होली का रंग तो बनारस में जमता था -गिरिजा देवी
May 11, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

होली का रंग तो बनारस में जमता था -गिरिजा देवी

होली के मौके पर होली गायन की बात न चले यह मुमकिन नहीं। जब भी आपको होली, कजरी, चैती याद आएंगी,

by WEB DESK
Mar 7, 2023, 03:11 pm IST
in भारत, उत्तर प्रदेश, साक्षात्कार
गिरिजा देवी

गिरिजा देवी

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

होली के मौके पर होली गायन की बात न चले यह मुमकिन नहीं। जब भी आपको होली, कजरी, चैती याद आएंगी, पहली आवाज जो दिमाग में उभरती है उसका नाम है- गिरिजा देवी।  वे भारतीय संगीत के उन नक्षत्रों में से हैं जिनसे हिन्दुस्थान की सुबहें आबाद और रातें गुलजार रही हैं। उनका ठेठ बनारसी अंदाज। सीधी, खरी और सधुक्कड़ी बातें, लेकिन आवाज में लोच और मिठास। आज वे हमारे बीच नहीं हैं। अब उनके शिष्यों की कतार हिन्दुस्थानी संगीत की मशाल संभाल रही है। गिरिजा देवी से 2015 में पाञ्चजन्य ने होली के अवसर पर लंबी वार्ता की थी। इस होली पर प्रस्तुत है उस वार्ता के खास अंश

होली को लेकर आज भी इतना सम्मोहन क्यों है?
होली हमारी सांस्कृतिक परंपरा की देन है। सबको मिलाकर एक कर देती है, ऐसी ताकत है इसमें। जहां तक होली की बात है तो यह तो पूरे हिन्दुस्थान में मनाई जाती है और दुनिया के तमाम देशों में भी, जहां भारत के लोग रहते हैं। गायन की बात करें तो राधा-कृष्ण की होली तो बहुत लोग गाते हैं, जैसे वृंदावन की होली।

…और काशी की होली!
(जैसे उनकी आंखों में कोई फिल्म चलने लगी हो) हमारी काशी में भी खूब होली मनाई जाती थी। परंपरा ऐसी थी कि महिलाएं घर में पकवान बनाती थीं, और गाना-बजाना भी चलता रहता था। पुरुष सुबह से ही खूब रंग खेलते थे। और फिर शाम को शहनाई बजाते हुए पचासों की तादाद में इकट्ठे होकर दूसरे मोहल्ले में जाते थे होली मिलने। लोग अबीर लगाते थे, गले मिलते थे, हिन्दू-मुसलमान सभी। होली के रंग सबको ऐसा मिला देते थे कि हिन्दू-मुसलमान के बीच फर्क मालूम ही नहीं होता था। अब कुछ तो वातावरण बदला है और कुछ लोगों के पास समय कम है, काम ज्यादा। सबको घर चलाने के लिए पैसे की जरूरत है। उसी के जुगाड़ में लोग खटते रहते हैं। फुर्सत बची ही नहीं। तो इस तरह काशी की जो होली पूरी दुनिया में मशहूर हुआ करती थी, उसमें अब बहुत कमी आ गई है।

बदलाव क्या आया है होली मनाने में?
अब बड़े लोग अपने घरों में ही होली खेलते हैं, या फिर अपने दोस्तों-रिश्तेदारों के यहां चले जाते हैं होली खेलने। लेकिन उस समय तो हलवाई लोग, कहार लोग, तमाम छोटे-छोटे काम-धंधों में लगे लोग भी समाज के जाने-माने, बड़े और ओहदेदार लोगों के साथ होली खेलते थे। छोटे-बड़े का कोई फर्क नहीं होता था। कौन पैसे वाला है, कौन कम पैसेवाला, कौन बड़े पद पर है, कौन कम पढ़ा-लिखा सफाई या धोबी का काम करने वाला… सब एक-दूसरे को होली के रंग में ऐसा रंगते थे कि पूछिए मत। ऐसा खुशी और जोश का माहौल होता था होली पर। तब ओहदे, जात-बिरादरी का कोई फासला नहीं था। लेकिन पिछले कई सालों से यह सब कम होते-होते अब तो यह होली का माहौल न के बराबर तक पहुंच गया है। समय भी अब नहीं रहा किसी के पास, क्या बच्चे, क्या बड़े। बच्चों पर भी पढ़ाई का बहुत बोझ है। हर कोई इंजीनियर, मैनेजर बनने के लिए बेचैन है। वो भी क्या करें। ढंग की नौकरी नहीं मिली तो जिंदगी कैसे काट पाएंगे आज के माहौल में। घर चलाना कितना मुश्किल हो गया है।

होली जो है, वह धमार को बोलते है- ध्रुपद धमार। धमार में होली के ही शब्द रहते हैं सब। वो लयकारी और तबले-मृदंग के साथ होती है। उसमें तिहाइयां बहुत बड़ी-बड़ी बनती हैं। लेकिन अब होली के कई और रंग भी आए हैं। वृंदावन में जो लोग गाते हैं, उसे डफ की होली कहते हैं, क्योंकि वे उसे डफ बजाकर गाते हैं। कीर्तन में होली हो गई है। ठुमरी होली है। चैती होली गाते हैं बनारस में। बनारस में कुछ अनूठा, अलग ही रंग है होली में। तो हम जो देखे हैं, सुने हैं, वही हम अपने शागिर्दों को और बच्चों को बताते हैं।

