सभ्यताएं नदियों की गोद में उपजती हैं और नदियों के आस-पास ही पुष्पित पल्लवित होती हैं। भारत नदियों का देश है और यहा नदियों को ईश्वर की तरह पूजा जाता है। परंतु आधुनिकता के नाम पर आज विश्वभर में कई सारे ऐसे कार्य करने प्रारंभ कर दिये हैं, जो प्रकृति के अनुकूल नहीं हैं। लोग प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुन दोहन करने में लगे हुए हैं। इसी दोहन की कड़ी में नदियां भी अछूती नहीं रही हैं। नदियों का भी अत्यधिक दोहन किया जा रहा है। प्राकृतिक संसाधनों के शोषण की प्रक्रिया में जहां एक ओर नदी का जल या तो सूखता जा रहा है या फिर नदियां प्रदूषित होकर नाले का रूप ले रही हैं। आधुनिक सभ्यता में नदियों के अत्यधिक दोहन के कारण ‘पेयजल’ की कमी सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है। ऐसा भी माना जा रहा है कि पेयजल के लिए विश्वयुद्ध भी भविष्य मे हो सकते हैं। इस समस्या को कम या दूर करने के लिए जल संसाधनों का प्रयोग व संरक्षण कुशल रूप से करने की आवश्यकता है।
हमारे देश की यह संस्कृति है कि नदी को जीवनदायनी के रूप में पूजा जाता रहा है। परंतु बाहर से आए हुए शासकों ने कई पुरानी नदियों की संरचना में परिवर्तन करके उसे या तो विलुप्त कर दिया है या उसे किसी गंदे नाले में तब्दील कर दिया। देश की राजधानी दिल्ली में लोग सबसे प्रमुख यमुना नदी को मानते हैं और यमुना अपनी विशालता के कारण प्रमुख नदी है भी। लोग व नीति निर्माता इसकी सफाई व संरक्षण की चिंता में करते हैं, परंतु कुछ लोगों को छोड़कर शायद ही ज्यादातर लोगों को यह मालूम होगा कि दिल्ली में वैदिक सभ्यता जितनी पुरानी ‘साहिबी नदी’ भी मौजूद है। इस नदी के आसपास ‘गेरू रंगों की बर्तन की संस्कृति’ के साक्ष्य पुरातत्व सर्वेक्षण को मिले हैं। यह संस्कृति हड़प्पा सभ्यता के समय में थी। आजकल इस वैदिक नदी ने एक गंदे नाला का रूप ले लिया है।
वैदिक नदी ‘साहिबी’
मनुस्मृति में यह उल्लेख किया गया है कि ब्रह्मवर्त क्षेत्र, जो सरस्वती नदी और दृशद्वती नदी ( भारतविद् द्वारा वैदिक नदियों की श्रृंखला) के मध्य था। दृशद्वती नदी के माध्यम से वैदिक नदियों के धाराओं की रूपरेखा बनाई थी, इसमें साहिबी नदी की धाराओं को भी अंकित किया गया था। मरू बनी एक नदी अगर फिर से उसमें जल की धारा आ जाए तो नदी के आसपास के बड़े इलाके को फिर से लहलहा सकती है। ऋग्वैदिक काल की नदी मानवीय छेड़छाड़ के कारण विलुप्त हो गई, वह नदी है ‘साहिबी’। ऋग्वेद के 23वें सूक्त में, हरियाणा की नदी ‘रसा’ अर्थात साहिबी का विस्तृत वर्णन है। तीन सौ किलोमीटर लंबी नदी राजस्थान में सीकर क्षेत्र के साइवार संरक्षण वन अरावली पहाड़ी के नजदीक जितगढ़ के मनोहारपुर से नकलती है। इस क्षेत्र मे इसे साबी नदी के नाम से जानते हैं, यह हरियाणा होते हुये दिल्ली मे प्रवेश करती है और यमुना नदी में जुड़ जाती है। साहिबी नदी की सहायक नदी परमुखतः कृष्णवती नदी, दोहन नदी, सोता नदी, कोट्कासी रही। साहिबी नदी के किनारे ही जोधपुर सभ्यता विकसित हुई।
मसानी बराज और साहिबी नदी
