देश में फांसी की सजा के बजाय कोई और दर्द रहित मौत की सजा दिये जाने के तरीके पर सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर एक विशेषज्ञ कमेटी बनाने के संकेत दिए हैं। कोर्ट ने इस संबंध में केंद्र सरकार से पूछा है कि फांसी देने से कितना दर्द होता है। कोर्ट इस मामले पर अगली सुनवाई 2 मई को करेगा।
कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि आधुनिक विज्ञान और तकनीक का फांसी की सजा पर क्या विचार है । क्या देश या विदेश में मौत की सजा के विकल्प का कोई डेटा है। इस मामले में केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि मौत की सजा के लिए फांसी सबसे तेज और सुरक्षित तरीका है। हलफनामा में कहा गया है कि लीथल इंजेक्शन के जरिये मौत की सज़ा फांसी की तुलना में ज्यादा नृशंस है। पहले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि दूसरे देशों में क्या व्यवस्था है।
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 6 अक्टूबर, 2017 को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने कहा था कि मौत की सजा के लिए फांसी की सजा को हमने 1983 में सही ठहराया था, लेकिन इसके 34 साल बाद काफी कुछ बदलाव हुआ है। पहले ठहराया गया सही बाद में गलत भी हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि भारत का संविधान काफी बदलाव वाला और दयालु किस्म का है।
दरअसल, वकील ऋषि मल्होत्रा ने 20 सितंबर, 2017 को एक याचिका दायर कर कहा है कि जीवन के मौलिक अधिकारों में सम्मान से मरने का अधिकार भी शामिल किया जाए। याचिका में कहा गया है कि मौत की सजा के लिए फांसी की जगह किसी दूसरे विकल्प को अपनाया जाना चाहिए। याचिका में फांसी को मौत का सबसे दर्दनाक और बर्बर तरीका बताते हुए जहर का इंजेक्शन लगाने, गोली मारने, गैस चैंबर या बिजली के झटके देने जैसी सजा देने की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है फांसी से मौत में 40 मिनट तक लगते है, जबकि गोली मारने और इलेक्ट्रिक चेयर पर केवल कुछ मिनट। मल्होत्रा ने कहा है कि लॉ कमिशन ने भी यही कहा है कि विकासशील और विकसित देशों ने फांसी के बजाय इंजेक्शन या गोली मारने के तरीकों को अपनाया है। किसी कैदी को कम से कम दर्द और सहने का आसान मानवीय और स्वीकार्य तरीका है। लॉ कमिशन ने 1967 में 35वीं रिपोर्ट में कहा था कि ज्यादातर देशों ने बिजली करंट, गोली मारने या गैस चैंबर को फांसी का विकल्प चुन लिया है।
याचिका में मांग की गई है कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 354 (5) के तहत ये कहा गया है कि मौत होने तक लटकाया जाए, इसलिए इसे संविधान के जीने के अधिकार का उल्लंघन करार दिया जाना चाहिए। साथ ही सम्मानजनक तरीके से मरने को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया जाए।
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