काशी के संगीतज्ञों और कलाकारों की होली भी मशहूर रही है?
संगीतज्ञों की भी होली ऐसी ही होती थी। वो सबसे मिलते-जुलते थे। रंग चलता रहता था। खूब गाना-बजाना होता था। पर वे बाहर नहीं गाते थे होली। बनारस तो गलियों का ही शहर है। तो यहां गली जो हैं, लगभग हर गली में किसी न किसी संगीतज्ञ का घर होता है। वहीं वे खूब गाते थे और लोग भी उनसे मिलने आते-जाते रहते थे। क्या महफिल सजती थी? एक से एक बड़े कलाकार। आज तो आपको सिर्फ याद ही दिला सकती हूं लेकिन मेरी आंखों के आगे तो वह पूरा दृश्य खिंचा हुआ है, जब काशी में गली-गली होली गाई जाती थी।
हां, हमारी काशी में होलिका जलने के बाद से ही महिलाओं का घर से बाहर निकलना बंद हो जाता था। तो बाहर पुरुष लोग ही होली गाते थे, और वैसे ही फाग भी।

आप तो भारतीय संगीत की धरोहर के तौर पर जानी जाती हैं। कजरी, चैती जैसी तमाम विधाओं में होली गायन की क्या खासियत है?
होली जो है, वह धमार को बोलते है- ध्रुपद धमार। धमार में होली के ही शब्द रहते हैं सब। वो लयकारी और तबले-मृदंग के साथ होती है। उसमें तिहाइयां बहुत बड़ी-बड़ी बनती हैं। लेकिन अब होली के कई और रंग भी आए हैं। वृंदावन में जो लोग गाते हैं, उसे डफ की होली कहते हैं, क्योंकि वे उसे डफ बजाकर गाते हैं। कीर्तन में होली हो गई है। ठुमरी होली है। चैती होली गाते हैं बनारस में। बनारस में कुछ अनूठा, अलग ही रंग है होली में। तो हम जो देखे हैं, सुने हैं, वही हम अपने शागिर्दों को और बच्चों को बताते हैं।

समय के साथ क्या कुछ बदला है?
अब समय नहीं रहा किसी के पास कि फुर्सत से सुन सके। तो बस आधे घंटे में जैसे-तैसे निपटाना पड़ता है। इन विधाओं को बचाने के लिए कुछ किया जाना चाहिए। संगीत के गुणी लोग और संगीतप्रेमी आगे आएं, छोटी-छोटी कमेटियां बनें, फिर उनकी एक बड़ी कमेटी हो। इस तरह से संगीत की तमाम विधाओं को, जो सैकड़ों साल से हमारी परंपरा रही हैं, बचाया जा सकता है।

आज इसकी क्या उपयोगिता है?
आज ही तो इसकी सबसे ज्यादा उपयोगिता है। लोग जितने तनाव में हैं, निराशा में हैं, उन्हें हिन्दुस्थानी संगीत ही मिटा सकता है। परिवार खुशहाल हो सकते हैं, लोग अपना काम और अच्छे से कर सकते हैं। बीमारी कम होगी।

Topics: HoliMusicians of KashiHoliहोलीMusicians of Kashiकजरीचैती यादगिरिजा देवीभारतीय संगीतकाशी के संगीतज्ञKajriChaiti YaadGirija DeviIndian Music
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

रंग पंचमी

‘गेर यात्रा’ से ‘धुलिवंदन’ तक, रंगों का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संगम, जब देवता भी धरती पर खेलते हैं रंगों की होली

प्रतीकात्मक चित्र

मेरठ IIMT विश्वविद्यालय में होली पर नमाज मामले में खालिद प्रधान गिरफ्तार, 3 सुरक्षाकर्मी सस्पेंड

होली

होली के रंग, लोक संस्कृति के संग : होली के रंगों के पीछे छिपे अनगिनत रंग

समरसता का प्रतीक पर्व

होली के उल्लास में भारतीय सेना के जवान

भारतीय सेना में होली समारोह: क्यों खास है यह त्योहार, सेना के अधिकारी ने बताया आंखों देखा हाल

Holi 2025

होली को लेकर यूपी में अलर्ट, संभल समेत कई शहरों में ढकी गई मस्जिदें, नमाज का समय बदला, ड्रोन रख रहा नजर

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

स्वामी विवेकानंद

इंदौर में स्वामी विवेकानंद की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी स्थापित, मुख्यमंत्री मोहन यादव ने किया भूमिपूजन

भारत की सख्त चेतावनी, संघर्ष विराम तोड़ा तो देंगे कड़ा जवाब, ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान के 3 एयर डिफेंस सिस्टम ध्वस्त

Operation sindoor

थल सेनाध्यक्ष ने शीर्ष सैन्य कमांडरों के साथ पश्चिमी सीमाओं की मौजूदा सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की

राष्ट्र हित में प्रसारित हो संवाद : मुकुल कानितकर

Jammu kashmir terrorist attack

जम्मू-कश्मीर में 20 से अधिक स्थानों पर छापा, स्लीपर सेल का भंडाफोड़

उत्तराखंड : सीमा पर पहुंचे सीएम धामी, कहा- हमारी सीमाएं अभेद हैं, दुश्मन को करारा जवाब मिला

Operation sindoor

अविचल संकल्प, निर्णायक प्रतिकार : भारतीय सेना ने जारी किया Video, डीजीएमओ बैठक से पहले बड़ा संदेश

पद्मश्री वैज्ञानिक अय्यप्पन का कावेरी नदी में तैरता मिला शव, 7 मई से थे लापता

प्रतीकात्मक तस्वीर

घर वापसी: इस्लाम त्यागकर अपनाया सनातन धर्म, घर वापसी कर नाम रखा “सिंदूर”

पाकिस्तानी हमले में मलबा बनी इमारत

‘आपरेशन सिंदूर’: दुस्साहस को किया चित

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies