उत्तराखंड शासन की अपर मुख्य सचिव एक तरफ हर जिले में सरकारी जमीनों पर अवैध अतिक्रमण चिन्हित करने के लिए टास्क फोर्स बनवाती हैं। दूसरी ओर वो अवैध अतिक्रमण को हटाने से रोकने के लिए निर्देशित करती हैं। इस दोहरे मापदंड से इस बात का संकेत मिलता है कि राज्य की सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जा कराने के लिए नौकरशाही संरक्षण दे रही है।
पिछले दो दिनों से जल विद्युत निगम द्वारा किराए पर लिए गए बुलडोजर, वीडियो ग्राफर, विभाग के अधिकारी, कर्मचारी आदि सरकारी जमीन से अवैध कब्जा हटाने के लिए तैयार खड़े हैं, लेकिन उनके पास पुलिस फोर्स नहीं पहुंची है, न ही उन्हें कोई लिखित सूचना दी गई है कि फोर्स नहीं आएगी। इस तरह का अतिक्रमण मुक्त करने का अभियान 2018 में भी शुरू हुआ और दो दिन में नौकरशाही की उदासीनता से फुस्स हो गया।
पछुवा देहरादून में हिमाचल, यूपी, उत्तराखंड बॉर्डर पर उत्तराखंड जल विद्युत निगम की सरकारी जमीन पर 900 से ज्यादा अवैध कब्जेदर परिवार बसे हुए हैं। जिन्हें हटाने के लिए निगम ने कब्जेदारों को नोटिस देते हुए 10 दिन का समय दिया और खुद अतिक्रमण हटाने के लिए कहा था। 10 दिन में अवैध कब्जे तो हटे नहीं, और यहां राजनीतिक, प्रशासनिक खेल शुरू हो गया। कब्जेदारों ने विधायकों के यहां शरण ली और जिलाधिकारी ने अपर मुख्य सचिव के यहां बात की। जानकारी के मुताबिक यहां से अतिक्रमण हटाने के लिए जल विद्युत विभाग ने जिला प्रशासन से फोर्स मांगी थी, किंतु 11 मार्च को फोर्स नहीं मिली। ये बहाना दिया गया कि देहरादून में झंडा मेला लगा है और विधानसभा का सत्र भी चल रहा है। यानी प्रशासन की इच्छा शक्ति यहीं जवाब दे गई।
उल्लेखनीय है कि यूपी में इस तरह के अभियान चलाने से पहले शासन-प्रशासन स्तर पर वर्क आउट प्लान बनाया जाता है। जिसका जिक्र यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मीडिया के सम्मुख हल्द्वानी रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण के मुद्दे पर दिया था। उत्तराखंड में शासन-प्रशासन की इच्छा शक्ति के अभाव और लचर नीति की वजह से लगातार घुसपैठ की घटनाएं बढ़ रही हैं। यहां असम, बांग्लादेश से घुसपैठिए अवैध रूप से आकर बसते जा रहे हैं। हल्द्वानी रेलवे की जमीन, पछुवा देहरादून, वन भूमि पर मजार जिहाद, हरिद्वार में कुंभ क्षेत्र को घेरती अवैध बस्तियां, उधम सिंह नगर जिले में जलाशयों की सरकारी भूमि पर हो रहे अवैध अतिक्रमण जैसे कई मामले हैं, जिस कारण उत्तराखंड के चार मैदानी जिलों में मुस्लिम आबादी इन अवैध कब्जों की वजह से जनसंख्या असंतुलन पैदा कर रही है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सरकारी जमीनों से अवैध कब्जा हटाने की बात तो करते हैं, किंतु उनके नौकरशाह इस मामले में लचर रुख अपनाते हैं। उत्तराखंड पुलिस ने पिछले दिनों बाहरी लोगों के सत्यापन के लिए जो अभियान चलाया था वो भी इसलिए फुस्स साबित हुआ क्योंकि पुलिस ने इसे गंभीरता और योजना बद्ध तरीके से नहीं किया। हाल ही में वन विभाग ने इस बात की पुष्टि की है कि दस हजार हेक्टेयर वन भूमि पर अवैध कब्जा है। सवाल ये उठता है कि ये कब्जा होने किसने दिया? सिंचाई, पीडब्ल्यूडी, जल विद्युत निगम, वन विभाग, राजस्व की बेशकीमती जमीनों पर आखिरकार किसकी शह पर ये कब्जे हुए? यदि नौकरशाही सख्त रहती तो आज उत्तराखंड के हालात ऐसे नहीं होते।
सरकार के पास इच्छा शक्ति नहीं : सैनी
उत्तराखंड सरकार और यहां की लचर शासन व्यवस्था की वजह से मुस्लिम लोग यहां अवैध रूप से बस रहे हैं। वैदिक मिलन संगठन के प्रमुख जयवीर सैनी का कहना है कि नौकरशाह और नेताओं के गठजोड़ से यहां मुस्लिमस्तान बनता जा रहा है। वीर सावरकर संगठन के अध्यक्ष कुलदीप कुमार का कहना है कि अरबों रुपए की जमीन इस वक्त अवैध कब्जे में है, जिसमे कौन लोग आकर बसे हैं? ये सब जानकारी खुफिया विभाग को भी है। उनकी रिपोर्ट शासन को भी जाती है और मुख्यमंत्री कार्यालय में भी, फिर भी व्यवस्था सोई हुई है।
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