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यूरोपीय सांसदों ने उठाई आवाज, चीन के चंगुल से तिब्बत हो आजाद

सांसदों का यह समूह कोशिश करेगा कि चीन के नेताओं और लोगों के लिए "वास्तविक और सार्थक स्वायत्तता" सुनिश्चित करने के लिए चीनी नेतृत्व और दलाई लामा के प्रतिनिधियों के बीच वार्ता शुरू हो

by WEB DESK
Feb 22, 2023, 12:00 pm IST
in विश्व
प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

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तिब्बत के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम ने दुनियाभर के आजादी पसंद मानवाधिकारकर्मियों और राजनेताओं का ध्यान खींचा है। चीन जिस तिब्बत को अपने शिकंजे में जकड़े बैठा है और जिसे हान जाति के चीनियों से लगभग पाट चुका है उस तिब्बत की आजादी के लिए यूरोप में एक सशक्त आवाज उठी है। बौद्ध धर्म को तिब्बत से जड़मूल से खत्म करने पर आमादा बीजिंग की कम्युनिस्ट सत्ता के सामने इस आवाज को एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है।

हुआ यूं है कि कल मैड्रिड, स्पेन में यूरोपीय अनुसंधान परिषद (ईआरसी) की अगुआई में भिन्न विचारधाराओं वाले तीस सांसद एक मंच पर आए हैं और उनका एजेंडा एक ही है— चीन के चंगुल से तिब्बत को छुड़ाना। इस अंतरसंसदीय समूह ने तिब्बत की स्वायत्तता बनाए रखने के लिए जुट जाने का संकल्प लिया है। इस बाबत यूरोप प्रेस ने समाचार प्रकाशित करके जानकारी दी है।

समूह में परमपावन दलाई लामा तथा केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के प्रतिनिधि रिगजिन जेनखांग, स्पेन में बसे तिब्बती समाज के अध्यक्ष रिनजिंग डोलमा और निर्वासित तिब्बती संसद के दो सदस्य शामिल किए गए हैं।

आज इस अंतरसंसदीय गुट के गठन की औपचारिक घोषणा होने की उम्मीद है। जानकारों का मानना है कि यह समूह तिब्बतियों के लिए एक उम्मीद जगाने वाला साबित हो सकता है। यह कोशिश करेगा कि चीन के नेताओं और लोगों के लिए “वास्तविक और सार्थक स्वायत्तता” सुनिश्चित करने के लिए चीनी नेतृत्व और दलाई लामा के प्रतिनिधियों के बीच किसी निर्णायक वार्ता की लीक पड़े और तिब्बत की स्वायतत्ता बहाल हो। इसके लिए सांसदों का यह गुट दुनियाभर से समविचारी लोगों का समर्थन प्राप्त करने की कोशिश करेगा।

चीन जिस तिब्बत को अपने शिकंजे में जकड़े बैठा है और जिसे हान जाति के चीनियों से लगभग पाट चुका है उस तिब्बत की आजादी के लिए यूरोप में एक सशक्त आवाज उठी है।

1959 में तिब्बत पर चीन के जबरन कब्जे से पहले यह एक हज़ार साल से एक स्वतंत्र देश रहा है। 50 के दशक में चीन ने इस पर अपनी शैतानी नजर डालना शुरू किया और धीरे धीरे वहां से बौद्धों को पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया। तभी से परमपावन दलाई लामा ने भारत में शरण ली हुई है। हिमाचल में धर्मशाला से तिब्बती बौद्धों के लिए उनकी समानांतर सरकार चलती है।

चीन के तिब्बत पर हमला करके आज की तारीख में सब कुछ अपने अधिकार में ले लिया है। इसीलिए बीजिंग इस गुट के गठन को लेकर सशंकित बताया जा रहा है। वह तथ्यों को गलत तरीके से न पेश करे, इसके लिए सांसदों के इस समूह को अंतरराष्ट्रीय समर्थन की जरूरत है। यही वजह है कि समूह में परमपावन दलाई लामा तथा केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के प्रतिनिधि रिगजिन जेनखांग, स्पेन में बसे तिब्बती समाज के अध्यक्ष रिनजिंग डोलमा और निर्वासित तिब्बती संसद के दो सदस्य शामिल किए गए हैं। ये हैं थुब्तेन वांगचेन तथा थुब्तेन ग्यात्सो।

इतना ही नहीं, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सिंक्योंग, पेंपा त्सेरिंग का विशेष संदेश इस समूह में रखा जाएगा। समूह के संगठकों का कहना है कि इसका एक ही मकसद है, तिब्बतियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना, उसे समर्थन देना। तिब्बत में बौद्धों के आहत मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ना और उनकी स्थिति में सुधार लाने के लिए कोशिश करना। समूह का प्रयास होगा कि भारत में धर्मशाला से संचालित निर्वासित केंद्रीय तिब्बती प्रशासन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाई जाए।

कहना न होगा कि तिब्बत में चीन जिस प्रकार मानवाधिकारों का दमन कर रहा है और बौद्ध धर्म और दलाई लामा परंपरा को धूल में मिला देने के मंसूबे पाले बैठा है, उस संदर्भ में यह अंतरसंसदीय समूह एक प्रभावी भूमिका निभा सकता है। दुनियाभर के मानवाधिकार समूहों और नेताओं को इस प्रयास के प्रति अपना पूरा समर्थन व्यक्त करने के लिए आगे आना होगा।

Topics: मानवाधिकारबीजिंगचीनxibeijingतिब्बतhumanrightssenatorstibetgroupbodhfreeIndiadalailamaChinamadridjinpingspainindependence
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