सुरपुर के जनजाति राजा वेंकटप्पा, जिन्होंने ब्रिटिश और निजाम की सेना से किया था भीषण युद्ध

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आदित्य भारद्वाज

हैदराबाद के निजाम के पड़ोस में एक छोटा सा राज्य था कर्नाटक का सुरपुर राज्य। उस समय सुरपुर के राजा थे जनजाति समाज से आने वाले वेंकटप्पा। 1857 में पूरे भारत में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल बज चुका था। उत्तर से लेकर दक्षिण तक सभी जगह क्रांति की ज्वाला धधक उठी थी। हर कोई अंग्रेजों की दासता से मुक्ति पाना चाहता था। उसी समय राजा वेंकटप्पा को नाना साहेब पेशवा का एक प्रेरणादायी पत्र एक क्रांतिकारी सैनिक के माध्यम से प्राप्त हुआ। पत्र को पढ़ने के बाद राजा का रोम-रोम मातृभूमि के लिए सबकुछ न्यौछावर करने के लिए उद्वेलित हो उठा। उन्होंने अपनी सेना को तैयार किया और राज्य के युवाओं से आहवान किया कि वे अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए उनके साथ आएं।

वेंकटप्पा ने ब्रिटिश सेना व उनका साथ दे रही निजाम की सेना के साथ भीषण युद्ध किया। चूंकि वेंकटप्पा की सैन्य शक्ति कम थी तो वे युद्ध हार गए और अपने साथियों के साथ भागकर हैदराबाद चले गए। वे हैदराबाद में गुप्त रूप से रहकर अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों में लगे रहे। एक दिन हैदराबाद में घूमते हुए उन्हें निजाम के सैनिकों ने पहचान लिया और वह पकड़े गए। राजा वेंकटप्पा को ब्रिटिश न्यायाधीश के सामने प्रस्तुत किया गया, जहां उन्हें आजीवन कारावास या तो फांसी की सजा सुनाई गई। राजा वेंकटप्पा के एक अंग्रेज अधिकारी टेरर मडस टेलर के साथ मधुर संबंध थे। अंग्रेजों को यह देखकर आश्चर्य हो रहा था कि दक्षिण भारत के एक छोटे से राज्य का जनजाति राजा कैसे अंग्रेजों के साथ इतना भीषण युद्ध कर सकता है। कैसे उसने लोगों को प्रेरित कर अंग्रेजों के साथ इतना भीषण युद्ध लड़ा, जबकि उसके पास संसाधन भी उतने नहीं थे जितने अंग्रेजों के पास थे। ऐसी प्रेरणा उसे कैसे मिली, आगे की उनकी योजनाएं क्या थीं। यह जानने के लिए अंग्रेजों ने टेलर को राजा वेंकटप्पा से मिलने के लिए भेजा।

टेलर से राजा से कहा कि यदि वह क्रांतिकारी गतिविधियों की जानकारी उसे दे दे और ब्रिटिश हुकूमत से माफी मांग ले तो उसकी सजा कम भी हो सकती है यहां तक कि उसे माफ भी किया जा सकता है। इसके उत्तर में राजा वेंकटप्पा ने टेलर से कहा कि “मैं अंग्रेजों से अपने प्राणों की भीख नहीं मांग रहा हूं। मैं स्वप्न में भी अपनी मातृभूमि से धोखा नहीं कर सकता। इसी धरती पर मुझे सुंदर जीवन मिला है। मैं मृत्यु से घबराकर अपनी समझौता करने वाला कायर नहीं, बल्कि उसे सहर्ष स्वीकार करने वाला वीर योद्धा हूं। जब मुझे फांसी दी जाएगी तो आप देखेंगे कि देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी कितने शांत भाव से मृत्यु को गले लगाता है।”

चूंकि टेलर के राजा से मधुर संबंध थे तो उसने राजा को बचाने की भरपूर कोशिश कि अंतत:राजा को आजीवन कारावास की सजा काटने के लिए कालापानी यानी अंडमान भेजने का आदेश दे दिया गया। राजा ने सोचा कि आजीवन जेल की यातना काटने से अच्छा है कि मैं अविलंब मृत्यु को स्वीकार करूं, यह सोचकर उन्होंने पास खड़े अंग्रेज अधिकारी की पिस्तौल छीन ली, स्वयं को गोली मारने से पहले उनके अंतिम शब्द थे कि कारावास के जीवन की अपेक्षा मैं तत्काल मरते हुए अधिक प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूं। यह बोलकर वीर देशभक्त राजा वेंकटप्पा ने अपने सिर में गोली मारकर मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।

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