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लुभाती क्यों नहीं साहित्यिक संस्थाओं की वेबसाइट?

साहित्यिक संस्थाओं की वेबसाइट बदलते समय के अनुरूप नहीं हैं। अधिकांश वेबसाइट के तो मोबाइल संस्करण भी अनुपलब्ध

by बालेन्दु शर्मा दाधीच
Mar 3, 2023, 06:19 pm IST
in भारत, विज्ञान और तकनीक
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इंटरनेट तथा अन्य डिजिटल माध्यम साहित्य सृजन, संरक्षण और प्रसार के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि समय बदल चुका है। वह संस्थाओं, लेखकों और पाठकों के लिए भी महत्वपूर्ण है।

भारत में अनेक साहित्यिक संस्थाओं ने वेबसाइट के माध्यम से इंटरनेट पर उपस्थिति दर्ज की हुई है। इनमें साहित्य अकादमी (दिल्ली), हिंदी अकादमी- दिल्ली, भारतीय ज्ञानपीठ (दिल्ली), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान (लखनऊ), राजस्थान साहित्य अकादमी (उदयपुर), राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी (जयपुर), मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी (भोपाल), कालिदास संस्कृत अकादमी (उज्जैन) आदि शामिल हैं। इन वेबसाइट के डिजाइन और विषय-वस्तु का स्तर अलग-अलग है।

कुछ वेबसाइट का कलेवर ठीक-ठाक है और उस पर पढ़ने-जानने के लिए पर्याप्त सामग्री मौजूद है। लेकिन कुछ के डिजाइन पुराने हैं जो आज के कंप्यूटरों की स्क्रीन के आकार, उनमें पिक्सल्स की गहनता (स्क्रीन रिजोल्यूशन) तथा ऊंचाई-चौड़ाई के अनुपात के लिहाज से अद्यतन नहीं हैं। किसी साहित्यिक संस्था की वेबसाइट बहुत आकर्षक और प्रभावशाली हो, ऐसा नहीं लगा। हालांकि इनमें से अनेक में संस्थाओं की पृष्ठभूमि, उनकी गतिविधियों का विवरण, उनके द्वारा प्रकाशित पुस्तकें व पत्रिकाए आदि उपलब्ध हैं, जो प्रशंसनीय है। लेकिन अधिकांश वेबसाइट के मोबाइल संस्करण उपलब्ध नहीं हैं और मूल वेबसाइट ही मोबाइल फोन पर दिखती है जो स्क्रीन का ओरिएंटेशन (क्षैतिज नहीं, बल्कि लंबवत्) अलग होने के कारण सुविधाजनक नहीं है।

गैर-सरकारी तथा गैर-अकादमिक स्तर पर चलाई जाने वाली संस्थाओं की वेबसाइट भी बहुत आधुनिक या आकर्षक नहीं दिखतीं। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की टीम ने अपनी वेबसाइट पर अच्छा काम किया है। अन्यथा जश्न-ए-रेख्ता (दिल्ली) से जुड़ी वेबसाइट हो या वैली आफ वडर््स (देहरादून), इनकी विशेष प्रभावित करने वाली इंटरनेट उपस्थिति दिखाई नहीं देती।

जिस बड़े पैमाने पर इन संस्थाओं के साहित्यिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है, उनकी जितनी लोकप्रियता तथा भागीदारी है और जितने बड़े पैमाने पर संसाधन इन आयोजनों में प्रयुक्त होते हैं, उस लिहाज से इनके इंटरनेट ठिकानों को और बेहतर होना चाहिए था। माना कि भौतिक गतिविधियों की प्रासंगिकता तथा उपयोगिता आज भी है, किंतु वर्चुअल माध्यम आपको विस्तार देते हैं। वे समय तथा भूगोल जैसी सीमाओं से बाहर निकलकर अधिकाधिक पाठकों, दर्शकों तथा रसिकों तक पहुंचने का अवसर देते हैं।

