का समय एक घंटा आगे बढ़ा देंगे। आश्चर्यजनक बात है कि ऐसा ही एक फैसला तब 1975 में हुआ था, जिसके बाद देश में गृह युद्ध छिड़ गया था। हालात इतने खराब हुए कि देश में संसदीय सीटों को मजहबी हिसाब से बांट दिया गया था। कुछ वैसा ही संकट आज एक बार खड़ा होता दिख रहा है। सवाल है कि यह दुविधा कैस दूर होगी? क्या फिर से वहां गृह युद्ध छिड़ेगा?
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