स्वामी विशुद्धानंद महाराज, जिन्होंने चारधाम यात्रा मार्ग पर चट्टी धर्मशालाओं का करवाया था निर्माण
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स्वामी विशुद्धानंद महाराज, जिन्होंने चारधाम यात्रा मार्ग पर चट्टी धर्मशालाओं का करवाया था निर्माण

स्वामी विशुद्धानंद महाराज ने मात्र 32 वर्ष की आयु में स्वामी शंकरानंद से ली थी संन्यास दीक्षा

by उत्तराखंड ब्यूरो
Feb 27, 2023, 12:58 pm IST
in उत्तराखंड
स्वामी विशुद्धानंद महाराज(फाइल फोटो)

स्वामी विशुद्धानंद महाराज(फाइल फोटो)

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भारत के सांस्कृतिक इतिहास की विरासत को संजोकर रखने में उत्तराखंड राज्य का योगदान किसी भी दृष्टि से कम नहीं है। भारत के उत्तर दिशा में स्थित सुदूर विकट भौगोलिक परिस्थितियों वाले पहाड़ी राज्य का नाम है उत्तराखण्ड। उत्तराखण्ड राज्य को अनेकों महान विभूतियों ने अपनी कर्मस्थली बनाया जो आध्यात्मिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, पर्यावरण संरक्षण, कला, साहित्य, आर्थिक, देश की रक्षा एवं सुरक्षा जैसे अनेकों महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विश्वप्रसिद्ध हुए हैं। देश की इन्हीं महान विभूतियों की कतार में स्थान प्राप्त करने वाली सुप्रसिद्ध हस्तियों में सबसे चर्चित, विख्यात और प्रतिष्ठित नाम स्वामी विशुद्धानंद महाराज अर्थात काली कमली वाले बाबा का आता है। काली कमली वाले बाबा को उत्तराखंड में चार धाम यात्रा के तीर्थ यात्रियों के लिए सुगम रास्ते और रास्तों पर धर्मशालाओं के निर्माण के लिए विशेष तौर पर याद किया जाता है।

स्वामी विशुद्धानंद महाराज का जन्म सन 1831 में तत्कालिक अविभाजित भारत वर्तमान पाकिस्तान स्थित गुजरांवाला क्षेत्र के कोंकणा नामक गांव में हुआ था। उनका परिवार भिल्लङ्गन शैव सम्प्रदाय में आस्था और सम्बंध रखने के कारण भगवान शिव की तरह काला कम्बल धारण किया करता था। विशुद्धानंद एक समय जब पहली बार हरिद्वार आये तो इनके मन में सन्यासी बनने की इच्छा बलवती हो गयी थी। उन्होंने अपने घरवालों के समक्ष अपनी यह इच्छा प्रकट की तो परिवार ने संन्यास की अनुमति नहीं दी, लेकिन इसके कुछ समय बाद वह बनारस पहुंच गए और वहां पर स्वामी शंकरानंद से मात्र 32 वर्ष की आयु में संन्यास दीक्षा लेकर वह स्वामी विशुद्धानंद महाराज बन गए थे।

स्वामी विशुद्धानंद महाराज एक दिन अपने गुरुदेव से आज्ञा लेकर उत्तराखण्ड की चार धाम यात्रा के लिए निकल पड़े। यात्रा के समय उन्होंने देखा कि तीर्थयात्रियों और साधु-संतों आदि के भोजन, पेयजल, आवास और चिकित्सा की कोई सुविधा नहीं है। उक्त कारणों से पर्वतीय तीर्थयात्रा और भी ज्यादा कठिन हो जाती है। उन्हें तीर्थयात्रियों की कठिन यात्रा में आने वाली परेशानियों का अहसास हुआ। बाबा को उत्तराखंड से विशेष लगाव था, उन्होंने उत्तराखंड के तीर्थों के महत्व को समझा था। उन्होंने स्वयं हिमालयी क्षेत्र की तीर्थयात्रा में आने वाली कठिनाइयों को महसूस किया था। तब बाबा के मन में आया कि जो साधु-महात्मा और यात्री चारों धामों की यात्रा पर आते हैं, उनके लिए जीवन समर्पित किया जाना चाहिए। बाबा ने तीर्थयात्रा मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने देशभर के धार्मिक लोगों से तीर्थयात्रा मार्ग के लिए संसाधन जुटाने का आह्वान किया। बाबा की प्रेरणा से चारधाम यात्रियों के लिए सुविधाएं और साधन जुटने शुरू हो गए।

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ऋषिकेश से चारधाम पैदल यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए गंगा तट के पास सन 1880 में सबसे प्रथम बार प्याऊ की व्यवस्था बाबा काली कमली उर्फ स्वामी विशुद्धानन्द महाराज ने की थी। कुछ वर्षों के पश्चात बाबा ने हरिद्वार से लेकर उत्तराखंड के चारों धामों तक प्रत्येक 9 मील की दूरी पर पैदल यात्रियों के लिए एक चट्टी का निर्माण करवाया, जहां श्रद्धालुओं को फ्री में कच्चा राशन मिलता था। इस भोजन राशन को यात्री स्वयं पकाकर खाते थे और विश्राम कर आगे की यात्रा शुरू करते थे। कालान्तर काली कमली के नाम पर हिमालयी नदियों पर पुलों का निर्माण किया जाने लगा था। सन 1937 में उन्होंने ऋषिकेश में धार्मिक व परोपकारिणी संस्था “काली कमली वाला पंचायत क्षेत्र” की स्थापना की थी। इस पंचायत क्षेत्र द्वारा तत्कालिक समय से वर्तमान समय तक ऋषिकेश, उत्तरकाशी, बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, प्रयागराज आदि स्थानों पर प्रतिदिन हजारों जरुरतमंदों को भोजन कराया जाता है।

उक्त धार्मिक संस्था द्वारा ऋषिकेश व रामनगर में विद्यालयों का पूर्ण संचालन भी किया जाता है। यहां छात्रों के भोजन व आवास की निशुल्क व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त आश्रम, सत्संग भवन, पुस्तकालय, गौशाला आदि का संचालन किया जाता है। संस्था के अथक–पवित्र प्रयास से ही ऋषिकेश में रेलमार्ग का निर्माण, लक्ष्मण झूला पुल का पुर्ननिर्माण भी कराया गया था। तीर्थयात्रा मार्गों पर तीर्थयात्रियों के लिए जगह–जगह धर्मशाला और प्याऊ बनवाए गए थे। तीर्थयात्रियों के लिए यात्रा के मुख्य पड़ावों पर काली कमली धर्मशाला की शुरुआत की गई थी। स्वामी विशुद्धानंद महाराज अर्थात काली कमली वाले बाबा ने निरंतर 33 वर्षों तक तीर्थयात्रियों की सेवा की थी। सन 1953 में स्वामी विशुद्धानंद महाराज हिमालय की तीर्थ यात्रा पर निकले उसके बाद कभी दिखाई नही दिए थे।

बाबा काली कमली वाले के पश्चात संस्था के उत्तराधिकारी बाबा रामनाथ हुए थे। बाबा रामनाथ के बाद इस संस्था के उत्तराधिकारी बाबा मनीराम को बनाया गया था, उन्होंने इस संस्था को पंजीकृत करके इसका ट्रस्ट बना दिया था। बाबा काली कमली वाला पंचायती क्षेत्र ऋषिकेश की सबसे बड़ी संस्था है। वर्तमान में इस संस्था द्वारा लगभग 40 स्थानों पर प्रतिदिन साधु महात्माओं के लिए तथा 2000 व्यक्तियों के लिए भोजन और वस्त्र आदि का दान किया जाता है। वर्तमान में चारधाम यात्रा के सभी रास्तों पर 17 मुख्य काली कमली धर्मशाला हैं, इसके अतिरिक्त 9 मील की दूरी पर स्थित चट्टियां अभी भी अस्तित्व में हैं। चट्टियों में निशुल्क अन्नक्षेत्र की व्यवस्था रहती है। ऋषिकेश में दो कुष्ठ आश्रमों के लिए निरंतर अन्नदान की व्यवस्था रहती है। संस्था के माध्यम से गोशालाओं की स्थापना, अपाहिज गायों की प्राण रक्षा के निरंतर कार्य किया जाता है। संस्था ने ऋषिकेश में पुस्तकालय, वाचनालय, संस्कृत विद्यालय, सत्संग भवन, अनाथालय, आत्मविज्ञान भवन के साथ 85 धर्मशालाओं का निर्माण किया है। एक प्याऊ के साथ शुरू हुआ बाबा काली कमली का सार्थक प्रयास आज एक बड़े वट वृक्ष की तरह फैल गया है।

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