अंग्रेजों के आगमन के बाद 1865 में सिंचाई के लिए नहर बनाए जाने की योजना बनी ताकि कृषि के लिए पानी उपलब्ध कराया जा सके। इस योजना से कृषि योग्य भूमि में और बढ़ोतरी हो गई। 1885 के समय दिल्ली में शहरीकरण बहुत सीमित क्षेत्र में था कृषि योग्य भूमि ही अधिक थी इसलिए जल की उपलब्धता अधिक कराने पर ज़ोर दिया गया। साहिबी नदी जो नजफ़गढ़ झील से मिल जाती थी वहां से साहिबी नदी के धाराओं को नहर का रूप दे दिया गया था, उस समय ड्रेन संख्या-8 से होकर यह नहर गुजरती थी उस समय इन ड्रेन का प्रयोग सिंचाई के लिए प्रयोग होता था। बरसात के मौसम में साहिबी नदी में पानी अधिक मात्रा मे आ जाता था जिस कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती थी। वर्ष 1845, 1873, 1917, 1930, 1933, 1960, 1963, 1972 और 1977-78 की बाढ़ बड़े स्तर की थी। इस बाढ़ से साहिबी नदी के आसपास रहने वालों को बहुत अधिक नुकसान उठाना पड़ा। बाढ़ को नियंत्रण में लाने के लिए दिल्ली-जयपुर हाइवे के पास रेवाड़ी में मसानी बराज का निर्माण किया गया। कुछ और छोटे बांधों का निर्माण जयपुर में किया गया ताकि बारिश के पानी को एकत्रित किया जाए। इस बांधों के निर्माण के कारण साहिबी नदी पानी की धारा बिलकुल कम हो गई जिस कारण नजफ़गढ़ की झील भी अब समाप्त होने की कगार पर आ गई है। नजफ़गढ़ झील के आसपास कई बड़ी-बड़ी इमारतें व अन्य संरचना बन गई हैं जो झील के लिए नुकसानदेह हैं।
साहिबी नदी, नाले में कैसे बदली यह शोध का विषय
क्या शहरीकरण की प्रक्रिया में प्रकृति के लिए कोई सम्मान की भावना नहीं होती ? आधुनिकता में कोई आत्मा नहीं होती? कैसे एक जीवनदायिनी नदी नाले के रूप में परिवर्तित हो गयी है? यह परिवर्तन इतना क्रूरतापूर्ण है कि आज की दिल्ली के निवासियों को यह ज्ञात ही नहीं कि जिसे वह नाला समझते हैं वह वास्तव में एक ऐतिहासिक नदी है।
भारतीय सभ्यता नदी को ईश्वरीय रूप में पूजती है, क्या यह संस्कृति शहरीकरण होने के कारण विलुप्त होती जा रही है। भारत के लिए साहिबी नदी एक सीख है कि आखिर हमारी प्रकृति प्रेम की संस्कृति शहर में आने के बाद क्यों खो जाती है। यह बहुत चिंतनीय विषय है कि जिस जल के लिए आज दिल्ली की जनता को अनेक समस्या का समाना करना पड़ रहा है और दिल्ली की शासन व्यवस्था पड़ोसी राज्यों से जल की याचना कर रही है, अगर साहिबी को नाला का रूप नहीं दिया गया होता तो आज दिल्लीवासियों को जल के संकट का सामना नहीं करना पड़ता। मुख्य प्रश्न यह है कि वैदिक नदी ‘साहिबी’ क्यों और कैसे एक गंदे नाले के रूप में परिवर्तित हो गई। यह एक शोध का विषय है। हमें यह जानना होगा कि किस प्रकार से ‘साहिबी नदी’ ने एक गंदे नाले का रूप ले लिया है। सबसे प्रमुख यह है कि इस वैदिक नदी को फिर से कैसे इसके प्राकृतिक रूप में वापस लाया जाए।
शोध (स्टूडेंट्स फॉर होलेस्टिक डेव्लपमेंट ऑफ ह्यूमिनिटी) का प्रयास
शोध, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का एक आयाम है जो लगभग सम्पूर्ण भारत में शोधार्धीयों के साथ जुड़कर समकालीन विषयों व सामाजिक मुद्दों पर एकत्रित होकर चर्चा करता है। साथ ही अपने रिसर्च के माध्यम से समाज को किस प्रकार कुछ दिया जा सकता है ताकि राष्ट्र और उन्नति कर पाये इस विषय पर समय-समय पर संगोष्ठी का आयोजन करता है। विश्व पर्यावरण दिवस (पांच जून) के उपलक्ष्य पर एक वेबिनार का आयोजन शोध के द्वारा किया गया था। “Exploring the vien of Delhi; Sahibi River: An idea of Reimagination Restoration and Rejuvenation” इस वेबिनार की थीम थी। इसमें मुख्य चार वक्ता थे, जो पर्यावरण से संबन्धित शोध कार्य के पठन पाठन में कार्यरत हैं।
