मैं पिछले 50 साल से झडिपट्टी थिएटर में काम कर रहा हूं और आज मुझे इसका परिणाम मिला है। मैं इस पुरस्कार को झडिपट्टी के प्रशंसकों को समर्पित करना चाहता हूं। — परशुराम खुणे
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली निवासी परशुराम कोमाजी खुणे लोक रंगभूमि के क्षेत्र में वर्ष 2023 के पद्मश्री सम्मान के लिए चुने गए हैं। सत्तर वर्षीय श्री खुणे पिछले 50 वर्ष से झडिपट्टी रंगभूमि से जुड़े हैं। वे अब तक 5,000 से अधिक नाट्य प्रदर्शनों में 800 भिन्न भूमिकाएं निभा चुके हैं। परशुराम खुणे बचपन से ही झडिपट्टी रंगभूमि से जुड़ गए थे। इनके पिता और भाई भी इस रंगभूमि के अभिनेता रहे हैं।
श्री खुणे ने इस थिएटर के गुर धनंजय नखाड़े से सीखे।श्री खुणे ने महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित इलाकों में भ्रमित किए गए युवाओं को लोक संस्कृति से जोड़ कर उनका पुनर्वास किया है। उन्होंने शराब छोड़ने, आरोग्य और अंधविश्वासों को दूर करने के लिए लोक रंगभूमि के माध्यम से जागृति अभियान चलाए हैं। श्री खुणे को इसी योगदान के लिए सम्मानित किया जा रहा है।
महाराष्ट्र के पूर्वी क्षेत्र, विशेष रूप से चंद्रपुर, भंडारा, गढ़चिरौली और गोंदिया जिलों में झडिपट्टी रंगमंच का अभ्यास किया जाता है जहां गोंड, कोर्फू एवं परधी जनजातियों की बहुलता है।
झडिपट्टी एक लोक रंगभूमि है जिसकी उत्पत्ति दंडार नामक वनवासी प्रदर्शन कला से हुई है। झडिपट्टी का प्रदर्शन महाराष्ट्र में धान की खेती के दौरान कटाई के मौसम में होता है। झडिपट्टी का नाम चावल के स्थानीय नाम ‘जादी’ से लिया गया है।
महाराष्ट्र के पूर्वी क्षेत्र, विशेष रूप से चंद्रपुर, भंडारा, गढ़चिरौली और गोंदिया जिलों में झडिपट्टी रंगमंच का अभ्यास किया जाता है जहां गोंड, कोर्फू एवं परधी जनजातियों की बहुलता है।
यह वाणिज्यिक और लोक रंगमंच का मिश्रण है। लाइव संगीत झडिपट्टी थिएटर फॉर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
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