हाईकोर्ट के निर्देश के बाद उत्तराखंड वन्य जीव विभाग ने जंगली हाथियों के लिए कॉरिडोर को चिन्हित किए जाने का काम पूरा कर लिया है। हाथियों के द्वारा एक जंगल से दूसरे जंगल जाने के लिए सड़के नहरे बाधक नही बने इस और ध्यान देने को हाई कोर्ट ने कहा था।
उत्तराखंड के नेपाल बॉर्डर पर शारदा नदी से लेकर हिमाचल सीमा तक जंगली हाथियों के विचरने के लिए एक जंगल मार्ग बना हुआ था जोकि भाबर के जंगल से होकर गुजरता था, इसे एशियन एलिफेंट कोरीडोर का हिस्सा भी कहा जाता था। इन जंगलों के बीच सड़के नहरे रेल लाइन आदि बन जाने से हाथियों का मार्ग बाधित हुआ और हाथी जंगल के रास्ते से भटक कर आबादी में आकर उत्पात मचाने लगे, ऐसी कई घटनाएं भी हुई जब हाथी ट्रेन के कटकर मर गए।
इन मामलो को देखते हुए नैनीताल हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमे कोर्ट ने सितंबर 2022 को वन विभाग को हाथियों के लिए कॉरिडोर सुनिश्चित कर उनके लिए इस क्षेत्र को ईको सेंसटिव जोन घोषित करने के लिए कहा गया था।
वन विभाग ने सेटेलाइट के चित्रों के माध्यम से हाथियों के आवाजाही के मार्गो को चिन्हित कर उनके लिए कॉरिडोर बनाए जाने की तैयारी पूरी कर ली है। कॉर्बेट के पास रिंगोडा बिजरानी, चिलकिया कोटा कॉरिडोर ,मोहान कुमेरिया कोसी कॉरिडोर,रवासन सोना नदी कालागढ़ कोरिडोर को हाथियों की आवाजाही के लिए सुनशीचित किए जाने की संस्तुति दी गई है।
कॉर्बेट प्रशासन ने टाइगर रिजर्व से सटे हुए मुरादाबाद टिहरी राष्ट्रीय राजमार्ग पर एलीवेटेड रोड बनाए जाने के लिए सरकार से कहा गया है। ये वही सड़क है जहां मानव जीव संघर्ष भी होता रहा है। इन क्षेत्रों में व्यापारिक गतिविधियां बढ़ रही है इस पर अंकुश लगाने के लिए हाथियों के लिए ईको सेंसटिव जोन बनाए जाने के लिए निर्देश जारी किए जा सकते है।
ऐसी राजा जी टाइगर रिजर्व के बाहर एनएच 74 है जहां हाथियों के साथ दुर्घटनाएं हो रही है, हरिद्वार देहरादून, लालकुआं काशीपुर रेलवे लाइन पर भी हाथियों की कटने की घटनाएं चिन्हित की गई है। इन सभी स्थानों पर हाथी आसानी से गुजर जाए इसके लिए उपाय सुझाए गए है।
बड़ा सवाल ये है कि हाथियों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए सुझाव दिए गए है लेकिन इनपर अमल कैसे होगा,? एनएच को इसके लिए भारी बजट चाहिए जिसके लिए उन्हें संसाधन जुटाने होंगे।
टाइगर सफारी को लेकर भी आपत्तियां
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों के लिए एक बाड़ा बनाकर टाइगर सफारी कराने की योजना पर सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी ने आपत्ति की है। कमेटी ने कहा है कि टाइगर रिजर्व के बजाय आसपास के फॉरेस्ट डिविजन में इसे बनाया जाना चाहिए। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में पाखरो रेंज में ये सफारी बनाई जानी है। इसी मामले में पिछले महीनो में भ्रष्टाचार उजागर हुआ था और कई आईएफएस समेत अन्य अधिकारी इस की सजा भुगत रहे है। कमेटी ने देश में कुल पांच स्थानों पर बन रही टाइगर सफारी पर आपत्ति दर्ज की है। इस मामले में नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी को भी कहा गया है कि वो बाघों के प्राकृतिक वास के साथ छेड़छाड़ नहीं करे। कमेटी की आपत्ति से टाइगर सफारी प्रोजेक्ट के अधर में लटक जाने की संभावना है और यदि अब इस पर दोबारा कहीं और काम शुरू होता है तो इसकी लागत चार गुना बढ़ जाने की संभावना है।
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