सैटेलाइट फोटो से साहिबी नदी के बदलते स्वरूप को दिखाया
डॉ. अमित कुमार मिश्रा, जो जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय मे सहायक प्रोफेसर हैं, इन्होंने साहिबी नदी के बारे में विस्तृत चर्चा की, कैसे यह वैदिक नदी पहले एक नदी के रूप में मौजूद थी परंतु अब क्यों यह नाले के रूप मे परिवर्तित हो गई है। उन्होंने इसे एक शोध का विषय बताया। इन्होंने सैटेलाइट तस्वीर के माध्यम से साहिबी नदी के जल के बदलते स्वरूप को दिखाया। दूसरे वक्ता प्रो॰ सैफ अली जो जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय मे प्रोफेसर हैं, इन्होंने साहिबी नदी में बढ़ते प्रदूषण के कारणों के बारे मे बताया, इसमे अभी कौन से ऐसे खतरनाक रसायन मौजूद हैं जो दिल्ली की आबो-हवा को दूषित कर रहे हैं। उन्होंने कई उपाय बताए कि कैसे इसे कम किया जा सकता था। तीसरे डॉ॰ अश्वनी कुमार तिवारी थे जो जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग मे सहायक प्रोफेसर हैं। चौथे वक्ता रामवीर तंवर थे, जो जमीनी स्तर कर प्रदेशों में घूम-घूम तालाबों, बावलियों और अन्य जलराशियों को पुनर्जीवित करने का कार्य करते हैं, वह ‘पॉण्ड मैन’ के नाम से भी जाने जाते हैं। इन्होंने जमीनी स्तर पर कई तालाबों का पुनःउद्धार किया। उन्होंने यह भी कहा कि वैदिक, साहिबी नदी के पुनःउद्धार के लिए गंभीर प्रयास होने चाहिए।
इस वेबिनार के बाद शोध की पूरी टीम ने इस वैदिक नदी के ऊपर शोध कार्य करना प्रारंभ कर दिया है और यह जारी है। निरंतर शोध कार्य के बाद हम यह जान सकेंगे कि वैदिक नदी का ऐतिहासिक महत्व क्या था और भविष्य में यह कितना उपयोगी साबित हो सकता है। इसके साथ ही आज के समय में गंदे नाले के रूप लिए वैदिक नदी का फिर से कैसे पुनःउद्धार किया जा सकता है, उसके लिए एक दस्तावेज़ नीति निर्माता को देने की ऐसी योजना शोध की टीम द्वारा बनाई गई है।
साहिबी के नवजीवन के लिए सभी को करना होगा प्रयास
छह अगस्त 2022 को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ इनवायरमेंटल साइंस के साथ मिलकर SHoDH ने कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला में यह तय किया गया कि साहिबी नदी के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाया जाएगी और लोगों के बीच साहिबी नदी के वास्तविक स्वरूप के बारे जानकारी को प्रचारित किया जाए। मात्र सरकार के द्वारा औपचारिक रूप से यह मान लेने मात्र से कि यह नदी है तो साहिबी को न्याय नहीं मिल जाता। सरकार, स्वयंसेवी संस्थानों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं तथा समाज को एक साथ आकर साहिबी नदी की सफाई और इसके नवजीवन के लिए कार्य करना होगा। यदि साहिबी नदी के लिए एक बार संकल्पबद्ध होकर हमने ठोस कदम उठाए तो राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से पूरे देश में पर्यावरण के लिए बहुत ही अच्छा संदेश जाएगा।
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज में राजनीति विज्ञान विभाग में सहायक प्राध्यापक हैं)
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