नई दिल्ली। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को दिल्ली के मेजर ध्यान चंद राष्ट्रीय स्टेडियम में ‘आदि महोत्सव’ का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज को लेकर देश जिस गौरव के साथ आगे बढ़ रहा है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। आज भारत विश्व को बताता है कि अगर आपको जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसी चुनौतियों का समाधान चाहिए तो जनजातियों की जीवन परंपरा देख लीजिए, आपको रास्ता मिल जाएगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि 21वीं सदी का नया भारत ‘सबका साथ सबका विकास’ के दर्शन पर काम कर रहा है। सरकार उन लोगों तक पहुंचने का प्रयास कर रही है, जिनसे लंबे समय से संपर्क नहीं हो पाया है। जनजातीय इलाकों में बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया जा रहा है और देश के हजारों गांव जो पहले वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित थे, उन्हें 4जी कनेक्टिविटी से जोड़ा जा रहा है। जनजातीय क्षेत्रों के युवा अब इंटरनेट और इंफ्रास्ट्रक्चर के जरिए मुख्य धारा से जुड़ रहे हैं।
जनजातीय समाज के बच्चे देश के किसी भी कोने में हों, उनकी शिक्षा और उनका भविष्य भाजपा सरकार की प्राथमिकता है। 2004 से 2014 के बीच केवल 90 ‘एकलव्य स्कूल’ खोले गए, जबकि 2014 से 2022 तक हमारी सरकार ने देश भर में 500 से अधिक ‘एकलव्य स्कूल’ को मंजूरी दी। इनमें से 400 से ज्यादा स्कूलों में पढ़ाई शुरू भी हो चुकी है और एक लाख से ज्यादा जनजातीय छात्र इन स्कूलों में पढ़ाई भी करने लगे हैं।
भाषा की बाधा खत्म
प्रधानमंत्री ने कहा कि जनजातीय युवाओं को भाषा की बाधा के कारण बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था, लेकिन अब नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा में पढ़ाई का विकल्प भी प्रदान किया गया है। अब हमारे जनजातीय बच्चे, जनजातीय युवा अपनी भाषा में पढ़ सकेंगे, आगे बढ़ सकेंगे।
उन्होंने कहा कि आज सरकार का जोर जनजातीय आर्ट्स को बढ़ावा देने, जनजातीय युवाओं के कौशल को बढ़ाने पर भी है। इस बार के बजट में परांपरिक कारीगरों के लिए पीएम-विश्वकर्मा कौशल सम्मान योजना शुरू करने की घोषणा भी की गई है जो जनजातीय समुदायों के लिए वित्तीय सहायता, कौशल प्रशिक्षण और विपणन सहायता प्रदान करेगी।
जलवायु परिवर्तन पर जनजातीय समाज से सीख ले विश्व
प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले 8-9 वर्षों में जनजातीय समाज से जुड़े ‘आदि महोत्सव’ जैसे कार्यक्रम देश के लिए एक अभियान बन गए हैं। जनजातीय समाज को लेकर आज देश जिस गौरव के साथ आगे बढ़ रहा है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि आज भारत पूरी दुनिया के बड़े-बड़े मंचों पर जाता है, तो जनजातीय परंपरा को अपनी विरासत और गौरव के रूप में प्रस्तुत करता है। आज भारत विश्व को बताता है कि अगर आपको जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसी चुनौतियों का समाधान चाहिए तो हमारे जनजातियों की जीवन परंपरा देख लीजिए आपको रास्ता मिल जाएगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हम कैसे प्रकृति से संसाधन लेकर भी उसका संरक्षण कर सकते हैं इसकी प्रेरणा हमें हमारे जनजातीय समाज से मिलती है। भारत के जनजातीय समाज द्वारा बनाए जाने वाले उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है और ये विदेशों में निर्यात किए जा रहे हैं।
इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि ट्राइबल प्रोडक्ट्स ज्यादा से ज्यादा बाजार तक आयें, इनकी पहचान बढ़े, इनकी डिमांड बढ़े, सरकार इस दिशा में भी लगातार काम कर रही है। पहले की सरकार के समय बैम्बू को काटने और उसके इस्तेमाल पर कानूनी प्रतिबंध लगे हुए थे। हमने बैम्बू को घास की कैटेगरी में लाए उस पर लगे बैन को हटाया।
‘वन धन विकास केंद्र’ स्थापित
देश के अलग-अलग राज्यों में तीन हजार से अधिक ‘वन धन विकास केंद्र’ स्थापित किए गए हैं। आज करीब 90 लघु वन उत्पादों पर सरकार एमएसपी दे रही है। 80 लाख से ज्यादा सेल्फ हेल्फ ग्रुप आज अलग-अलग राज्यों में काम कर रहे हैं, जिसमें सवा करोड़ से ज्यादा सदस्य हमारे जनजातीय भाई-बहन हैं और इनमें भी बड़ी संख्या हमारी माताओं-बहनों की है। प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में नए जनजातीय शोध संस्थान खोले जा रहे हैं। इन प्रयासों से जनजातीय युवाओं के लिए उनके अपने ही क्षेत्र में नए अवसर बन रहे हैं।
दशकों तक इतिहास के स्वर्णिम अध्याय पर पर्दा डाला गया
प्रधानमंत्री ने देश की आजादी में जनजातीय समाज की भूमिका को याद करते हुए कहा कि दशकों तक इतिहास के उन स्वर्णिम अध्यायों पर पर्दा डालने के प्रयास होते रहे। अब अमृत महोत्सव में देश ने अतीत के उन भूले-बिसरे अध्यायों को देश के सामने लाने का बीड़ा उठाया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि पहली बार देश ने भगवान बिरसा मुंडा की जन्मजयंती पर जनजातीय गौरव दिवस मनाने की शुरुआत की है। पहली बार अलग-अलग राज्यों में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी म्यूजिय्म खोले जा रहे हैं।
इससे पहले उन्होंने कारीगरों के साथ बातचीत करने के लिए विभिन्न स्टॉल का दौरा किया और विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा स्थापित उनके हथकरघा, हस्तशिल्प और जनजातीय उत्पादों पर एक नजर डाली।
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