उच्च तकनीकी से लैस एक थिएटर भी बनाया गया है जहां लोगों को दिन में चार बार एक डाक्यूमेंट्री और नृत्य नाटिका दिखाई जाती है।
गत दिनों फरवरी को कोल्हापुर स्थित श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ (कनेरी मठ) में पंचमहाभूत लोकोत्सव का शुभारंभ हुआ। उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निवर्तमान सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी ने की, वहीं सान्निध्य मिला मठ के 49वें मठाधिपति स्वामी अदृश्य काडसिद्धेश्वर जी का। यह लोकोत्सव पर्यावरण से जुड़ा एक सामाजिक आयोजन है, जिसमें आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी नामक पंचमहाभूतों द्वारा जनसाधारण का जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे पर प्रबोधन किया जा रहा है।
लोकोत्सव में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार पर्यावरण के मुद्दे को लेकर बहुत गंभीर है और जल्दी ही यहां एक प्रयोग के तौर पर 25 लाख हेक्टेयर कृषिभूमि में प्राकृतिक खेती शुरू की जाएगी। उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने उद्बोधन में संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिकों द्वारा दी गई उस चेतावनी का उल्लेख किया जिसमें कहा गया है कि यदि 2030 तक यथोचित कदम नहीं उठाए गए तो पूरी धरती पर मानव सभ्यता खतरे में पड़ जाएगी। स्वामी अदृश्य काडसिद्धेश्वर ने लोकोत्सव की पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए बताया कि इसके आयोजन में उन्हें सरकार और समाज का भरपूर सहयोग मिला है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि आज पर्यावरण जिस चिंताजनक स्थिति में है, उसे देखते हुए इसे ठीक करने का काम केवल सरकारों का ही नहीं है। इस दिशा में समाज और प्रत्येक व्यक्ति को भी लगना होगा। हम अपनी जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलाव ला इस समस्या से निपटने में अपना योगदान कर सकते हैं। अपने अध्यक्षीय संबोधन में श्री भैया जी जोशी ने कहा कि श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ ने इस लोकोत्सव के माध्यम से पूरे देश के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है जिस पर हम सबको मिलकर काम करने की जरूरत है।
पंचमहाभूत लोकोत्सव का आयोजन कुल सात दिन का है। एक अनुमान के अनुसार इस बीच यहां महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा और देश के अन्य राज्यों से लगभग 30 लाख लोग आएंगे।
जलवायु परिवर्तन और बढ़ते वैश्विक तापमान से परिचित कराने का यह अब तक का सबसे अनोखा प्रयास है। इसकी तैयारी में महाराष्ट्र सरकार और समाज ने जिस तरह मिलकर काम किया है, वह अपने आप में विशेष है। इससे एक भरोसा पैदा होता है कि मानव जाति जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान की समस्या का समय रहते कोई न कोई निदान अवश्य ढूंढ लेगी।
लगभग 650 एकड़ में फैले इस लोकोत्सव की विशालता चकित करने वाली है। इसकी रचना मूलत: तीन हिस्सों में की गई है- सम्मेलन, प्रदर्शनी और क्रियान्वयन। एक ओर जहां देश भर से आए विशेषज्ञ और अनुभवी लोग जनता के सामने अपनी बात रख रहे हैं, वहीं सभी पंच तत्वों पर बनी आकर्षक प्रदर्शनियों के माध्यम से लोगों को पर्यावरण से जुड़े विविध पहलुओं की जानकारी दी जा रही है। यहां उच्च तकनीकी से लैस एक थिएटर भी बनाया गया है जहां लोगों को दिन में चार बार एक डाक्यूमेंट्री और नृत्य नाटिका दिखाई जाती है।
पूरे आयोजन का स्वरूप एक लोकोत्सव अर्थात् एक मेले का है, इसलिए यहां मनोरंजन, वस्तुओं के क्रय-विक्रय के साथ-साथ जनजीवन से जुड़ी कई और बातों का भी समावेश किया गया है। आयोजन का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है क्रियान्वयन। इसके अंतर्गत लोगों को कई छोटे-छोटे काम बताए जा रहे हैं जिन्हें वे सहजता से अपने घर जाकर कर सकें।
सच कहें तो जनसाधारण को जलवायु परिवर्तन और बढ़ते वैश्विक तापमान से परिचित कराने का यह अब तक का सबसे अनोखा प्रयास है। इसकी तैयारी में महाराष्ट्र सरकार और समाज ने जिस तरह मिलकर काम किया है, वह अपने आप में विशेष है। इससे एक भरोसा पैदा होता है कि मानव जाति जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान की समस्या का समय रहते कोई न कोई निदान अवश्य ढूंढ लेगी।
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