आटोमोबाइल की दुनिया में आजकल एक ही खबर चल रही है और वह यह कि आज बाजार में उतारा जाने वाला वाहन ग्राहकों के घरों में एक से डेढ़ साल बाद पहुंच रहा है। यह बात खास तौर पर स्पोट्स युटिलिटी वाहनों पर लागू होती है लेकिन दूसरी श्रेणी के कुछ वाहनों पर भी उतनी ही सटीक बैठती है।
आटोमोबाइल की दुनिया में आजकल एक ही खबर चल रही है और वह यह कि आज बाजार में उतारा जाने वाला वाहन ग्राहकों के घरों में एक से डेढ़ साल बाद पहुंच रहा है। यह बात खास तौर पर स्पोट्स युटिलिटी वाहनों पर लागू होती है लेकिन दूसरी श्रेणी के कुछ वाहनों पर भी उतनी ही सटीक बैठती है। यह स्थिति दो कारणों से अजीब प्रतीत होती है। पहला तो यह कि जब तक वाहन अपने खरीदारों के पास पहुंचेगा, उससे पहले ही वह संस्करण एक-डेढ़ साल पुराना हो चुका होगा और नया मॉडल खरीदने का उत्साह बेमानी हो जाएगा। दूसरी अजीब बात यह है कि वाहनों की डिलीवरी में होने वाली यह देरी आटोमोबाइल कलपुर्जों की कमी या सप्लाई चेन से जुड़ी बाधाओं के कारण नहीं है बल्कि इसके पीछे सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ी एक चीज की कमी जिम्मेदार है। वह है-माइक्रोप्रॉसेसर (चिप) और सेमीकंडक्टर।
भारत ही नहीं, कोविड की महामारी के बाद से दुनिया भर में ‘चिप्स’ की भारी किल्लत चल रही है। आजकल अधिकांश कारों में किसी न किसी तरह की डिजिटल क्षमताएं मौजूद हैं जिनके लिए उनमें माइक्रोप्रॉसेसर्स की जरूरत पड़ती है और माइक्रोप्रॉसेसर्स के लिए सेमीकंडक्टर की। बात कारों तक सीमित नहीं है। हर तरह के डिजिटल और ज्यादातर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में चिप्स या सेमीकंडक्टरों की जरूरत होती है जिनका प्रयोग डायोड, ट्रांजिस्टर, इंटेग्रेटेड सर्किट (आईसी), प्रोसेसर्स आदि के निर्माण में किया जाता है। कंप्यूटर, मोबाइल फोन, कैमरों, टेलीविजन, रेडियो, घड़ी वाहनों, साउंड सिस्टम, माइक्रोफोन आदि के साथ-साथ कीबोर्ड तथा माउस जैसी छोटी-छोटी चीजों में भी चिप्स का इस्तेमाल होता है। इस सूची में अनगिनत मेडिकल उपकरणों, औद्योगिक मशीनों, सोलर पैनलों, पनचक्कियों, एलईडी बल्बों आदि को भी गिना जा सकता है। भले ही आम नागरिक को सेमीकंडक्टरों के बारे में जानकारी ही न हो लेकिन यह आधुनिक दुनिया के सर्वाधिक महत्वपूर्ण कलपुर्जों में से एक है और चिप्स और सेमीकंडक्टरों की भारी किल्लत किसी भी देश के विकास को बाधित कर सकती है।
सन् 2019 में अमेरिका ने चीनी चिप निर्माण कंपनी हुआवे पर प्रतिबंध लगा दिया था। तब अनेक चीनी कंपनियों ने खुद पर प्रतिबंध की आशंका में चिप्स की जमाखोरी शुरू कर दी। अब जबकि दुनिया फिर से पुराने ढर्रे पर आ चुकी है, चिप्स के विनिर्माण और सप्लाई में पैदा हुए बैकलॉग को दूर होने में अभी समय लगेगा। कम से कम इस साल, यानी 2023 के दौरान तो किल्लत बनी रहेगी, ऐसा बहुत से विशेषज्ञों ने कहा है।
आज भी अमेरिका चिप्स और सेमीकंडक्टरों के विनिर्माण में दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है। इन्टेल, एएमडी, क्वालकॉम जैसी कंपनियों के साथ ताइवान, दक्षिण कोरिया, जापान जैसे देशों को भी इस क्षेत्र में बढ़त हासिल है। पिछले कुछ वर्षोें में चीन इस क्षेत्र की अहम ताकत बनकर उभरा है जहां एस.एम.आई.सी. और हुआवे जैसी कंपनियां बड़े पैमाने पर सेमीकंडक्टर का विनिर्माण कर रही हैं। जर्मनी, नीदरलैंड, सिंगापुर और इज्राएल भी इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण दखल रखते हैं। ऐसे में लगता यही है कि इन देशों की सेमीकंडक्टर की जरूरतें तो आसानी से पूरी हो रही होंगी। लेकिन ऐसा नहीं है। खुद अमेरिका आज भी इनकी किल्लत से जूझ रहा है। यही वजह है कि हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पिछले साल 9 अगस्त को चिप्स एंड साइंस एक्ट पर हस्ताक्षर किए थे जिसके तहत वहां घरेलू सेमीकंडक्टर कंपनियों को सरकार की तरफ से 52.7 अरब डॉलर की मदद दी जाएगी। अमेरिका की यह पहल बाइडेन की 2.2 ट्रिलियन डॉलर के आधारभूत विकास की योजना का हिस्सा है जिसके तहत इंटेल समेत कई कंपनियां चिप्स के नए कारखाने स्थापित कर रही हैं।
चिप्स और सेमीकंडक्टरों की विश्वव्यापी किल्लत सन् 2020 से है जब कोविड के कारण समूची दुनिया लॉकडाउन के दौर से गुजर रही थी और ज्यादातर लोग अपने घरों से ही काम कर रहे थे। उस समय लैपटॉप, मोबाइल फोन, टेलीविजन, साउंड सिस्टम जैसे उपकरणों की मांग में भारी वृद्धि हुई जबकि दूसरी तरफ बहुत सारे कारखानों में काम बंद होने के कारण उत्पादन ठप हो गया। इस दौरान वैश्विक स्तर पर वाहनों की मांग में भारी गिरावट आई। नतीजतन, मंदी की आशंका में कार जैसी कंपनियों के साथ ने चिप्स और सेमीकंडक्टरों के आर्डर रद्द कर दिए जिसने विनिर्माण प्रक्रिया को और धीमा कर दिया।
महामारी के कारण दुनिया भर में सामान की सप्लाई का सिलसिला भी टूट गया और अतिरिक्त माल का भंडारण चिप विनिर्माताओं के लिए एक चुनौती बन गया। एक दिलचस्प कारण और रहा। सन् 2019 में अमेरिका ने चीनी चिप निर्माण कंपनी हुआवे पर प्रतिबंध लगा दिया था। तब अनेक चीनी कंपनियों ने खुद पर प्रतिबंध की आशंका में चिप्स की जमाखोरी शुरू कर दी। अब जबकि दुनिया फिर से पुराने ढर्रे पर आ चुकी है, चिप्स के विनिर्माण और सप्लाई में पैदा हुए बैकलॉग को दूर होने में अभी समय लगेगा। कम से कम इस साल, यानी 2023 के दौरान तो किल्लत बनी रहेगी, ऐसा बहुत से विशेषज्ञों ने कहा है।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में ‘निदेशक-भारतीय भाषाएं और
सुगम्यता’ के पद पर कार्यरत हैं)।
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