फेसबुक की तुलना में ट्विटर पर की जाने वाली टिप्पणियों का वजन ज्यादा माना जाता है, क्योंकि मीडिया तथा लोगों की दृष्टि में वह एक अधिक औपचारिक माध्यम है। लिंक्डइन पारंपरिक रूप से साहित्यिक सामग्री के लिए विशेष जगह नहीं मानी जाती, क्योंकि उसका उद्देश्य नियोक्ताओं तथा नियुक्ति के इच्छुक लोगों को जोड़ना है।

इन संस्थाओं के कार्यक्रमों में शामिल न हो सकने वाले लोगों के लिए इंटरनेट पर मौजूद सामग्री कितनी उपयोगी होगी, इसका अनुमान सरलता से लगाया जा सकता है। संस्थाओं का मूलभूत उद्देश्य भी साहित्य, कला आदि को लोकप्रिय बनाना, रचनात्मकता को प्रोत्साहित करना, रचनाकारों व रचना-प्रेमियों के बीच सेतु का काम करना, रचनात्मक धरोहर को सुरक्षित करना तथा रचनाओं के सृजन का माध्यम बनना है। वर्चुअल माध्यम इन सभी उद्देश्यों को अर्जित करने में ठोस योगदान दे सकते हैं।

आज सोशल मीडिया का प्रयोग एक अनिवार्यता है। फेसबुक की अहमियत इसलिए है, क्योंकि वहां करोड़ों की संख्या में आम भारतीय मौजूद हैं। यदि हम आम पाठक के बीच साहित्यिक अभिरुचि का बीज बोना चाहते हैं तो वह एक अच्छी जगह है। अच्छी सामग्री देने वाले और अच्छे व प्रतिष्ठित संस्थानों के लिए फेसबुक पर लोकप्रियता अर्जित करना कठिन नहीं है। ट्विटर आपके आधिकारिक माध्यम की भूमिका निभाता है, जिसका प्रयोग अकादमियों तथा अन्य साहित्यिक संस्थाओं द्वारा घोषणाएं करने, सूचनाएं देने, कार्यक्रमों को प्रचारित करने, महत्वपूर्ण दिवसों पर संदेश प्रसारित करने आदि के लिए किया जा सकता है।

फेसबुक की तुलना में ट्विटर पर की जाने वाली टिप्पणियों का वजन ज्यादा माना जाता है, क्योंकि मीडिया तथा लोगों की दृष्टि में वह एक अधिक औपचारिक माध्यम है। लिंक्डइन पारंपरिक रूप से साहित्यिक सामग्री के लिए विशेष जगह नहीं मानी जाती, क्योंकि उसका उद्देश्य नियोक्ताओं तथा नियुक्ति के इच्छुक लोगों को जोड़ना है। किंतु अब वहां भी स्थितियां बदल गई हैं और अगर आप पेशेवर वर्ग के बीच अपने न्यूजलेटर भेजना चाहें, चर्चाएं आयोजित करना चाहें, तो वह भी एक अच्छा ठिकाना है। इंस्टाग्राम चित्रों तथा वीडियो को प्रसारित करने के लिए जाना जाता है। हालांकि वहां सेलिब्रिटीज के चर्चे रहते हैं, लेकिन गंभीर कार्यों के लिए उसका प्रयोग किया जा सकता है। आज भारत के युवाओं के बीच इंस्टाग्राम अत्यंत लोकप्रिय है, भले ही 35 से अधिक उम्र के लोग उसके साथ उतने सहज नहीं हैं।

इंटरनेट तथा अन्य डिजिटल माध्यम साहित्य सृजन, संरक्षण और प्रसार के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि समय बदल चुका है। वह संस्थाओं, लेखकों और पाठकों के लिए भी महत्वपूर्ण है। हम इस सहज, सुलभ, सस्ते और शक्तिशाली मंच का कितना प्रयोग अपने उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए करें, उसका निर्णय हमारे ही हाथ में है। प्रौद्योगिकी तो साथ है ही।
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट में निदेशक- भारतीय भाषाएं और सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं)

Topics: साहित्यिक उत्सवसेलिब्रिटीज के चर्चेसोशल मीडियाजयपुर लिटरेचर फेस्टिवलsocial mediaSahitya AkademiफेसबुकLiterary FestivalइंटरनेटCelebrity DiscussionsInternetJaipur Literature Festivalfacebookdigitalडिजिटलसाहित्य अकादमी
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