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अपने काम से मिली संतुष्टि

पटना के विकास कुमार हांगकांग में मरीन चीफ इंजीनियर थे। वे राइपनिंग चैम्बर में फलों को वैज्ञानिक तरीके से पकाते हैं, ताकि लोगों को कार्बाइड के घातक दुष्प्रभावों से बचाया जा सके

by बी.के. दुबे
Mar 25, 2023, 05:34 pm IST
in भारत, उत्तर प्रदेश
अपनी निगरानी में काम कराते मुकेश पाण्डेय

अपनी निगरानी में काम कराते मुकेश पाण्डेय

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कृषि विभाग की योजनाओं का अध्ययन करना शुरू किया। उन्हें वर्मी कम्पोस्ट संयंत्र लगाने का विचार 

उत्तर प्रदेश के मिजार्पुर जिले के सीखड़ गांव के रहने वाले मुकेश पाण्डेय ईडीआई अमदाबाद से एमबीए करने के बाद अमेरिका की एक कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर के तौर पर काम कर रहे थे। उनका वेतन एक लाख रुपये था। लेकिन गांव और परिवार से लगाव अधिक होने के कारण उन्हें अमेरिका रास नहीं आया। लिहाजा, 2016 में नौकरी छोड़ कर घर आ गए। गांव आने के बाद वे राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) से जुड़े। केंद्र प्रायोजित इस योजना के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन पर होती है।

बहरहाल, मुकेश पाण्डेय ने संविदा पर राज्य सरकार में नौकरी कर ली। मिशन के तहत उनका काम महिलाओं को मार्केटिंग का प्रशिक्षण देना था। यहां उन्हें एक दिन के प्रशिक्षण के लिए एक तय मानदेय का भुगतान किया जाता था। लेकिन यहां भी उनका मन नहीं लगा, तो यह नौकरी भी छोड़ दी। इसके बाद उन्होंने अपना काम शुरू करने का फैसला किया ताकि दूसरों को रोजगार भी दे सकें।

मात्र चार वर्ष में ही उनका काम इतना बढ़ गया कि वे अपने जिले में ही नहीं, बल्कि देश के सभी राज्यों में वर्मी कम्पोस्ट की आपूर्ति करने लगे। अब वे नेपाल, श्रीलंका और नींदरलैण्ड तक वर्मी कम्पोस्ट का निर्यात करते हैं। शुरू में खाद बिक्री से हर महीने एक लाख रुपये की कमाई होती थी, जो अब बढ़कर प्रतिमाह पांच लाख रुपये पर पहुंच गई है। अपने प्लांट में वह हर माह 600 मीट्रिक टन जैविक उर्वरक का उत्पादन करते हैं। साथ ही, इसमें गांव की 40-50 महिलाओं को रोजगार भी दे रहे हैं।

इसलिए उन्होंने कृषि विभाग की योजनाओं का अध्ययन करना शुरू किया। उन्हें वर्मी कम्पोस्ट संयंत्र लगाने का विचार आया। लिहाजा, 2018 में उन्होंने अपनी कंपनी बनाई और वर्मी कम्पोस्ट संयंत्र लगाने में जुट गए। इस कार्य में कृषि विभाग के उप-निदेशक अशोक कुमार उपाध्याय ने उनका भरपूर सहयोग किया। उन्होंने राज्य सरकार की योजनाओं से मुकेश को लगभग एक लाख रुपये की आर्थिक सहायता दिलाने में मदद की, जिससे वह घर के पास पांच बिस्वा जमीन में वर्मी कम्पोस्ट संयंत्र लगा सके।

प्रारंभ में मुकेश ने अपने खेतों के लिए वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया। इसके बाद आसपास के गांवों के किसानों को इस जैविक उर्वरक का उपयोग करने के लिए समझाया। लेकिन रासायनिक उर्वरकों पर भरोसा करने वाले किसान इसके लिए तैयार नहीं हुए। तब कृषि उप-निदेशक ने वर्मी कम्पोस्ट के लाभ के बारे में बता कर किसानों को प्रायोगिक तौर पर इसका उपयोग करने के लिए राजी किया।

मुकेश की मानें तो मात्र चार वर्ष में ही उनका काम इतना बढ़ गया कि वे अपने जिले में ही नहीं, बल्कि देश के सभी राज्यों में वर्मी कम्पोस्ट की आपूर्ति करने लगे। अब वे नेपाल, श्रीलंका और नींदरलैण्ड तक वर्मी कम्पोस्ट का निर्यात करते हैं। शुरू में खाद बिक्री से हर महीने एक लाख रुपये की कमाई होती थी, जो अब बढ़कर प्रतिमाह पांच लाख रुपये पर पहुंच गई है। अपने प्लांट में वह हर माह 600 मीट्रिक टन जैविक उर्वरक का उत्पादन करते हैं। साथ ही, इसमें गांव की 40-50 महिलाओं को रोजगार भी दे रहे हैं।

मुकेश का कहना है कि देखने में यह कार्य काफी छोटा लगता है, लेकिन देश की मिट्टी, किसानों और फसलों के लिए यह काफी उपयोगी उर्वरक है। इससे भूमि की मृदा शक्ति जहां बनी रहेगी, वहीं रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग से बंजर हो रही भूमि को भी आसानी से बचाया जा सकेगा। इसके अलावा, वे एफपीओ स्थापित कर अपने उत्पादों का निर्यात कर रहे है। कृषक उत्पादक संगठन के माध्यम से अन्य किसान भी इससे लाभान्वित हो रहे है।

Topics: Farmer Producer Organisationजैविक उर्वरकsatisfaction from their workदेश की मिट्टीवर्मी कम्पोस्ट का निर्यातकिसानों और फसलखादनींदरलैण्ड तक वर्मी कम्पोस्टकृषक उत्पादक संगठनorganic fertilizersनेपालcountry's soilश्रीलंकाfarmers and cropsnetherlandsvermicompost till Nepalकृषि विभागSrilankaDepartment of Agriculture
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