कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इतना बड़ा सम्मान मिलेगा। -पद्मश्री डॉ. जानुम सिंह सोय
झारखंड के भाषाविद् डॉ. जानुम सिंह सोय को पद्मश्री से सम्मानित करने की घोषणा हुई है। इस घोषणा से वे इतने भावुक हैं कि फोन पर ठीक से बात भी नहीं कर पा रहे थे। इधर-उधर की दो-चार बातें करने के बाद ही वे अपने बारे में कुछ बताते हैं। वे कहते हैं, ‘‘कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इतना बड़ा सम्मान मिलेगा।’’
अचानक 25 जनवरी को दिल्ली से एक फोन उनके पास जाता है। फोन करने वाले ने उन्हें बताया कि आपको भारत सरकार पद्म सम्मान देने जा रही है। इसके बाद तो वे खुशी के मारे बहुत देर तक किसी से बात भी नहीं कर पाए। कुछ देर बाद उन्होंने अपने परिजनों को इसकी जानकारी दी।
डॉ़ सोय को यह सम्मान ‘हो’ भाषा के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए दिया जा रहा है। वे इस कार्य में लगभग चार दशक से लगे हैं। ‘हो’ भाषा में उन्होंने छह पुस्तकों की रचना की है। इनमें एक गद्य में और पांच पद्य में हैं।
एक जनजाति परिवार में जन्मे डॉ़ सोय बचपन से ही हिंदी-प्रेमी रहे हैं। इस कारण उन्होंने हिंदी से ही स्नातकोत्तर की उपाधि ली और पूर्वी सिंहभूम स्थित घाटशिला महाविद्यालय में अध्यापन करने लगे। बाद में वे उसी महाविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष बने।
लगभग 34 वर्ष तक उन्होंने उस महाविद्यालय में पढ़ाया। उसके बाद कोल्हान विश्वविद्यालय में हिंदी के विभागाध्यक्ष बने। दो वर्ष तक विश्वविद्यालय में सेवा करने के बाद वे 2012 में सेवानिवृत्त हो गए। अब वे पूरी तरह ‘हो’ भाषा के लिए समर्पित हैं। लगातार वे लेखन कार्य कर रहे हैं। उन्होंने ‘हो गीत का साहित्यिक और सांस्कृतिक अध्ययन’ विषय पर शोध किया है। अब उनका एक ही लक्ष्य है ‘हो’ भाषा को उसकी पहचान दिलाना।
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